पिछले एक दशक के दौरान देश की साक्षरता दर 65 फीसदी से बढ़कर 74 फीसदी हो गई है. लेकिन इन आंकड़ों से खुश मत होइए क्योंकि साक्षरता बढ़ने के बावजूद लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता उतनी तेजी से नहीं बढ़ी है. आइए जानते हैं कि साक्षर होने के बावजूद अपने अधिकारों के बारे में कितना जानते हैं भारतीय.
अपने अधिकारों के प्रति अनजान हैं भारतीयः
कट्स (CTS, कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी) इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की 53 फीसदी आबादी को जानकारी ही नहीं है कि किसी भी सेवा से जुड़ी कमी की शिकायत कहां और कैसे की जाए, जबकि बाकी के 47 फीसदी लोगों में से महज 28 फीसदी का ही मानना है कि आम आदमी की इस तक आसानी से पहुंच है. जिनकी शिकायतों का समाधान हुआ भी उनमें से 67 फीसदी को इसके लिए 90 से 150 दिनों की तय समयसीमा से ज्यादा दिनों तक इंतजार करना पड़ा. मतलब जिन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता भी है उन्हें भी इसका लाभ काफी देर से मिल पाता है.
इतना ही नहीं करीब 93 फीसदी उपभोक्ताओं ने कभी औपचारिक शिकायत ही नहीं दर्ज कराई और बाकी के जिन 7 फीसदी लोगों ने शिकायत दर्ज कराई भी उनमें से महज 0.3 फीसदी लोगों को ही अपनी समस्या का समाधान मिल सका. जागरूकता का यह आलम तब है जबकि जबकि देश की करीब 74 फीसदी आबादी साक्षर है और उसमें से करीब 5 करोड़ लोग ग्रैजुएट्स हैं.
इन जरूरी अधिकारों के बारे में कम ही जानते हैं आपः
1. आप ये तो जानते हैं कि पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है लेकिन शायद यह नहीं जानते कि किसी भी घटना का पीड़ित या उसका कोई भी गवाह एफआईआर दर्ज करवा सकता है, जबकि पुलिस सिर्फ रेप, हत्या या हमले जैसे संज्ञेय अपराधों के मामले में ही एफआईआर दर्ज कर सकती है.
2. दिल्ली पुलिस ने महिलाओं के लिए यह सविधा शुरू की है, जिसके तहत वह बिना थाने गए ईमेल या खत के जरिए अपने एफआईआर दर्ज करवा सकती हैं.
3. अगर आपका एलपीजी सिलेंडर...
पिछले एक दशक के दौरान देश की साक्षरता दर 65 फीसदी से बढ़कर 74 फीसदी हो गई है. लेकिन इन आंकड़ों से खुश मत होइए क्योंकि साक्षरता बढ़ने के बावजूद लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता उतनी तेजी से नहीं बढ़ी है. आइए जानते हैं कि साक्षर होने के बावजूद अपने अधिकारों के बारे में कितना जानते हैं भारतीय.
अपने अधिकारों के प्रति अनजान हैं भारतीयः
कट्स (CTS, कंज्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट सोसाइटी) इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की 53 फीसदी आबादी को जानकारी ही नहीं है कि किसी भी सेवा से जुड़ी कमी की शिकायत कहां और कैसे की जाए, जबकि बाकी के 47 फीसदी लोगों में से महज 28 फीसदी का ही मानना है कि आम आदमी की इस तक आसानी से पहुंच है. जिनकी शिकायतों का समाधान हुआ भी उनमें से 67 फीसदी को इसके लिए 90 से 150 दिनों की तय समयसीमा से ज्यादा दिनों तक इंतजार करना पड़ा. मतलब जिन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता भी है उन्हें भी इसका लाभ काफी देर से मिल पाता है.
इतना ही नहीं करीब 93 फीसदी उपभोक्ताओं ने कभी औपचारिक शिकायत ही नहीं दर्ज कराई और बाकी के जिन 7 फीसदी लोगों ने शिकायत दर्ज कराई भी उनमें से महज 0.3 फीसदी लोगों को ही अपनी समस्या का समाधान मिल सका. जागरूकता का यह आलम तब है जबकि जबकि देश की करीब 74 फीसदी आबादी साक्षर है और उसमें से करीब 5 करोड़ लोग ग्रैजुएट्स हैं.
इन जरूरी अधिकारों के बारे में कम ही जानते हैं आपः
1. आप ये तो जानते हैं कि पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है लेकिन शायद यह नहीं जानते कि किसी भी घटना का पीड़ित या उसका कोई भी गवाह एफआईआर दर्ज करवा सकता है, जबकि पुलिस सिर्फ रेप, हत्या या हमले जैसे संज्ञेय अपराधों के मामले में ही एफआईआर दर्ज कर सकती है.
2. दिल्ली पुलिस ने महिलाओं के लिए यह सविधा शुरू की है, जिसके तहत वह बिना थाने गए ईमेल या खत के जरिए अपने एफआईआर दर्ज करवा सकती हैं.
3. अगर आपका एलपीजी सिलेंडर फट जाए तो उससे होने वाले किसी भी तरह के जानमाल के नुकसान के एवज में आप 40 लाख रुपये हर्जाना पाने के अधिकारी होते हैं.
4. अगर शादी के बाद पति या पत्नी बिना किसी व्यवहार्य कारण के सेक्स करने से इनकार कर देते हैं तो इस आधार पर तलाक का केस फाइल किया जा सकता है.
5. भले ही लिव-इन का मुद्दा देश में काफी विवादित है लेकिन जब तक दोनों बालिग अपनी रजामंदी से साथ रहना चाहें तब तक लिव इन अवैध नहीं है.
6. अगर आपको लगता है कि MRP सरकार द्वारा तय होती है इसलिए इस पर किसी भी तरह का मोलभाव नहीं हो सकता तो रुकिए, क्योंकि आप एमआरपी पर भी मोलभाव कर सकते हैं. आप एमआरपी से कम कीमत पर सामान ले सकते हैं, लेकिन हां उससे ज्यादा कीमत किसी हालत में न दें.
7. कोई भी पुलिस ऑफिसर 24 घंटे ड्यूटी पर रहता है. इसलिए किसी अपराध या घटना की सूचना दिए जाने पर वह यह नहीं कह सकता कि 'मैं ड्यूटी पर नहीं हूं', भले ही वह यूनीफॉर्म में न हों.
8. किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म या लिंग के आधार पर किसी भी सार्वजनिक स्थान पर प्रवेश करने से रोका नहीं जा सकता है.
9. कोई भी हेड कॉन्स्टेबल आपको किसी भी उस अपराध के लिए जुर्माना नहीं लगा सकता जिसके लिए वर्तमान में 100 रुपये से ज्यादा का जुर्माना है. लेकिन एक से ज्यादा नियम तोड़ने पर ज्यादा बड़ा जुर्माना लग सकता है.
10. लीगल सर्विसेज अथॉरिटीज ऐक्ट 1987 के तहत देश के उन सभी नागरिकों को मुफ्त में कानूनी सहायता पाने का हक है जो इसका खर्च वहन नहीं कर सकते. दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक रेप की रिपोर्ट दर्ज कराने आई महिला अगर वकील के साथ नहीं आई है तो पुलिस को इसकी जानकारी लीगल सर्विस अथॉरिटीज को देनी होगी जोकि उसके लिए वकील का इंतजाम करेगी.
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