हर भारतीय महिला एक पुरुष की निगरानी में बड़ी होती है. जो बचपन से शुरू होती है और उसकी आंखिरी सांस तक चलती है. इसी के बीच वह गुम सी हो जाती है.
यही निगरानी उसकी हर मांग को तय करती है- उसे क्या पहनना है, क्या छिपाना है. किस वक्त तक घर वापस आना है. कॉलेज में किस तरह के लड़कों से बचना है. शादी के लिए सही उम्र क्या है. शादी से पहले सेक्स नहीं करना है. कैसे पोर्न देखना ठीक नहीं है. कैसे हस्तमैथुन गंदा है. एक अच्छी लड़की की यही कहानी है- सती सावित्री शुद्ध भारतीय नारी. नैतिक रूप से ईमानदार. सेक्सुअली तनावग्रस्त.
परछाई से डर लगता है.
अंधेरे के बाद रास्तों को खतरनाक समझाया गया. शहरों को "असुरक्षित" के रूप में प्रचारित किया गया. नैतिक आचरण का एक कड़ा परदा होना चाहिए. उम्मीद की जाती है कि खुद को बुरी नजर से बचाने के लिए खुद एक लक्ष्मण रेखा बनाए रखें.
पेपर स्प्रे. आत्मरक्षा की क्लास. कार की पिछली सीट पर हॉकी रखना. फोन के स्पीड डॉयल में पिताजी और भैया का नंबर रखना. दिल्ली पुलिस के नंबर के साथ. लंबे बाजू वाले टॉप. कोई तंग जींस नहीं.
छूना नहीं. क्लीवेज नहीं. कोई इच्छा नहीं.
और फिर भी हर रोज लगभग हर भारतीय मेट्रो में महिलाओं के साथ यौन अपराध के चौंकाने वाले मामले सामने आते हैं. ऐसी जगहों पर पहली बार में आप उन पुरुषों को बलात्कारियों के रूप में वर्गीकृत नहीं करते हैं. उदाहरण के लिए उबेर टैक्सी ड्राइवर का मामला ही लीजिए, जिसने गुड़गांव में एक महिला सवारी को जबरन किस करने की कोशिश की. कुछ महीनों पहले एक 27 वर्षीय फाइनेंस एक्जीक्यूटिव ने आरोप लगाया था कि उसके साथ एक अन्य उबेर टैक्सी ड्राइवर ने गुड़गांव में एक सुनसान जगह पर उस वक्त बलात्कार किया था जब वह टैक्सी में जाते वक्त सो गई थी. नए मामले में पीड़िता के भाई ने अपने आक्रोश को बाहर निकालने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है.
यह जानते हुए कि उस लड़की को अब खामोश रहने के लिए मजबूर किया जाएगा, यह चुप्पी शर्म की बात है. इस वक्त में...
हमारे...
हर भारतीय महिला एक पुरुष की निगरानी में बड़ी होती है. जो बचपन से शुरू होती है और उसकी आंखिरी सांस तक चलती है. इसी के बीच वह गुम सी हो जाती है.
यही निगरानी उसकी हर मांग को तय करती है- उसे क्या पहनना है, क्या छिपाना है. किस वक्त तक घर वापस आना है. कॉलेज में किस तरह के लड़कों से बचना है. शादी के लिए सही उम्र क्या है. शादी से पहले सेक्स नहीं करना है. कैसे पोर्न देखना ठीक नहीं है. कैसे हस्तमैथुन गंदा है. एक अच्छी लड़की की यही कहानी है- सती सावित्री शुद्ध भारतीय नारी. नैतिक रूप से ईमानदार. सेक्सुअली तनावग्रस्त.
परछाई से डर लगता है.
अंधेरे के बाद रास्तों को खतरनाक समझाया गया. शहरों को "असुरक्षित" के रूप में प्रचारित किया गया. नैतिक आचरण का एक कड़ा परदा होना चाहिए. उम्मीद की जाती है कि खुद को बुरी नजर से बचाने के लिए खुद एक लक्ष्मण रेखा बनाए रखें.
पेपर स्प्रे. आत्मरक्षा की क्लास. कार की पिछली सीट पर हॉकी रखना. फोन के स्पीड डॉयल में पिताजी और भैया का नंबर रखना. दिल्ली पुलिस के नंबर के साथ. लंबे बाजू वाले टॉप. कोई तंग जींस नहीं.
छूना नहीं. क्लीवेज नहीं. कोई इच्छा नहीं.
