बीजेपी और आरएसएस सिर्फ गोहत्या पर पाबंदी की वकालत करते हैं, जबकि मेरा स्टैंड यह रहा है कि समस्त पशु-पक्षियों पर अत्याचार रुकना चाहिए. गोहत्या पर पाबंदी हिन्दुत्व की रक्षा के लिए जरूरी है, लेकिन सभी पशु-पक्षियों की हत्या रोकना मानवता की रक्षा के लिए जरूरी है.
इसलिए जब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों पर रोक लगाने का फैसला किया, तो मैं बहुत खुश हुआ. सोचा चलो, पशु-पक्षियों की हत्या पर पूर्ण रोक के उच्च मानवीय आदर्श तक हम जब पहुंचेंगे तब पहुंचेंगे, इस फ़ैसले से फिलहाल कुछ जीव-जंतुओं के प्राण तो बचेंगे.
लेकिन कई विरोधी नेता इस नेक कदम की भी जिस तरह से आलोचना कर रहे हैं, वह उनकी अमानवीय सोच का परिणाम है. उन्हें सिर्फ यह दिखाई दे रहा है कि कुछ लोग इस कदम से बेरोजगार हो जाएंगे. वो यह नहीं देख पा रहे हैं कि यह एक ऐसा रोजगार है, जिसमें बेगुनाह पशु-पक्षियों की हत्या की जाती है, उनकी चमड़ी उतारी जाती है, उनका मांस बेचा जाता है और उनके खून की नदियां बहाई जाती हैं.
भई आप बुरा मानें या भला... जिस तरह से रोजगार के नाम पर मैं वेश्यावृत्ति का समर्थन नहीं कर सकता, उसी तरह रोजगार के नाम पर मैं निर्दोष पशु-पक्षियों की हत्या का भी समर्थन नहीं कर सकता. रोजगार के सभ्य-सुसंस्कृत और मानवीय तरीके ढूंढ़े जाने चाहिए.
सुपारी लेकर हत्याएं करना भी कई लोगों का रोजगार ही है, लेकिन हम उनका तो समर्थन नहीं करते. क्यों? क्योंकि यहां आपकी (मनुष्य की) जान का सवाल है, लेकिन अगर सवाल बेगुनाह पशु-पक्षियों की जान का हो, तो फिर तो रोजगार के नाम पर हम सुपारी किलरों की फ़ौज खड़ी हो जाने देंगे और जानवरों के इन सुपारी किलरों का समर्थन भी करेंगे. वाह भई वाह! क्या सोच है!
सबसे आपत्तिजनक टिप्पणी मुझे समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल की लगी, जो कह रहे हैं...
बीजेपी और आरएसएस सिर्फ गोहत्या पर पाबंदी की वकालत करते हैं, जबकि मेरा स्टैंड यह रहा है कि समस्त पशु-पक्षियों पर अत्याचार रुकना चाहिए. गोहत्या पर पाबंदी हिन्दुत्व की रक्षा के लिए जरूरी है, लेकिन सभी पशु-पक्षियों की हत्या रोकना मानवता की रक्षा के लिए जरूरी है.
इसलिए जब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों पर रोक लगाने का फैसला किया, तो मैं बहुत खुश हुआ. सोचा चलो, पशु-पक्षियों की हत्या पर पूर्ण रोक के उच्च मानवीय आदर्श तक हम जब पहुंचेंगे तब पहुंचेंगे, इस फ़ैसले से फिलहाल कुछ जीव-जंतुओं के प्राण तो बचेंगे.
लेकिन कई विरोधी नेता इस नेक कदम की भी जिस तरह से आलोचना कर रहे हैं, वह उनकी अमानवीय सोच का परिणाम है. उन्हें सिर्फ यह दिखाई दे रहा है कि कुछ लोग इस कदम से बेरोजगार हो जाएंगे. वो यह नहीं देख पा रहे हैं कि यह एक ऐसा रोजगार है, जिसमें बेगुनाह पशु-पक्षियों की हत्या की जाती है, उनकी चमड़ी उतारी जाती है, उनका मांस बेचा जाता है और उनके खून की नदियां बहाई जाती हैं.
