देश की राजधानी दिल्ली दीपावली के बाद दम घुटने पर भी जीने को मजबूर है - जैसे पानी बिन मछली तड़प तड़प कर मर जाती हैं. फर्क सिर्फ इतना हैं कि मछली तो तड़प कर मर जाती हैं, लेकिन दिल्ली में रहने वाले लोग तड़पने के बावजूद जीने के लिए मजबूर है.
तो क्या दिल्ली में हर शख्स इतना मजबूर हो गया है कि गैस के चैम्बर में ही तड़पते हुए जान दे देना चाहता है? सरकार हर साल दीपावली से पहले अपना ढिंढोरा पीटती है पटाखे मत जलाओ. मत जलाओ. लेकिन दूसरी तरफ खुद पटाखों के लाइसेंस भी बेचती है. दिल्ली में तो यह काम बाकायदा दिल्ली पुलिस ही करती है और बची-खुची कसर जनता-पुलिस मिलकर पूरा कर देती है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत रात दस बजे से सुबह 6 बजे के बीच आतिशबाजी पर रोक है. पर सवाल है बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन? तो कैसे रुकेगा प्रदूषण, कैसे बचेंगी जिंदगियां?
दीपावली के बाद दिल्ली में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि पीएम 10 का लेवल अपने अधिकतम स्तर 999 पर पहुंच गया है. जो कि तय मापदंडों से करीब 10 गुणा ज्यादा है. एयर क्वालिटी इंडेक्स की अगर बात करें तो पीएम 2.5 अपने अधिकतम स्तर 743 तक पहुंच गया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल ही में जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से भारत में हर साल छह लाख लोगों को अपनी जान गवानी पड़ती है. दिल्ली का अगर जिक्र करें तो 2025 तक अकेले दिल्ली में ही वायु प्रदूषण से हर वर्ष 26, 600 लोगों की मौत होगी.
इसे भी पढ़ें: दीपावली में 'लक्ष्मी जी' आती हैं या जाती हैं?
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में वायु प्रदूषण की वजह से हर साल आठ लाख जानें जा रही हैं जिनमें पचहत्तर फीसद से ज्यादा मौतें भारत में हो रही हैं. हर दस में से नौ लोग ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं जो उनकी सेहत को...
देश की राजधानी दिल्ली दीपावली के बाद दम घुटने पर भी जीने को मजबूर है - जैसे पानी बिन मछली तड़प तड़प कर मर जाती हैं. फर्क सिर्फ इतना हैं कि मछली तो तड़प कर मर जाती हैं, लेकिन दिल्ली में रहने वाले लोग तड़पने के बावजूद जीने के लिए मजबूर है.
तो क्या दिल्ली में हर शख्स इतना मजबूर हो गया है कि गैस के चैम्बर में ही तड़पते हुए जान दे देना चाहता है? सरकार हर साल दीपावली से पहले अपना ढिंढोरा पीटती है पटाखे मत जलाओ. मत जलाओ. लेकिन दूसरी तरफ खुद पटाखों के लाइसेंस भी बेचती है. दिल्ली में तो यह काम बाकायदा दिल्ली पुलिस ही करती है और बची-खुची कसर जनता-पुलिस मिलकर पूरा कर देती है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत रात दस बजे से सुबह 6 बजे के बीच आतिशबाजी पर रोक है. पर सवाल है बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन? तो कैसे रुकेगा प्रदूषण, कैसे बचेंगी जिंदगियां?
दीपावली के बाद दिल्ली में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि पीएम 10 का लेवल अपने अधिकतम स्तर 999 पर पहुंच गया है. जो कि तय मापदंडों से करीब 10 गुणा ज्यादा है. एयर क्वालिटी इंडेक्स की अगर बात करें तो पीएम 2.5 अपने अधिकतम स्तर 743 तक पहुंच गया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हाल ही में जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण से भारत में हर साल छह लाख लोगों को अपनी जान गवानी पड़ती है. दिल्ली का अगर जिक्र करें तो 2025 तक अकेले दिल्ली में ही वायु प्रदूषण से हर वर्ष 26, 600 लोगों की मौत होगी.
इसे भी पढ़ें: दीपावली में 'लक्ष्मी जी' आती हैं या जाती हैं?
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में वायु प्रदूषण की वजह से हर साल आठ लाख जानें जा रही हैं जिनमें पचहत्तर फीसद से ज्यादा मौतें भारत में हो रही हैं. हर दस में से नौ लोग ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं जो उनकी सेहत को नुकसान पहुंचा रही है.
प्रदूषण की राजधानी भी बन गई है दिल्ली |
दिल्ली की मौजूदा आबादी के 11.03 प्रतिशत लोगों में अस्थमा और 11.69 प्रतिशत लोगों को राइनाइटिस है. इसकी की चपेट में 30-40 साल के लोग ज्यादा है. यही कारण हैं की अब डॉक्टर भी लोगों को दिल्ली से बाहर रहने की सलाह दे रहे हैं.
दिल्ली हाईकोर्ट सरकार से पहले ही कह चुका है कि दिल्ली में रहना अब गैस चैंबर में रहने जैसा है. अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार को प्रदूषण के बढ़ते स्तर से निपटने के लिए विस्तृत कार्य योजनाएं पेश करने का निर्देश दिया है.
दो दिन पूर्व ही यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में भारत को सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले देशों की वाले तीन देशों की सूची में डाला है. भारत के अलावा इसमें चीन भी शामिल है. चीन तो डंडे के बल पर प्रदूषण को नियंत्रित कर लेता है जिसका उदहारण पिछले साल देखने को मिला. लेकिन दिल्ली ने तो इस साल ऑड एंड ईवन को भी बंद कर दिया है. दीपावली पर ही दिल्ली में हज़ारों कारें बिक गईं, हर रोज हज़ारों गाड़ियां दिल्ली की रोड पर आ रही है, कोई मापदंड नहीं है. हकीकत यह है की अगले एक दो साल में रोड पर गाड़ियां ही दिखेंगी, मानुष नहीं.
इसे भी पढ़ें: नदियों का अपमान करना हम कब बंद करेंगे ?
दिल्ली ही नहीं पूरा हिंदुस्तान का सिस्टम ही कुछ ऐसा बन चुका है कि जब तक सिर पर डंडा नहीं पड़ जाय तब तक न तो ब्यूरोक्रेसी और न ही राजनीति जगती है. इन्हें जगाने की लिए जब जनता तड़पती है तब जाकर ये जागते हैं. रही जनता की बात तो कुछ दिनों की लिए लोगों को याद रहता है फिर सब भूल जाते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.