'देख छोटू, आदमी एक बार किसी की मदद का मोहताज बन जाता है तो जिंदगी भर गिड़गिड़ाता रहता है.'
यह किसी महापुरुष की कथनी नहीं है, फिल्म क्रांतिवीर का एक डायलॉग है. नाना पाटेकर ने बोला है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का आया एक ऑर्डर अचानक से मुझे इस डायलॉग की याद दिला गया. कोर्ट ने कहा कि किसी तरह के 'संबंध' में रहने पर अपने सतीत्व की रक्षा करने की जिम्मेदारी महिला की होती है.
शायद आलोचना हो. नारीवादी संगठनों के द्वारा कैंडल मार्च भी निकाले जा सकते हैं. लेकिन फैसला अपने आप में ऐतिहासिक है. नींद से जगाने वाला फैसला है. हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए जिस दिशा-दृष्टि की जरूरत होती है, उसका अहसास कराने वाला फैसला है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप अपने शरीर से जुड़े फैसले लेने में दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं तो जीवन के अन्य कठिन फैसलों के समय तो आप बिलकुल ही निरीह हो जाएंगे.
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ जिम्मेदारी को लेकर है. इसमें कहीं पर भी प्रशासन के ऊपर टिका-टिप्पणी नहीं की गई है. किसी के भी साथ कुछ गलत होता है तो प्रशासन को अपना रोल निभाना है. लिंग भेद से परे देखें तो यह फैसला पुरुषों को भी जिम्मेदारी का अहसास दिलाता है - मसलन आप देर रात कहीं निकले हैं, ऐसे में यह आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप भीड़-भाड़ वाला रास्ता चुनें या सुनसान सड़क. और न ही आप सरकार से यह मांग कर सकते हैं कि चूंकि मैंने यह रास्ता चुना है तो मुझे सुरक्षा दी जाए. यह बात और है कि आपके साथ कुछ गलत होगा तो प्रशासन अपना काम करेगा.
दरअसल यह पूरा मामला शादी का झांसे देते हुए शारीरिक संबंध बनाने से जुड़ा है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के पास एक ऐसा मामला आया, जिसमें एक विधवा (जो कि मां भी है) ने अपने पुरुष मित्र पर शादी का झांसा देकर डेढ़ साल से शारीरिक संबंध का आरोप लगाया है. कोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सभी पुरुष की यह नैतिक...
'देख छोटू, आदमी एक बार किसी की मदद का मोहताज बन जाता है तो जिंदगी भर गिड़गिड़ाता रहता है.'
यह किसी महापुरुष की कथनी नहीं है, फिल्म क्रांतिवीर का एक डायलॉग है. नाना पाटेकर ने बोला है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का आया एक ऑर्डर अचानक से मुझे इस डायलॉग की याद दिला गया. कोर्ट ने कहा कि किसी तरह के 'संबंध' में रहने पर अपने सतीत्व की रक्षा करने की जिम्मेदारी महिला की होती है.
शायद आलोचना हो. नारीवादी संगठनों के द्वारा कैंडल मार्च भी निकाले जा सकते हैं. लेकिन फैसला अपने आप में ऐतिहासिक है. नींद से जगाने वाला फैसला है. हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए जिस दिशा-दृष्टि की जरूरत होती है, उसका अहसास कराने वाला फैसला है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर आप अपने शरीर से जुड़े फैसले लेने में दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं तो जीवन के अन्य कठिन फैसलों के समय तो आप बिलकुल ही निरीह हो जाएंगे.
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ जिम्मेदारी को लेकर है. इसमें कहीं पर भी प्रशासन के ऊपर टिका-टिप्पणी नहीं की गई है. किसी के भी साथ कुछ गलत होता है तो प्रशासन को अपना रोल निभाना है. लिंग भेद से परे देखें तो यह फैसला पुरुषों को भी जिम्मेदारी का अहसास दिलाता है - मसलन आप देर रात कहीं निकले हैं, ऐसे में यह आपकी जिम्मेदारी बनती है कि आप भीड़-भाड़ वाला रास्ता चुनें या सुनसान सड़क. और न ही आप सरकार से यह मांग कर सकते हैं कि चूंकि मैंने यह रास्ता चुना है तो मुझे सुरक्षा दी जाए. यह बात और है कि आपके साथ कुछ गलत होगा तो प्रशासन अपना काम करेगा.
दरअसल यह पूरा मामला शादी का झांसे देते हुए शारीरिक संबंध बनाने से जुड़ा है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के पास एक ऐसा मामला आया, जिसमें एक विधवा (जो कि मां भी है) ने अपने पुरुष मित्र पर शादी का झांसा देकर डेढ़ साल से शारीरिक संबंध का आरोप लगाया है. कोर्ट ने आरोपी को जमानत देते हुए यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सभी पुरुष की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह किसी भी महिला के साथ भावनात्मक रिश्ते बनाकर उसका यौन शोषण न करे लेकिन ऐसे किसी 'संबंध' में अंततः अपने शरीर की रक्षा की जिम्मेदारी उस महिला की ही होती है.
साक्ष्यों के आधार पर इस मामले में कोर्ट ने पाया कि पीड़ित महिला को यह पहले से पता था कि आरोपी शादीशुदा है. फैसले के दौरान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के भी कई सारे मामलों का उदाहरण दिया, जहां ऐसे 'संबंधों' पर फैसले सुनाए गए हैं. कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर ऐसे मामलों में जब तक 'संबंध' अच्छे रहते हैं, ठीक-ठाक चलता रहता है. जैसे ही संबंध में खटास आती है, मामला पुलिस-कचहरी तक पहुंच जाता है.
मैं अक्षरशः सहमत हूं. 18 साल की उम्र के बाद आप देश तो छोड़िए, गांव-पंचायत-गली-मुहल्ले की जिम्मेदारी तक के लिए नेताओं को चुनने में सक्षम माने जाते हैं - संवैधानिक हक है आपका. इस प्रक्रिया में संविधान आपके जिम्मेदार होने की ख्वाहिश रखता है. तो जब आप नेताओं के चयन के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं फिर अपनी रक्षा-सुरक्षा के लिए क्यों नहीं...
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