पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले में शहीद हुए लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार को लेकर 'द टेलीग्राफ' अखबार में छपे एक संपादकीय पर बहस छिड़ गई है. दरअसल, अखबार ने अपने ऑनलाइन संस्करण में छपे संपादकीय में सवाल किया है- कि क्या निरंजन वाकई सम्मान के हकदार हैं? इस संपादकीय में तर्क दिया गया है कि कर्नल निरंजन बिना सुरक्षा इंतजामों के उस ऑपरेशन में चले गए और अपने तथा साथियों की जान को खतरे में डाला.
आप भी पढ़िए इस संपादकीय का एक अंश-
शहीद होने वाला हर कोई किसी मिथक जैसा हो जाता है. कोई भी व्यक्ति जब आर्मी ज्वाइन करता है तो उसकी जिंदगी उसके साथ ही खतरे में आ जाती है. कोई भी सैनिक या आर्मी ऑफिसर अपनी ड्यूटी निभाते हुए अपनी जान गंवा सकता है. लेकिन क्या यह जरूरी है कि ड्यूटी निभाते हुए अपनी जान गंवाने वाले हर जवान को हम शहीद मान लें? उदाहरण के तौर पर हम इंडियन आर्मी के लेफ्टिनेंट कर्नल निरंजन कुमार को ही ले सकते हैं, जो पठानकोट में एक ऑपरेशन को अंजाम देते हुए अपनी जान गंवा बैठे. इस ऑपरेशन में जान गंवाने वाले वह एक मात्र ऑफिसर रहे. निरंजन बम निरोधक दस्ता के प्रमुख थे. लेकिन कॉम्बिंग ऑपरेशन के दौरान विस्फोटकों को हटाने के समय उन्होंने सुरक्षा उपकरण नहीं पहने थे. वह आतंकियों की एक आसान साजिश का शिकार हुए. निरंजन ने इस दौरान विशेष उपकरणों का भी सहारा नहीं लिया. मसलन, रिमोट कंट्रोल रोबोट जिसकी मदद से डेड बॉडी को हटाया जाता है. अब इसे बहादुरी कह लीजिए या बेवकूफी, उन्होंने अपनी जान गंवा दी. उनके साथ-साथ पांच अन्य जवान भी गंभीर रूप से घायल हो गए. निरंजन का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया. हजारों लोग उनके प्रति सम्मान जता रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच कोई यह सवाल नहीं पूछ रहा कि क्या वह सच में सम्मान के हकदार हैं.
इस संपादकीय को लेकर कई लोगों ने नाराजगी जताई है और ट्विटर पर भी बहस छिड़ गई.
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