भारतवर्ष में न जाने कितने योद्धा हुए होंगे जिन्होंने जंग जीती होगी. लेकिन इतिहास में जिस तरह का सम्मान वीर योद्धा महाराणा प्रताप को मिला है वो जगह शायद ही किसी को मिली हो. ये सम्मान इसलिए नहीं मिला था कि महाराणा प्रताप ने एक हल्दी-घाटी की एक लड़ाई जीत ली थी. इतिहास ऐसे वीर योद्धाओं से भरा है, जिन्होंने अनेको लड़ाईयां लड़ी और जीती है.
बड़ा सवाल है कि आखिर प्रताप में ऐसा क्या था जो उन्हें बाकी योद्धाओं से अलग बना गई और इतिहास में उनका नाम सबसे ऊपर दर्ज हो गया है. दरअसल, महाराणा आक्रमणकारी सम्राज्य को चुनौती देने वाले एक योद्धा के उस अदम्य साहस का नाम है जो हिंदुस्तान के सबसे शक्तिशाली शहंशाह के जुल्मों के खिलाफ उठ खड़ा होता है. महराणा प्रताप उस प्रतीक का नाम है जो आत्म-सम्मान की लड़ाई के लिए एक ऐसे हुकूमत को अकेले चुनौती देता है, जिसके पास जीत के लिए सबकुछ है. महराणा प्रताप उस प्रतिज्ञा का नाम है जिसकी पूर्ति के लिए जान तक न्यौछावर किया जा सकता है. महराणा प्रताप उदाहरण है ऐसे शख्सियत की जिनकी एक अवाज पर भामाशाह जैसा धनकुबेर अपने राज्य की रक्षा के लिए सबकुछ कुर्बान कर देता है. महराणा प्रताप उस खुद्दारी का नाम है जिसने समझौते के लिए भेजे गए अकबर के बड़े से बड़े प्रस्ताव को ठोकर मार दी थी. महराणा प्रताप इंसानियत के ऐसी मिसाल हैं, जिनका साथ आखिरी दम तक चेतक जैसा घोड़ा भी नहीं छोड़ता है.
सवाल उठता है कि क्या हम इतिहास को बदलकर महाराणा को कमतर नही कर रहे हैं. क्या प्रताप की गौरव-गाथा अबतक एक जीत की मोहताज रही है जिसे पूरी कर दी गई?
लेकिन आखिरकार राजस्थान की बीजेपी सरकार ने साढ़े चार सौ साल बाद राजपूत योद्धा महराणा प्रताप को हल्दी-घाटी के मशहूर युद्ध में मुगल शासक अकबर पर जीत दिला ही दी....
भारतवर्ष में न जाने कितने योद्धा हुए होंगे जिन्होंने जंग जीती होगी. लेकिन इतिहास में जिस तरह का सम्मान वीर योद्धा महाराणा प्रताप को मिला है वो जगह शायद ही किसी को मिली हो. ये सम्मान इसलिए नहीं मिला था कि महाराणा प्रताप ने एक हल्दी-घाटी की एक लड़ाई जीत ली थी. इतिहास ऐसे वीर योद्धाओं से भरा है, जिन्होंने अनेको लड़ाईयां लड़ी और जीती है.
बड़ा सवाल है कि आखिर प्रताप में ऐसा क्या था जो उन्हें बाकी योद्धाओं से अलग बना गई और इतिहास में उनका नाम सबसे ऊपर दर्ज हो गया है. दरअसल, महाराणा आक्रमणकारी सम्राज्य को चुनौती देने वाले एक योद्धा के उस अदम्य साहस का नाम है जो हिंदुस्तान के सबसे शक्तिशाली शहंशाह के जुल्मों के खिलाफ उठ खड़ा होता है. महराणा प्रताप उस प्रतीक का नाम है जो आत्म-सम्मान की लड़ाई के लिए एक ऐसे हुकूमत को अकेले चुनौती देता है, जिसके पास जीत के लिए सबकुछ है. महराणा प्रताप उस प्रतिज्ञा का नाम है जिसकी पूर्ति के लिए जान तक न्यौछावर किया जा सकता है. महराणा प्रताप उदाहरण है ऐसे शख्सियत की जिनकी एक अवाज पर भामाशाह जैसा धनकुबेर अपने राज्य की रक्षा के लिए सबकुछ कुर्बान कर देता है. महराणा प्रताप उस खुद्दारी का नाम है जिसने समझौते के लिए भेजे गए अकबर के बड़े से बड़े प्रस्ताव को ठोकर मार दी थी. महराणा प्रताप इंसानियत के ऐसी मिसाल हैं, जिनका साथ आखिरी दम तक चेतक जैसा घोड़ा भी नहीं छोड़ता है.