और फिर भी हर रोज लगभग हर भारतीय मेट्रो में महिलाओं के साथ यौन अपराध के चौंकाने वाले मामले सामने आते हैं. ऐसी जगहों पर पहली बार में आप उन पुरुषों को बलात्कारियों के रूप में वर्गीकृत नहीं करते हैं. उदाहरण के लिए उबेर टैक्सी ड्राइवर का मामला ही लीजिए, जिसने गुड़गांव में एक महिला सवारी को जबरन किस करने की कोशिश की. कुछ महीनों पहले एक 27 वर्षीय फाइनेंस एक्जीक्यूटिव ने आरोप लगाया था कि उसके साथ एक अन्य उबेर टैक्सी ड्राइवर ने गुड़गांव में एक सुनसान जगह पर उस वक्त बलात्कार किया था जब वह टैक्सी में जाते वक्त सो गई थी. नए मामले में पीड़िता के भाई ने अपने आक्रोश को बाहर निकालने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है.
यह जानते हुए कि उस लड़की को अब खामोश रहने के लिए मजबूर किया जाएगा, यह चुप्पी शर्म की बात है. इस वक्त में...
हमारे पुराने पड़ोसी पोतोल की तरह. कोलकाता में एक मध्यम आयु वर्ग का मोटे व्यक्ति, जिनके कानों और नाक से बाहर बाल निकल आए थे. हमारी बर्तन धोने वाली नौकरानियों को वह अपनी छत से घूरा करता था. और अपने नंगे सीने और गुप्तांग को छूता था. इसी वजह से हम हमेशा अपने स्टडी रूम की खिड़की को बंद रखते थे ताकि हमें पोतोल का मलिन बेडरूम दिखाई न दे. जहां से वह ताक झांक करता था.
उसकी पत्नी निःसंतान थी.
क्या यह एक तरह की सजा थी? मैं रोज उन लोगों को फुसफुसाते हुए सुनती थी. कुछ नौकरानियां आपस में बातें किया करती थीं कि उसकी पत्नी पर आत्माओं का साया है, इसीलिए वह जो चाहता था उसकी पत्नी उसे नहीं दे सकती थी.
एक बिगड़ा हुआ आम भारतीय वास्तव में क्या चाहता है? क्या पोतोल का रोजाना खराब व्यवहार उचित सेक्स की कमी से जूझने की वजह से था? क्यों हमने उसे इतनी आसानी से जाने दिया? क्यों नौकरानियां हमेशा उसके घर में रहती थी? क्या वह उन्हें गलत तरीके से छूने की कोशिश करता था? क्या यह छूना एक लिंग के प्रति संवेदनशीलता थी? क्या स्पर्श करना एक वर्ग बाधा है? क्या एक गरीब नौकरानी का शरीर उसका अपना नहीं था? क्या बलात्कार केवल एक शहरी घटना है?
अभिनेत्री प्रीति जिंटा ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि "मुझे हर वक्त मुस्कुराना चाहिए, हमेशा अच्छा व्यवहार करना चाहिए. मैं एक ट्रॉफी की तरह हूं. मेरे चेहरे पर कोई दाना नहीं होना चाहिए, वजन नहीं बढ़ाना चाहिए और जब फोटोग्राफर मेरे चेहरे पर फ्लैश चमाकाएं तो मुझे अंधेरे में भी अपना चेहरा कवर नहीं करना चाहिए, चाहे यह मुझे डराने वाला ही क्यों न हो. भारी भीड़ मुझे परेशान करती हो और पुरुष मुझे छूने की कोशिश कर रहे हों फिर भी मैं प्रतिक्रिया न करूं क्योंकि वे सभी मेरे फैन हैं? आखिर क्या मैं एक औरत नहीं हूं!"
क्या हम कभी जिंटा की परेशानी को समझ सकते हैं?
ज्यादातर भारतीय पुरुषों की कामेच्छा जो स्वस्थ यौन शिक्षा का हिस्सा नहीं हैं उसकी शुरूआत स्कूलों और कॉलेजों से पहले घरों से होती है... काम करने की जगह पर कामेच्छा को काबू में रखना? क्या यह आत्म नियत्रंण हमारी उस पाखंडी संस्कृति का परिणाम तो नहीं है, जिसमें एक ओर तो वह खजुराहो में कामसूत्र के किरदारों को देखने आए नीली-आंखों वाले पर्यटकों को घूरता है और दूसरी ओर सख्त आत्म नियंत्रण की बात करता है. माता-पिता ने शायद ही कहीं कभी हाथ पकड़े हों? यहां तक कि एक युवा विवाहित जोड़ा बच्चे पैदा करने में देरी के लिए इजाजत नहीं ले सकता, क्या उन्हें अधिकार नहीं कि वे सेक्स का आनंद लें. जो एक शारीरिक जरूरत है. एक स्वस्थ काम. आपसी खोज की यह अवस्था निश्चित रूप से सुहाग रात, कौमार्य और अरेंज शादियों का पर्याय नहीं है. सेक्स एक अवस्था है न कि एक शर्त. जीभ, स्तन, योनी, स्क्रोटम, होंठ, बाहें, उंगलियां...
