अक्सर हम इतवार को मॉल घूमते हैं, सिनेमा देखते हैं, दोस्तों से मिलते-जुलते हैं. नॉर्वे इतवार को कुछ नहीं करता. यहां जिंदगी में 24 घंटे के लिए 'pause' का बटन दब जाता है. सारी दुकानें, बार, मॉल सब कुछ बंद. सड़कें बिल्कुल खाली मिलेंगी.
हालांकि अब कुछ खेल-कूद के उत्सव होने लगे हैं, पर असल नॉर्वेजियन वो भी नहीं करता. वो बस 24 घंटे टांगें पसार कर लेटता है. वो और उसका पूरा परिवार लगातार 12-13 घंटे एक ही मुद्रा में धूप सेंकते या टी.वी. देखते मिल सकते हैं. वो कुछ नहीं करते, जैसे मर गए हों. आप फोन करो, वो नहीं उठाएंगे. उनका फोन शायद पूरे दिन बंद हो. और-तो-और पुलिस-थाने भी इतवार को बंद होते हैं.
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इतवार को नॉर्वे के लोग सिर्फ टीवी देखना पसंद करते हैं |
यहां का एक पॉपुलर टी.वी. चैनल है 'स्लो टी.वी'. लोग कहते हैं यह विश्व में कहीं संभव नहीं सिवाय स्कैंडिनैविया के. इसमें 12 घंटे की 'रियल टाइम' स्वेटर-बुनाई दिखाई गई. मतलब ऊन के पहले धागे से पूरे स्वेटर बुनने तक 'नॉन-स्टॉप' और इसे देश के 11 लाख लोगों ने देखा. याद दिला दूं, पूरे नॉर्वे की जनसंख्या ही 50 लाख है. कोई 12 घंटे स्वेटर बुनाई एक-टक कैसे देख सकता है? कहते हैं, लाखों लोगों ने साथ-साथ पूरे के पूरे स्वेटर बुन लिए.
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टीवी पर 12 घंटे तक दिखाई गई स्वेटर की बुनाई |
ओस्लो से बर्गेन की ट्रेन यात्रा मनोरम है. पर कोई यह रस्ता लगातार साढ़े छह घंटे रियल टाइम दिखाए तो? यह प्रोग्राम 15 लाख लोगों ने देखा. लोग कहते हैं कि प्रोग्राम खत्म होते ही वो उतरने के लिये बैग ढूंढ़ने लगे. फिर याद आया कि वो तो 'लिविंग-रूम' में बैठे हैं. यहां तक कि जुलाई की छुट्टियों में साढ़े-पांच दिन लगातार एक जहाज को धीरे-धीरे नॉर्वे का चक्कर लगाते दिखाया गया और लोगों ने देखा.
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साढ़े पांच दिन टीवी पर केवल जहाज को चलते दिखाया गया |
यह कोई क्रिकेट मैच भी नहीं, बस धीमी गति से कैजुयली जाता जहाज. हर पांच-छह घंटे में जहाज तट पर रूकता, वहां के लोग नॉर्वे का झंडा ले स्वागत करते और फिर धीरे-धीरे जहाज आगे बढ़ता. लोग बस एकटक देखते रहते. जैसे वक्त थम गया हो.
लोग कहते हैं, उनके पास वक्त नहीं है. वक्त की बर्बादी से तरक्की रूकेगी. वक्त किसी का इंतजार नहीं करता. उन्हें कह दें कि कम से कम दुनिया का एक कोना ऐसा है जहां वक्त रूकता है, पर तरक्की नहीं रूकती.
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