राजस्थान में बॉलीवुड की फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती के सेट पर करणी सेना के हमले के बाद ये मामला काफी तूल पकड़ने लगा है, और फिर से एक फिल्मी चरित्र का ऐतिहासिक परम खोजने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है, और अब इतिहासकार भी इस मामले में सामने आ गए हैं.
आज, मध्यकालीन भारत के सबसे बड़े इतिहासकार इरफान हबीब ने दावा किया है कि जिस पद्मावती के अपमान को मुद्दा बनाकर करणी सेना और दूसरे संगठन हंगामा मचा रहे हैं, वैसा कोई कैरेक्टर असलियत में था ही नहीं, क्योंकि पद्मावती या पद्मिनी पूरी तरह से एक काल्पनिक चरित्र है.
इसी तरह रानी पद्मिनी के दावे के बारे में हमने दो इतिहासकारों से बात की, जिनका मनना है कि रानी पद्मिनी का कई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है और वो एक काल्पनिक चरित्र है.
दिल्ली विश्विद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर सुनील कुमार का मामना है कि मुहम्मद जायसी ने एपिक- "पदमावत" की रचना की, जिसके आधार पर रानी पद्मिनी के चरित्र का निर्माण किया गया, जिसका इतिहास से कोई लेना देना नहीं था.
दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज के इतिहास विभाग के प्राध्यापक, रविन्द्र कुमार सिन्हा, ने भी इस बात की पुष्टि की कि- रानी पद्मिनी के चरित्र का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, क्योंकि जायसी ने पद्मावत की रचना अलाउद्दीन खिलजी के शासन के करीब 240 साल बाद की थी, रानी पद्मिनी का चरित्र ठीक वैसा ही है जैसे की बहुचर्चित मुगल काल के दौरान अनारकली का था. जिसका भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है. जायसी रचित ‘पद्मावत’ दुनिया के श्रेष्ठ एपिक में गिनी जाती है, लेकिन इतिहास की कोई प्रामाणिक पुस्तक नहीं है.
वैसे, पद्मिनी के बारे में जो कुछ भी कहा, सुना या बताया जाता है, उसके मुताबिक, रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की...
राजस्थान में बॉलीवुड की फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती के सेट पर करणी सेना के हमले के बाद ये मामला काफी तूल पकड़ने लगा है, और फिर से एक फिल्मी चरित्र का ऐतिहासिक परम खोजने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है, और अब इतिहासकार भी इस मामले में सामने आ गए हैं.
आज, मध्यकालीन भारत के सबसे बड़े इतिहासकार इरफान हबीब ने दावा किया है कि जिस पद्मावती के अपमान को मुद्दा बनाकर करणी सेना और दूसरे संगठन हंगामा मचा रहे हैं, वैसा कोई कैरेक्टर असलियत में था ही नहीं, क्योंकि पद्मावती या पद्मिनी पूरी तरह से एक काल्पनिक चरित्र है.
इसी तरह रानी पद्मिनी के दावे के बारे में हमने दो इतिहासकारों से बात की, जिनका मनना है कि रानी पद्मिनी का कई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है और वो एक काल्पनिक चरित्र है.
दिल्ली विश्विद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर सुनील कुमार का मामना है कि मुहम्मद जायसी ने एपिक- "पदमावत" की रचना की, जिसके आधार पर रानी पद्मिनी के चरित्र का निर्माण किया गया, जिसका इतिहास से कोई लेना देना नहीं था.
दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज के इतिहास विभाग के प्राध्यापक, रविन्द्र कुमार सिन्हा, ने भी इस बात की पुष्टि की कि- रानी पद्मिनी के चरित्र का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, क्योंकि जायसी ने पद्मावत की रचना अलाउद्दीन खिलजी के शासन के करीब 240 साल बाद की थी, रानी पद्मिनी का चरित्र ठीक वैसा ही है जैसे की बहुचर्चित मुगल काल के दौरान अनारकली का था. जिसका भी कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है. जायसी रचित ‘पद्मावत’ दुनिया के श्रेष्ठ एपिक में गिनी जाती है, लेकिन इतिहास की कोई प्रामाणिक पुस्तक नहीं है.
