एक दौर वो था जब जीवन गुरु भरोसे था, तब गुरु ही डांटते, मारते मार्गदर्शन करते और हर वो बात बताते जिसकी एक शिष्य को जरुरत थी. उस दौर की खास बात ये भी थी कि तब भिन्न प्रकार के ज्ञान के लिए हमें अलग-अलग गुरु चाहिए होते थे. एक दौर ये है जब हमारा सम्पूर्ण जीवन गूगल भरोसे है. एक ऐसा दौर, जब हेलीकाप्टर से लेकर गर्ल फ्रेंड बनाने तक, इंटरव्यू क्रैक करने के नुस्खों से लेकर रीजनिंग और गणित के जटिल सवालों तक हर चीज गूगल पर उपलब्ध है. बस आपको प्रॉपर कीवर्ड डालकर क्लिक करने भर की देर है और सब कुछ पका पकाया हुआ आपके सामने आ जाएगा.
कह सकते हैं थोक भर गुरुओं की उपस्थिति के आगे असली जलवा गूगल का है जिसने कन्फ्यूजन के तारों में उलझी जिंदगी को सुविधाजनक बना दिया है. ये एक ऐसा समय है जब हम पांचवी गली के सातवें माकन में शर्मा जी रहते हैं या अंसारी साहब से लेकर इंटर्नशिप और जॉब तक सब कुछ गूगल पर खोज सकते हैं.
मैं अखबार रोज लेता हूं, आज ऑफिस आते वक्त भी मैंने रोजाना की तरह अखबार लिया. मैं अखबार 'राजस्थान पत्रिका के पन्ने पलट रहा था कि अचानक मेरी नजर एक कार्टून पर पड़ी. कार्टून देखकर मुझे ख्याल आया कि आज गुरु पूर्णिमा है. एक ऐसा दिन जो गुरुओं को समर्पित है. आज के दिन गुरु पूर्णिमा होने के ख्याल के बाद से ही मैं एक अजीब सी उलझन में हूं.
उलझन इस बात की है कि अगर आज मेरे सामने गुरु और गूगल दोनों में से किसी एक के चुनाव का विकल्प हो तो मैं पहले किसे चुनूंगा. यानी अगर मेरे सामने गुरु और गूगल दोनों हों तो मेरा सिर पहले किसके आगे झुकेगा. इन दोनों में ऐसा कौन होगा जिसके सम्मान में मैं पहले खड़ा होऊंगा.
मैं अपने आप से ये सवाल कर रहा हूं, करे जा रहा हूं. मुझे अपने प्रश्नों के जवाब नहीं मिल...
एक दौर वो था जब जीवन गुरु भरोसे था, तब गुरु ही डांटते, मारते मार्गदर्शन करते और हर वो बात बताते जिसकी एक शिष्य को जरुरत थी. उस दौर की खास बात ये भी थी कि तब भिन्न प्रकार के ज्ञान के लिए हमें अलग-अलग गुरु चाहिए होते थे. एक दौर ये है जब हमारा सम्पूर्ण जीवन गूगल भरोसे है. एक ऐसा दौर, जब हेलीकाप्टर से लेकर गर्ल फ्रेंड बनाने तक, इंटरव्यू क्रैक करने के नुस्खों से लेकर रीजनिंग और गणित के जटिल सवालों तक हर चीज गूगल पर उपलब्ध है. बस आपको प्रॉपर कीवर्ड डालकर क्लिक करने भर की देर है और सब कुछ पका पकाया हुआ आपके सामने आ जाएगा.
कह सकते हैं थोक भर गुरुओं की उपस्थिति के आगे असली जलवा गूगल का है जिसने कन्फ्यूजन के तारों में उलझी जिंदगी को सुविधाजनक बना दिया है. ये एक ऐसा समय है जब हम पांचवी गली के सातवें माकन में शर्मा जी रहते हैं या अंसारी साहब से लेकर इंटर्नशिप और जॉब तक सब कुछ गूगल पर खोज सकते हैं.
मैं अखबार रोज लेता हूं, आज ऑफिस आते वक्त भी मैंने रोजाना की तरह अखबार लिया. मैं अखबार 'राजस्थान पत्रिका के पन्ने पलट रहा था कि अचानक मेरी नजर एक कार्टून पर पड़ी. कार्टून देखकर मुझे ख्याल आया कि आज गुरु पूर्णिमा है. एक ऐसा दिन जो गुरुओं को समर्पित है. आज के दिन गुरु पूर्णिमा होने के ख्याल के बाद से ही मैं एक अजीब सी उलझन में हूं.
उलझन इस बात की है कि अगर आज मेरे सामने गुरु और गूगल दोनों में से किसी एक के चुनाव का विकल्प हो तो मैं पहले किसे चुनूंगा. यानी अगर मेरे सामने गुरु और गूगल दोनों हों तो मेरा सिर पहले किसके आगे झुकेगा. इन दोनों में ऐसा कौन होगा जिसके सम्मान में मैं पहले खड़ा होऊंगा.
मैं अपने आप से ये सवाल कर रहा हूं, करे जा रहा हूं. मुझे अपने प्रश्नों के जवाब नहीं मिल रहे, हां ये जरूर है कि मेरा अंतर्मन मुझसे गुरु के सम्मान की बात कर रहा है, मगर मेरी सफलता मुझसे कह रही है कि "नहीं गुरु ने तो तुम्हें सिर्फ एक चीज से अवगत कराया है ये गूगल ही है जिसने तुम्हें 27 इंच की कंप्यूटर स्क्रीन या 5 इंच की मोबाइल स्क्रीन पर दुनिया दिखाई है.
मैं जैसे-जैसे इस जटिल प्रशन के विषय में सोच रहा हूं मेरा कन्फ्यूजन घटने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु ने मुझे एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित किया तो वहीं दूसरी तरफ गूगल ने मुझे अच्छा इंसान बनने के तरीके सिखाने में मदद की. गुरु ने मुझे न्यूटन के गति के नियमों और पाइथागोरस की प्रमेय से अवगत कराया तो गूगल ने मुझे बताया कि हमारे दैनिक जीवन में इस नियम और ये प्रमेय क्यों जरूरी है.
अपनी बातों पर सोचते सोचते मैं अब तक बस इसी नतीजे पर आ सका हूं कि जितना मेरे लिए गुरु का महत्त्व है उतनी ही जरूरत मुझे गूगल की है. न मैं इसको नकार सकता हूं न उसको. कुल मिलाकर मैं बस इतना ही कहुंगा कि मेरे जीवन को जितना प्रभावित मेरे गुरुओं ने किया है उसे उतना ही प्रभावित करने में गूगल का भी हाथ है.
इसलिए अगर आज के बाद से किसी ने मुझसे पूछा कि 'गुरु, गूगल दोनों खड़े काके लागूं पांय' तो फिर मेरा जवाब यही होगा कि जीवन में जितना ज़रूरी गुरु है उतना ही महत्वपूर्ण गूगल है. ऐसा इसलिए क्योंकि अंत में दोनों का उद्देश्य हमें ज्ञान देना है.
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.