रविवार सुबह का वक्त था अस्पताल की साज-सज्जा चल रही थी, आज का दिन खास था. दरअसल पिछले दो दिन अस्पताल में वीवीआईपीयों के आने का सिलसिला चालू था. कम से कम इसी बहाने अस्पताल की साफ सफाई और धुलाई चल रही थी. अस्पताल को चमकाने की कोशिश में जुटा प्रशासन शायद अगर रोज इस ढंग से मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था देखता तो गुरुवार की भयावह घटना मासूम बच्चों की जान न लेती.
खैर छोड़िए गोरखपुर में बच्चों की मौत की खबर आम है. यहां बच्चे आकड़ों की भेंट चढ़ते ही रहते हैं.
चले आइए रविवार सुबह के सीन 1 पर-
बड़े-बड़े पुलिस के आला अधिकारी जूता चमकाए, टोपी पहने सलामी ठोकने चले आए थे. अस्पताल के डॉक्टर भी झक सफेद कोट पहने इंस्पेक्शन पर इंस्पेक्शन कर रहे थे. और क्यों ना हो, बड़ा मौका था 3 दिन के भीतर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोबारा बीआरडी मेडिकल कॉलेज आ रहे थे. फिर एक बार ख्याली तस्वीरें रंगी जाएंगी और लीपा पोती होगी...यह और बात है कि मौका शर्मनाक था.
गोरखपुर अस्पताल के दौरे पर योगी आदित्यनाथ
अब आखिरी सीन की झलक-
दौरे के बाद प्रेसवार्ता करते योगी आदित्यनाथ भावुक थे. मीडिया को चेताते हुए कह गए कि आपको 'फेक न्यूज़' नहीं दिखानी चाहिए. हम इस चेतावनी को बहुत गंभीरता से लेते हैं. इतनी गंभीरता से लेते हैं की हम खुद बयान नहीं कर सकते. मीडिया का 'पीपली लाइव' देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, ठीक उसी तरह जिस तरह मीडिया का पालतू होना. योगी जी आपने यह भी कहा कि वार्ड नंबर 100 के भीतर जाकर मीडिया खुद देखे कि कितनी सही व्यवस्था है. सीएम साहब हम आपकी मंशा पर शक नहीं कर रहे पर आपकी आंखें खोलने की कोशिश जरूर करेंगे.
अब सीन2-
सीएम के इंतज़ार में 11 बज रहे थे, उनका हेलीकॉप्टर लैंड करने ही वाला था...सब कुछ रूटीन से हटकर था. मीडिया के दबाव और जनता के आक्रोश ने सीएम को गोरखपुर आने पर मजबूर कर दिया था. पर इस हाई प्रोफाइल ड्रामे से परे शिवा के लिए वही बोरिंग दिन था. वो चिड़चिड़ा रहा था. रह-रह कर कुछ मन मे बड़बड़ाता. वार्ड नम्बर 100 दिमागी बुखार वाला वार्ड है. शिवा की मां यहां की हर एक दीवार हर एक कोने से वाकिफ थी. उसका इलाज कराते हुए यहां पर 4 महीने होने को आए थे.
शिवा अपने पिता के साथ
शिवा के पिता ने उसको गोद में उठाया और फिर चल दिए वार्ड नंबर 100 के बाहर. जी हां यह सच है कि शिवा को खतरनाक दिमागी बुखार है. वही बुखार जिसका निपटारा पिछले 40 सालों में नहीं हो पाया. आईसीयू से अभी उसका ट्रांसफर जनरल वार्ड में हुआ था, लेकिन पिछले तीन महीनों में एक दिन भी ऐसा नहीं बीता जब उसके पिता उसे यूं ही गोद में उठाकर बाहर सड़क के पास मौजूद पानी के टैंक के पास ना लाए हों. वो रोज यहीं पर नहाने आता है.
अस्पताल के बच्चे यहां नहाते हैं
सड़क के बगल में नाली के पास, गंदगी से भरी इस जगह में शिवा का रोज़ सैनिटाइज़ेशन होता है! माननीय मुख्यमंत्री जी सीएमओ की निगरानी में वार्ड नंबर 100 के भीतर जाकर मीडिया को ज्यादा खोजने की जरूरत ही नहीं है. यहां की बदइंतजामी तो खुद पैदल चलकर बाहर आ रही है.
सात साल के शिवा का क्या? उसके मां-बाप की जिंदगी तो पहले से ही संघर्ष है थोड़ा और संघर्ष कर लेंगे, और वैसे भी उनके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं. दरअसल इस देश में साफ-सफाई, खुशहाल जिंदगी पर सिर्फ अमीरों का अधिकार है. सवाल तो व्यवस्था का है, अगर दिमागी बुखार जैसी जानलेवा बीमारी का मरीज यूं खुलेआम गंदगी में नहा रहा है और फिर खुदा न खास्ता उसको कल कुछ हो जाए तो कौन होगा जिम्मेदार? कोई नहीं....
ठीक उसी तरह जब 9 तारीख को चार साल का दीपक कई घंटों तक इलाज के लिए तड़पता रहा, पर उसके पिता की मानें तो डॉक्टर आपके सामने इम्प्रेशन झाड़ने में मशरूफ़ थे...फिर क्या दीपक रूठ कर दुनिया से चला गया.
यह घिसी पिटी बहस हमने पहले भी की है और करते रहेंगे. दरअसल स्वतंत्रता दिवस का मौका है तो कोई सच सुनना नहीं चाहगे मगर गुस्ताखी माफ हो! अंतिम पंक्ति में खड़ा व्यक्ति अभी वहीं खड़ा है. मगर हम आज़ाद हैं. सियासतदानों की आंख तभी खुलती है जब गरीब सुर्खियां बनते हैं. मगर हम आज़ाद हैं. गरीब की मौत इस देश में तब भी आंकड़ा थी, अब भी आंकड़ा ही है...मगर हम आज़ाद हैं.
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