वैसे, पद्मिनी के बारे में जो कुछ भी कहा, सुना या बताया जाता है, उसके मुताबिक, रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की अद्वितीय सुंदर पुत्री थी. रानी पद्मिनी का विवाह चित्तौड़ के राजा रत्नसिंह के साथ हुआ था. रानी पद्मिनी के रूप, यौवन और जौहर व्रत की कथा, मध्यकाल से लेकर वर्तमान काल तक चारणों, भाटों, कवियों, धर्मप्रचारकों और लोकगायकों द्वारा विविध रूपों एवं आशयों में व्यक्त हुई है. रानी पद्मिनी की खूबसूरती पर दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की नजर पड़ गई. अलाउद्दीन किसी भी कीमत पर रानी पद्मिनी को हासिल करना चाहता था, इसलिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया. पद्मिनी से संबंधित कथाओं में सर्वत्र यह स्वीकार किया गया है कि अलाउद्दीन ऐसा कर सकता था, लेकिन किसी विश्वसनीयता तथा लिखित प्रमाण के अभाव में ऐतिहासिक दृष्टि से इसे पूर्णतया सत्य मान लेना कठिन है.
और कहानी के अनुसार, राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी पद्मिनी का विवाह, चित्तौड़ के राजा रतन सिंह से हुआ था. वीरांगना होने के साथ-साथ रानी पद्मिनी बहुत खूबसूरत भी थीं. दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी, रानी की खूबसूरती पर मोहित था. किवदंती है कि खिलजी ने आईने में रानी पद्मिनी को देखा था और वो उसी से उन पर अभिभूत हो गया था. पद्मिनी के लिए खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया. इसके बाद उसने रानी पद्मिनी के पति राजा रतन सिंह को बंधक बना लिया और पद्मिनी की मांग करने लगा. इसके बाद चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने खिलजी को हराने के लिए संदेश भिजवाया कि अगली सुबह पद्मिनी उसके हवाले कर दी जाएगी. इसके लिए अगली सुबह 150 पालकियां खिलजी के शिविर की ओर भेजी गईं. पालकियों को वहीं रोक दिया गया जहां रतन सिंह बंदी बनाए गए थे. इसके बाद पालकियों से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा कर ले गए. जब खिलजी को इस बात की जानकारी हुई कि रतन सिंह को छुड़ा लिया गया है, तो उसने अपनी सेना को चितौड़ जाने का आदेश दिया. लेकिन वो किले में प्रवेश ना कर पाया. जिसके बाद खिलजी ने किले की घेराबंदी कर दी. ये घेराबंदी इतनी मजबूत थी कि धीरे-धीरे किले में राशन और खाद्य सामग्रियों के लिए दिक्कत हो गई. आखिरकार हार मान कर रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश और खिलजी से लड़ते हुए मारे गए. जिसके बाद चित्तौड़ की महिलाओं ने आग जलाई और अपनी आन-बान को बचाने के लिए रानी पद्मिनी ने आग में कूद कर अपनी जान दे दी. बताते हैं कि रानी पद्मिनी के बाद चित्तौड़ की औरतें इसी आग में कूद गईं थी.
भारत में बनने वाली बड़ी फिल्मों के साथ कॉन्ट्रोवर्सी का जुड़ जाना, नया नहीं है, और अगर फिल्में भारत के इतिहास के किसी पात्र से जुड़ा हो तो विवाद होना और भी लाजमी हो जाता है.
राजपूत करणी सेना की ओर से संजय लीला भंसाली की फिल्म की शूटिंग से पहले राजस्थान के इतिहास पर बने सीरियल जोधा अकबर और फिल्म का विरोध किया जा चुका है. सेना का तर्क रहता है कि राजस्थान के वीरतापूर्ण इतिहास के साथ छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जा सकती. अब अगर ये कहा जाता है कि फिल्म का विरोध करने वालों को इतिहास का ज्ञान नहीं है, तो इतना फिल्मकारों को भी तय करना होगा की फिल्म तो बने लेकिन मनोरंजन के उद्देश्य से, किसी की भावना से उन्हें भी खिलवाड़ करने का कोई हक़ नहीं बनता.
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