भई आप बुरा मानें या भला... जिस तरह से रोजगार के नाम पर मैं वेश्यावृत्ति का समर्थन नहीं कर सकता, उसी तरह रोजगार के नाम पर मैं निर्दोष पशु-पक्षियों की हत्या का भी समर्थन नहीं कर सकता. रोजगार के सभ्य-सुसंस्कृत और मानवीय तरीके ढूंढ़े जाने चाहिए.
सुपारी लेकर हत्याएं करना भी कई लोगों का रोजगार ही है, लेकिन हम उनका तो समर्थन नहीं करते. क्यों? क्योंकि यहां आपकी (मनुष्य की) जान का सवाल है, लेकिन अगर सवाल बेगुनाह पशु-पक्षियों की जान का हो, तो फिर तो रोजगार के नाम पर हम सुपारी किलरों की फ़ौज खड़ी हो जाने देंगे और जानवरों के इन सुपारी किलरों का समर्थन भी करेंगे. वाह भई वाह! क्या सोच है!
सबसे आपत्तिजनक टिप्पणी मुझे समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल की लगी, जो कह रहे हैं कि अगर बूचड़खाने बंद कराए गए तो इससे आतंकवाद बढ़ेगा. वस्तुतः आतंकवाद जैसी कुत्सित सोच को इस तरह के बयानों से ही बढ़ावा और समर्थन मिलता है. इनके कहने का तात्पर्य तो यही समझ में आ रहा है कि अगर मुझे मेरे मन लायक "रोजगार" नहीं करने दोगे, तो मैं आतंकवादी बन जाऊंगा और फिर मुझे दोष मत देना.
मैं चाहता हूं कि इस देश में मानवता, मानवीय गरिमा और मानवीय स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए तीन चीज़ों पर पूर्ण प्रतिबंध लगे और इन्हें किसी भी किस्म के रोजगार न जोड़ा जाए-
एक- मानवता के लिए जीव हत्या रुके.
दो- मानवीय गरिमा के लिए वेश्यावृत्ति रुके.
तीन- मानवीय स्वास्थ्य के लिए पूर्ण नशाबंदी हो.
मेरा सवाल है कि क्या हम एक ऐसे भारत का निर्माण नहीं कर सकते, जिसमें रोज़गार के साधन भी पवित्र हों. मेरी तो यह सोचकर ही रूह सिहर जाती है कि कोई भी संवेदनशील मनुष्य जीव हत्या, वेश्यावृत्ति और नशाखोरी- इन तीनों चीज़ों को कैसे जस्टिफाइ कर सकता है?
और अगर कर सकता है, तो मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ेगा कि वह मनुष्य नहीं है. सिर्फ मनुष्य शरीर में जन्म ले लेने भर से कोई मनुष्य नहीं बन जाता. ऐसा ही शरीर तो रावण, कंस, कुंभकर्ण, महिषासुर, बाबर, औरंगज़ेब, नादिरशाह और तैमूर लंग के पास भी था, लेकिन क्या वे मनुष्य कहलाने के लायक थे? सोचकर देखिएगा.
याद रखिए, मनुष्य धरती का मालिक नहीं, एक निवासी मात्र है. यह अलग बात है कि हमने अपने बुद्धि-विवेक का दुरुपयोग कर इस धरती के दूसरे निवासियों की लगातार हत्याएं की हैं और उन्हें उनके हक़ और ज़मीन से लगातार बेदखल किया है. इस पाप का फल एक न एक दिन निश्चित रूप से संपूर्ण मानव जाति को भुगतना पड़ेगा. उस दिन के लिए मुझे आज से अफसोस है!
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.