सवाल उठता है कि क्या हम इतिहास को बदलकर महाराणा को कमतर नही कर रहे हैं. क्या प्रताप की गौरव-गाथा अबतक एक जीत की मोहताज रही है जिसे पूरी कर दी गई?
लेकिन आखिरकार राजस्थान की बीजेपी सरकार ने साढ़े चार सौ साल बाद राजपूत योद्धा महराणा प्रताप को हल्दी-घाटी के मशहूर युद्ध में मुगल शासक अकबर पर जीत दिला ही दी. राजस्थान सरकार ने कक्षा 10 के सोशल साइंस की किताब में हल्दी-घाटी युद्ध के इतिहास को बदलते हुए लिख दिया है कि हल्दी-घाटी युद्ध में महराणा प्रताप जीते थे और अकबर की सेना हार कर भाग गई थी. अभी तक ये पढ़ाया जाता था कि हल्दी-घाटी की लड़ाई बेनतीजा रही थी.
अब सवाल है कि ये लिख देने भर से या फिर इतिहास को बदल देने भर से क्या महाराणा प्रताप पहले से ज्यादा वीर योद्धा बन गए या फिर पहले से ज्यादा महान हो गए. मूढ़ मगज नेताओं को कौन समझाए कि महाराणा प्रताप का प्रताप उनकी ओछी सियासत का मोहताज नहीं है. इनके सिलेबस बदलने से पहले भी महाराणा प्रताप करोड़ों भारतीयों को प्रेरणा देनेवाले वीर योद्धा थे और रहेंगे. प्रताप की वीरता को ओछी राजनीति का हथकंडा बनाकर हम उनकी वीर विरासत की बेईज्जती कर रहे हैं.
बीजेपी सरकार के इस पूरे एजेंडे को देखें तो इनका मोह कभी भी महराणा प्रताप की वीरता से उतना नहीं रहा जितनी इनकी नफरत अकबर से रही. राजस्थान में सरकार बनते ही सबसे पहले इन्होंने अकबर महान नाम के चैप्टर को हटाया और मोहरा प्रताप को बनाते हुए कुतर्क दिया कि अकबर महान क्यों महराणा प्रताप महान क्यों नही? जबकि अकबर महान लिखने के पीछे दूर-दूर तक हल्दी-घाटी की लड़ाई कोई वजह नहीं थी. लेकिन लोगों को सांप्रदायिक सोच के आधार पर समझाना ज्यादा आसान होता है, इसलिए बीजेपी सरकार ने अकबर के प्रति अपने नफरत का हिसाब प्रताप के बहाने से कर लिया. इसके बाद एक खबर आई की उदयपुर के राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के मीरा कन्या महाविद्यालय के एक प्रोफेसर डाक्टर चंद्रशेखर शर्मा ने एक शोध किया जिसमें पता चला है कि हल्दी-घाटी की 18 जून 1576 की लड़ाई में महराणा प्रताप ने अकबर को हराया था.
