महात्मा गांधी, वो नाम जिसे हर भारतीय जानता है! शायद कुछ ना भी जानते हों, लेकिन ऐसा यकीन कर पाना मुश्किल है कि जीवन में कभी किसी भारतीय ने उनका नाम भी ना सुना हो. पूरी दुनिया को एक बात पता है कि गांधी को नाथूराम गोडसे ने मारा. लेकिन क्या ये पूरा सच है?
पुलिस की थ्योरी कहती है कि नाथूराम गोडसे ने तीन गोलियां प्वाइंट ब्लैंक पर चलाईं और सबके सामने बापू को मार दिया. उनकी मृत्यु हो गई. ठीक ये मान लिया गया. गोडसे को फांसी भी दे दी गई, लेकिन कहीं भी उस चौथी गोली की बात सामने नहीं आई जो चली थी. तीन नहीं उस दिन चार गोलियां चली थीं. तो किसने चलाई थी वो गोली?
30 जनवरी 1948. वो दिन जब बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति) के बाहर नाथूराम गोडसे ने गांधी जी पर तीन गोलियां चलाई थीं. गांधी प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे तभी भीड़ के बीच से नाथूराम गोडसे ने आकर गोलियां चला दी थीं. गांधी जी गिर पड़े थे, भीड़ में हाहाकार मच गया. गोडसे को पकड़ने वाले पहले इंसान हर्बर्ट रेनियर जूनियर थे. इसी अमेरिकी डिप्लोमैट ने सबसे पहले गोडसे को पकड़ा था.
गांधी जी को जब तक उनके कमरे तक ले जाया गया तब तक उनकी मौत हो चुकी थी. गोडसे के साथ गांधी जी की हत्या की प्लानिंग करने वाले 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था.
अब ये तो सुनी सुनाई बात है, लेकिन असल में उस चौथी गोली के बारे में कोई क्यों नहीं बोलता. इसी सवाल के जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि गांधी जी की मौत के पीछे की सच्चाई उजागर करना बहुत जरूरी है और इसके लिए एक इंक्वाइरी कमिटी बैठाना जरूरी है.
मौत के बाद जांच में क्या हुई थी...
महात्मा गांधी, वो नाम जिसे हर भारतीय जानता है! शायद कुछ ना भी जानते हों, लेकिन ऐसा यकीन कर पाना मुश्किल है कि जीवन में कभी किसी भारतीय ने उनका नाम भी ना सुना हो. पूरी दुनिया को एक बात पता है कि गांधी को नाथूराम गोडसे ने मारा. लेकिन क्या ये पूरा सच है?
पुलिस की थ्योरी कहती है कि नाथूराम गोडसे ने तीन गोलियां प्वाइंट ब्लैंक पर चलाईं और सबके सामने बापू को मार दिया. उनकी मृत्यु हो गई. ठीक ये मान लिया गया. गोडसे को फांसी भी दे दी गई, लेकिन कहीं भी उस चौथी गोली की बात सामने नहीं आई जो चली थी. तीन नहीं उस दिन चार गोलियां चली थीं. तो किसने चलाई थी वो गोली?
30 जनवरी 1948. वो दिन जब बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति) के बाहर नाथूराम गोडसे ने गांधी जी पर तीन गोलियां चलाई थीं. गांधी प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे तभी भीड़ के बीच से नाथूराम गोडसे ने आकर गोलियां चला दी थीं. गांधी जी गिर पड़े थे, भीड़ में हाहाकार मच गया. गोडसे को पकड़ने वाले पहले इंसान हर्बर्ट रेनियर जूनियर थे. इसी अमेरिकी डिप्लोमैट ने सबसे पहले गोडसे को पकड़ा था.
गांधी जी को जब तक उनके कमरे तक ले जाया गया तब तक उनकी मौत हो चुकी थी. गोडसे के साथ गांधी जी की हत्या की प्लानिंग करने वाले 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था.
अब ये तो सुनी सुनाई बात है, लेकिन असल में उस चौथी गोली के बारे में कोई क्यों नहीं बोलता. इसी सवाल के जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. याचिका में कहा गया है कि गांधी जी की मौत के पीछे की सच्चाई उजागर करना बहुत जरूरी है और इसके लिए एक इंक्वाइरी कमिटी बैठाना जरूरी है.
मौत के बाद जांच में क्या हुई थी गड़बड़?
इस याचिका में ये बात कही गई है कि गांधी जी की मौत की जांच सही तरीके से नहीं की गई है. याचिका में ये सवाल पूछा गया है कि क्या विनायक दामोदर सावरकर को किसी भी तरह से गांधी जी की मौत से जोड़ा जाना चाहिए?
इस याचिका को डॉक्टर पंकज फडनिस ने दायर किया है. उनकी इस याचिका का आधार है अभिनव भारत जो खुद एक रिसर्चर हैं. इस याचिका में साफ लिखा गया है कि जस्टिस जे एल कपुर कमिशन जिसे 1966 में गांधी जी की हत्या की जांच-पड़ताल करने के लिए लगाया था वो अपना काम करने में नाकाम रही है.
क्या वाकई ऐसा हुआ था?
फडनिस ने तीन गोलियों वाली थ्योरी को सिरे से नकारा है और कहा है कि नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे जिन्हें 15 नवंबर 1949 को फांसी दी गई थी वो अकेले गांधी जी की हत्या के दोषी नहीं थे. सावरकर को इस मामले में सबूतों के आभावों में छोड़ दिया गया था.
फडनिस का कहना है कि रिसर्च और मीडिया रिपोर्ट्स जो उस दौरान थीं वो कहती हैं कि तीन नहीं चार गोलियां चलीं थीं.
एक नहीं दो बंदूकों ने ली थी गांधी जी की जान...
फडनिस के अनुसार जो गोलियां महात्मा गांधी पर चली थीं उनमें से गोडसे की बंदूक से 3 ही चलीं थीं. क्योंकि गोडसे के पास जो बंदूक थी उसमें 7 बुलेट चेंबर थे और उनमें से सिर्फ तीन ही खाली हुए थे.
एक दूसरी बंदूक से चौथी गोली चली होगी. तो गांधी जी पर गोली चलाने वाला दूसरा व्यक्ति कौन था जिसका कोई भी रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.
फडनिस ने नरेंद्र मोदी को भी एक चिट्ठी लिखी है जिसमें कपूर कमिशन के निर्णय के खिलाफ बात कही गई है. फडनिस पिछले दो दशक से पार्टीशन के दौरान दबाए गए सच का पर्दाफाश करने की कोशिश कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें-
गांधी जी की हत्या के बाद गोडसे की कोर्ट में हंसी कुछ कहती है !
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.