पिछले साल अपने एक कामुक उपन्यास "सीताज़ कर्स" के लिए रिसर्च के दौरान मैंने 30 महिलाओं पर एक सर्वे किया. इन सभी को मैं व्यक्तिगत तौर पर जानती हूं और वे दुनिया के अलग-अलग देशों में रहती हैं. सर्वे के लिए मैंने इन सभी से एक तरह के ही प्रश्न पूछे जो इस प्रकार हैं..
क्या आप पोर्न देखती हैं?
क्या आप हस्तमैथुन करती हैं?
क्या आपने कभी साइबर सेक्स किया है?
क्या कभी सेक्स के लिए पैसे खर्च किए हैं?
क्या आपके पति भी आपके साथ पॉर्न देखना पसंद करते हैं?
क्या आप लेस्बियन पोर्न/इंटररेसियल या जानवरों से संबंधित पॉर्न देखना पसंद करती हैं?
ईमानदारी से कहूं तो केवल कुछ महिलाओं ने इन सवालों के जवाब दिए. कुछ ने मुझ पर नाराजगी भी जताई. सभी की प्रतिक्रिया देख कर मुझे ऐसा लगा कि हस्तमैथुन वाला सवाल सब के लिए ज्यादा मश्किल रहा. शायद इसलिए कि इसे हमारे समाज में गंदा, नुकसान पहुंचाने वाला और खराब माना जाता है. साथ ही पकड़े जाने का भी डर है.
मैं इस विषय पर लिखने का विचार छोड़ चुकी थी कि तभी एक रात मेरी एक दोस्त ने केलिफोर्निया से फोन किया. उसकी शादी कॉलेज खत्म होने के कुछ दिन बाद ही हो गई थी. उसने स्वीकार किया कि वह बिना पोर्न देखे ऑर्गेजम महसूस नहीं करती. उसने साथ ही बताया कि वह कई बार सेक्स चैट भी करती है और कोशिश करती है कि उसके पति को यह पता नहीं चले. मेरी उस दोस्त ने बताया, 'जब से मेरे दूसरे बेटे का जन्म हुआ है, इंटरनेट पोर्न ही मेरी जिंदगी हो गई है. मैं इसे अपने पति के साथ इंजॉय करना चाहती हूं. पोर्न मुझे और जीवंत बना देता है. कोलकाता में तो हमारे 'ब्लू लगून' देखने पर भी मनाही थी. यहां कम से कम आजादी है. मुझे इंटररेसियल पसंद है. अफ्रीकी या अमेरिकी पुरुषों को देखना मुझे पसंद है. उनके पास........'
पोर्न का बड़ा बाजार- भारत
पिछले कुछ दिनों में भारत में पोर्न देखने पर बैन लगाने की बात पर काफी कुछ लिखा जा चुका है. लेकिन सच यह है कि वेब के लोकप्रिय होने का एक बड़ा...
पिछले साल अपने एक कामुक उपन्यास "सीताज़ कर्स" के लिए रिसर्च के दौरान मैंने 30 महिलाओं पर एक सर्वे किया. इन सभी को मैं व्यक्तिगत तौर पर जानती हूं और वे दुनिया के अलग-अलग देशों में रहती हैं. सर्वे के लिए मैंने इन सभी से एक तरह के ही प्रश्न पूछे जो इस प्रकार हैं..
क्या आप पोर्न देखती हैं?
क्या आप हस्तमैथुन करती हैं?
क्या आपने कभी साइबर सेक्स किया है?
क्या कभी सेक्स के लिए पैसे खर्च किए हैं?
क्या आपके पति भी आपके साथ पॉर्न देखना पसंद करते हैं?
क्या आप लेस्बियन पोर्न/इंटररेसियल या जानवरों से संबंधित पॉर्न देखना पसंद करती हैं?
ईमानदारी से कहूं तो केवल कुछ महिलाओं ने इन सवालों के जवाब दिए. कुछ ने मुझ पर नाराजगी भी जताई. सभी की प्रतिक्रिया देख कर मुझे ऐसा लगा कि हस्तमैथुन वाला सवाल सब के लिए ज्यादा मश्किल रहा. शायद इसलिए कि इसे हमारे समाज में गंदा, नुकसान पहुंचाने वाला और खराब माना जाता है. साथ ही पकड़े जाने का भी डर है.
मैं इस विषय पर लिखने का विचार छोड़ चुकी थी कि तभी एक रात मेरी एक दोस्त ने केलिफोर्निया से फोन किया. उसकी शादी कॉलेज खत्म होने के कुछ दिन बाद ही हो गई थी. उसने स्वीकार किया कि वह बिना पोर्न देखे ऑर्गेजम महसूस नहीं करती. उसने साथ ही बताया कि वह कई बार सेक्स चैट भी करती है और कोशिश करती है कि उसके पति को यह पता नहीं चले. मेरी उस दोस्त ने बताया, 'जब से मेरे दूसरे बेटे का जन्म हुआ है, इंटरनेट पोर्न ही मेरी जिंदगी हो गई है. मैं इसे अपने पति के साथ इंजॉय करना चाहती हूं. पोर्न मुझे और जीवंत बना देता है. कोलकाता में तो हमारे 'ब्लू लगून' देखने पर भी मनाही थी. यहां कम से कम आजादी है. मुझे इंटररेसियल पसंद है. अफ्रीकी या अमेरिकी पुरुषों को देखना मुझे पसंद है. उनके पास........'