क्या हम हर रोज विकृत लोगों को पैदा कर रहे हैं?
अधिकांश किशोर चुपके से इंटरनेट से ट्रिपल एक्स-रेटेड कंटेंट डाउनलोड करते हैं. सनी लियोन ने सेक्सुअली चार्ज भारतीय युवाओं को बहुत कुछ दिया है... उन्हें मर्द बना दिया है, सिर्फ मस्ती की चाह वाला!
इस तरह से वो खुद तो सेक्स के मामले में विफल होते हैं. और दूसरी ओर महिलाओं को इसकी इजाजत ही नहीं है. यहां तक कि यदि वह कोई फिल्म का चुनाव करती है, तो कथित नारीवादी उसकी क्वालिटी पर ही सवाल खड़े करने लगते हैं.
मैं बंगलौर में बिल्कुल नई थी. 2004 की बात है. ऑफिस में मेरा दूसरा ही दिन था. वहीं लावेले रोड से मैं एक ऑटो में सवार हुई. मुझे किसी काम से ब्रिगेड रोड पर जाना था. अभी हमारी कार दिल्ली से नहीं आई थी. सफर के दौरान ऑटो चालक मुझे लगातार बुरी नजर से घूरता रहा. मैंने अपनी बाहों को कवर किया हुआ था. कुछ मोड़ के बाद मैंने उससे कहा मुझे एक जगह पर छोड़ दे. उसने अपने कंधों को उचकाकर यह बताने की कोशिश की कि उसे हिंदी समझ में नहीं आई. मेरी परेशानी बढ़ रही थी. शहर में नया होने के नाते मैंने भगवान से किसी भी तरह ब्रिगेड रोड पर पहुंचने की प्रार्थना की. हम पहुंच गए. बाहर आते ही मैंने उसे 50 रुपये दिए, मैं बचे हुए पैसे भी वापस नहीं लेना चाहती थी.
उस आदमी ने मुझे हैरान होकर देखा. मैंने उसकी आंखों में देखा और पूछा कि जो किराया मैंने दिया है क्या वो कम था? उसने अपने होंठों पर जीभ घुमाई. और शक के लहजे में अपनी एक भौं उठाई. मैंने नजर नीचे कर ली. और उस वक्त मैं बुरी तरह चौंक गई जब मैंने देखा कि उसके कपड़े खुले थे और उसका गुप्तांग सार्वजनिक रूप से दिख रहा था.
मैंने वहां से दौड़ लगाई. और पीछे मुड़कर नहीं देखा. किसी से भी इस घटना के बारे में बात करना मुझे अच्छा नहीं लग रहा था.
हम एक सेक्स के रूप में कैसे सुरक्षित हैं?
हम किस आदमी पर भरोसा कर सकते हैं?
ड्राइवर? धोबी? डिलिवरी ब्वॉय? चौकीदार? माली?
क्या भारत की लोकप्रिय संस्कृति वास्तव में ईव-टीज़र, ताक-झांक करने वालों और सेक्स के भूखे अधेड़ों वाली है? क्या हमने मुख्यधारा की बॉलीवुड फिल्मों में नहीं देखा कि कॉलेज में लड़कियों की एंट्री पर हीरो और उसके दोस्त गीत गाते हैं? आमतौर पर हीरो के साथ एक कॉमेडी सीन भी जुडा हुआ होता है, जब हीरो छात्रावास में स्नान करने वाली एक महिला की तस्वीर क्लिक करता है? जहां खलनायक हमेशा हीरोइन के साथ बलात्कार और यौन शोषण करता है? क्या सेक्स को लेकर ये दोहरापन हमारे घरों का हिस्सा है, जहां ये बिलकुल नहीं सिखाया जाता कि दूसरे सेक्स का सम्मान कैसे करें? जहां लड़के खुले तौर पर अपने पिता को माताओं पर ताने मारते हुए देख कर बड़े होते हैं. आवाजें उठ रही हैं. तो फिर... भारतीय सामाजिक संरचना क्या महिलाओं का नसीब यही है कि उन्हें यौन गुलाम बनाकर रखा जाएगा? कभी पलटकर जवाब नहीं देना... अंत में.
क्या सभी भारतीय पुरुष लगभग बलात्कारी हैं? जो एक मुक्त और मुखर महिला को सजा देना चाहते हैं?
दिमाग से?
जब सच्चाई जगजाहिर है...
हमारी सबसे बड़ी ताकत हकीकत में हमारी गहरी, अंधेरी आशंका पर आधारित है.
कब तक हम एक आदमी से डरते रहेंगे?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.