डॉ. शर्मा ने अपने शोध में प्रताप की जीत के पक्ष में ताम्र पत्रों से जुड़े प्रमाण जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा कराए हैं. शर्मा की खोज के अनुसार युद्ध के बाद अगले एक साल तक महाराणा प्रताप ने हल्दी-घाटी के आस-पास के गांवों की जमीनों के पट्टे ताम्र पत्र के रूप में जारी किए थे. इन ताम्र पत्रों पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर थे. उस समय जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार सिर्फ राजा को ही होता था. जिससे साबित होता है कि युद्ध महाराणा प्रताप ने ही जीता था. डॉ. शर्मा की शोध के मुताबिक हल्दी-घाटी युद्ध के बाद मुगल सेनापति मान सिंह व आसिफ खां से युद्ध के परिणामों को लेकर अकबर नाराज हुए थे. दोनों को छह महीने तक दरबार में नहीं आने की सजा दी गई थी. शर्मा कहते हैं कि अगर मुगल सेना जीतती, तो अकबर प्रिय सेनापतियों को दंडित नहीं करते. इससे साफ जाहिर है कि महाराणा ने हल्दी-घाटी के युद्ध को संपूर्ण साहस के साथ जीता था.
डा. शर्मा का ये शोध जयपुर के किशनपोल विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी विधायक मोहनलाल गुप्ता ने पढ़ी और राजस्थान सरकार से इतिहास बदलने के लिए चिट्ठी लिखी. इस चिट्ठी पर पहले राजस्थान विश्वविधालय के सिंडिकेट पर चर्चा हुई और डा. चंद्रशेखर शर्मा की खोज को सही मानते हुए राजस्थान विश्वविधालय ने अपने पाठ्यक्रम में बदलाव किया. राजस्थान विश्वविधालय के इतिहास विभाग ने स्ट्रगलिंग इंडिया (1200 से 1700 एडी) का नाम बदलकर गोल्डन एरा ऑफ इंडिया रख दिया और उसमें लिखा कि हल्दी-घाटी का युद्ध बेनतीजा नहीं थी बल्कि युद्ध महाराणा प्रताप ने जीता था. इसके बाद राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री ने भी अपना शोध निकाला और कहा कि अगर अकबर हल्दी-घाटी का युद्ध जीतता तो लौटकर 6 बार क्यों आता? इसलिए अबतक गलत पढ़ाया जाता था और अब इसे ठीक किया गया. लोगों ने कहा भी लड़ाई किसी नतीजे पर नहीं पहुंची थी इसीलिए आता था लेकिन शिक्षा मंत्री ने दसवीं के समाज विज्ञान के किताब में महाराणा प्रताप को विजेता घोषित कर दिया.
अभी तक के इतिहासकारों के अनुसार जयपुर के राजा और अकबर के सेनापति मान सिंह के नेतृत्व में हल्दी-घाटी की लड़ाई हुई थी. इसमें कोई फैसला नहीं हो पाया था और महाराणा प्रताप ने आदिवासी इलाके में अपना ठिकाना बना लिया था. इस लड़ाई के लिए प्रताप अफगान के लड़ाकू सेनापति हाकिम सूरी खान को लेकर आए थे जो प्रताप की तरफ से हिंदू सेनापति मान सिंह के साथ जमकर लड़ा. ये भी एक वजह है कि इस लड़ाई को कभी हिंदू-मुस्लिम की लड़ाई की नजरों से नहीं देखा गया. राजस्थान सरकार के नए इतिहास के अनुसार जयपुर के राजा मान सिंह ने मेवाड़ के बागी राजा महाराणा प्रताप के हाथों शिकस्त खाई थी. हालांकि ये भी सच है कि अकबर को इस लड़ाई की वजह से काफी धक्का लगा था और इसके बाद खुद उसने लगातार जयपुर और अजमेर के कई दौरे किए थे. प्रताप को समझौते के लिए कई प्रस्ताव भेजे थे, मगर प्रताप जीवन भर अपनी इस प्रतिज्ञा पर अटल रहे कि मुगल सम्राज्य को मेवाड़ में पैर नहीं पसारने देंगे. बस इसीलिए प्रताप हमारे प्रेरणा स्रोत हैं और रहेंगे.
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