पोर्न का बड़ा बाजार- भारत
पिछले कुछ दिनों में भारत में पोर्न देखने पर बैन लगाने की बात पर काफी कुछ लिखा जा चुका है. लेकिन सच यह है कि वेब के लोकप्रिय होने का एक बड़ा कारण पोर्न है.
इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश है. यहां करीब 30 करोड़ या उससे भी ज्यादा लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. आंकड़े बताते हैं कि यहां इंटरनेट का 60 प्रतिशत ट्रैफिक पोर्न से जुड़ा हुआ है. भारत में गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च करने वाले शब्दों में पोर्न भी शामिल है. लेकिन हमारे पुरुष प्रधान समाज में अब भी महिलाओं की आवाज सुनने को नहीं मिलती. पोर्न को भारत में बैन किया जाए या नहीं, इस पर भी महिलाओं का मत हमें नहीं मिल रहा है.
ऐसा क्यों है कि हम पोर्न को सीधे पुरुषों से जोड़ कर देखने लगते हैं? क्या महिलाओं से जोड़ कर देखने पर हमारी उनके बारे में छवि गंदी नजर आने लगेगी? क्या हम उन्हें वेश्या की तरह देखने लगेंगे? या फिर क्या हम महिलाओं के लिए ऐसे विषयों पर मूक बने रहना ज्यादा आसान है?
पिछले साल नवंबर में विश्व की सबसे बड़ी एडल्ट वेबसाइट पोर्नहब के एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले रहे. इसके अनुसार भारत में पोर्न देखने वाली महिलाओं की संख्य 25 प्रतिशत है. पूरे विश्व के औसत के मुकाबले यह संख्या दो प्रतिशत ज्यादा है.
हो सके तो हमें अमेरिकी लेखक गेल डाइंस की किताब 'पोर्नलैंड : हाउ पोर्न हैज हाइजैक्ड आवर सेक्सुअलिटी' से गुजरना चाहिए. किताब में इस बात का उल्लेख है कि पोर्नोग्राफी अब केवल मनोरंजन या रोमांच पैदा करने तक सीमित नहीं रह गया. यह अब महिलाओं और पुरुषों के सेक्सुअल व्यवहार के अंदर झांकने का भी साधन है.
हमें यह सवाल भी पूछना चाहिए कि महिलाओं की खुशी केवल पुरुषों की रजामंदी पर क्यों निर्भर है. क्यों ज्यादातर मर्द प्रेमी के तौर पर बिस्तर में अच्छे साबित नहीं होते.
सनी लियोन के भी आने से पहले इंटरनेट पर सविता भाभी नाम का एक कामुक पोर्नोग्राफीक कार्टून इंटरनेट पर काफी लोकप्रिय हुआ. इसमें अपने पति से निराश एक महिला अपनी लक्ष्मण रेखा पार करती दिखाई जाती है. सरकार को इस कार्टून पर 2009 में बैन लगाना पड़ा.
तो क्या यह पात्र भारतीय शादियों की असल कहानी कह रही थी? क्या सविता भाभी निराश भारतीय शादीशुदा महिलाओं का एक चरित्र पेश कर रही होती है, जो अपनी खुशी के लिए सेल्समैन और देवर को आकर्षित करने का प्रयास करती है.
सेक्स चैट के लिए हां, सेक्स शिक्षा के लिए ना
क्या हम कभी इस बात को स्वीकार कर सकेंगे कि ज्यादातर महिलाएं सेक्स के बारे में बात करने से हिचकती हैं? मां अपने सैनिटरी नैपकिंस छिपाती है और बहुत कम मौकों पर ही अपने बच्चों के सामने अपने पति के प्रति प्यार दर्शाती है? ऐसे माहौल में पोर्न ही सेक्स शिक्षा के तौर पर काम करता है? पोद्दार इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन ने 8000 लड़कियों और महिलाओं पर एक सेक्स सर्वे कराया. नतीजों के अनुसार इसमें 49 प्रतिशत लड़कियां अपने दोस्तों के साथ पोर्न देखने के बाद ही सेक्स के बारे में कुछ समझ बना सकी.
अगर सेक्स विशेषज्ञ 'कपल पोर्न' को किसी की निराश सेक्स जिंदगी में उत्साह भरने के लिए जरूरी मानते हैं, तो महिलाओं के मामले में दोहरा व्यवहार क्यों? कोई बॉलीवुड में बनने वाले डबल मीनिंग वाले गानों या 'कॉमेडी नाइट्स विथ कपिल' जैसे टीवी शो को बंद क्यों नहीं करता, जहां महिलाओं और ट्रांसजेंडर्स पर बराबर घटिया चुटकले बनाए जाते हैं? या फिर प्राइम टाइम में हमारे टीवी पर आने वाले उन सीरियलों को जो सेक्सुअल और इमोशनल हिंसा जैसे विषयों पर आधारित होते हैं?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.