रणवीर सिंह के नए कंडोम के विज्ञापन को देखकर लगता है जैसे सचमुच बदलाव की शुरुआत हो गई है. आज से पहले जितने भी कंडोम के विज्ञापन बनाये गये, हमेशा ही औरत के नग्न शरीर को दिखलाकर पुरुषों को भड़काया गया और औरतों को शर्मिंदा किया गया.
सनी लियोनी जैसी पोर्न स्टार के आने के बाद कंडोम इंडस्ट्री को कामुकता परोसने का सुगम माध्यम मिल गया, लेकिन सिर्फ कामुकता परोसने के लिये या कामेच्छा को भड़काने के लिये. उस विज्ञापन का प्रोटेक्शन से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है.
भारतीय सभ्यता में शुरू से ही लुभाने के लिये स्त्री शरीर पेश किया जाता रहा है. क्रिकेट के मैदान की चीयर गर्ल्स हों या हिंदी फिल्म का आइटम सॉन्ग,सेक्शुएलिटी का पर्याय स्त्री शरीर ही है. वस्तुतः इस समाज को स्त्री सेक्शुएलिटी से कोई लेना देना नहीं है. पति पत्नी के रिश्ते में भी शायद ही कोई पत्नी अपनी सेक्शुएलिटी के बारे में बात करती होगी. ना जाने कितनी रातें वो अपनी इच्छा को दबाकर सो जाती होगी, कि आखिर कहे तो कैसे...
हम अपने घर के लड़के से उसकी लड़की दोस्त को बड़ी आसानी से उसकी गर्लफ्रेंड कह देते हैं, लेकिन घर की लड़की के लड़के दोस्त को गलती से भी उसका बॉयफ्रेंड नहीं कहते. हम हमेशा से ही परवरिश के दौरान पुरुषों की सेक्शुएलिटी को पुश करते हैं और महिलाओं की सेक्शुएलिटी को सप्रेस करते रहते हैं. ये जेंडर गैप हम खुद बनाते हैं और दोष सोसाइटी को देते हैं.
लड़के बड़ी आसानी से कह जाते हैं मुझे फलां लड़की के बाल बहुत अच्छे लगते है या उसके गाल. लेकिन लड़की को फलां लड़का सिर्फ अच्छा लगता है. कुछ स्पेसिफिक नहीं होता है कि क्यों? फलां लड़के में...
रणवीर सिंह के नए कंडोम के विज्ञापन को देखकर लगता है जैसे सचमुच बदलाव की शुरुआत हो गई है. आज से पहले जितने भी कंडोम के विज्ञापन बनाये गये, हमेशा ही औरत के नग्न शरीर को दिखलाकर पुरुषों को भड़काया गया और औरतों को शर्मिंदा किया गया.
सनी लियोनी जैसी पोर्न स्टार के आने के बाद कंडोम इंडस्ट्री को कामुकता परोसने का सुगम माध्यम मिल गया, लेकिन सिर्फ कामुकता परोसने के लिये या कामेच्छा को भड़काने के लिये. उस विज्ञापन का प्रोटेक्शन से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है.
भारतीय सभ्यता में शुरू से ही लुभाने के लिये स्त्री शरीर पेश किया जाता रहा है. क्रिकेट के मैदान की चीयर गर्ल्स हों या हिंदी फिल्म का आइटम सॉन्ग,सेक्शुएलिटी का पर्याय स्त्री शरीर ही है. वस्तुतः इस समाज को स्त्री सेक्शुएलिटी से कोई लेना देना नहीं है. पति पत्नी के रिश्ते में भी शायद ही कोई पत्नी अपनी सेक्शुएलिटी के बारे में बात करती होगी. ना जाने कितनी रातें वो अपनी इच्छा को दबाकर सो जाती होगी, कि आखिर कहे तो कैसे...
हम अपने घर के लड़के से उसकी लड़की दोस्त को बड़ी आसानी से उसकी गर्लफ्रेंड कह देते हैं, लेकिन घर की लड़की के लड़के दोस्त को गलती से भी उसका बॉयफ्रेंड नहीं कहते. हम हमेशा से ही परवरिश के दौरान पुरुषों की सेक्शुएलिटी को पुश करते हैं और महिलाओं की सेक्शुएलिटी को सप्रेस करते रहते हैं. ये जेंडर गैप हम खुद बनाते हैं और दोष सोसाइटी को देते हैं.
लड़के बड़ी आसानी से कह जाते हैं मुझे फलां लड़की के बाल बहुत अच्छे लगते है या उसके गाल. लेकिन लड़की को फलां लड़का सिर्फ अच्छा लगता है. कुछ स्पेसिफिक नहीं होता है कि क्यों? फलां लड़के में ऐसा क्या है जो उसे अच्छा लगता है. ऐसे में यौनेच्छा जाहिर करना या उसपर बात करने को बेशर्मी की संज्ञा दी जाती है.
ऐसी ही बेशर्मी से भरे एक विज्ञापन में तापसी पन्नु का दिल बेईमान हो जाता है और वो लड़के की पतंग की डोर अपने दांतो से काट कर अपनी पीठ दिखाती हुई चल देती है.
हम ना तो महिलाओं की सेक्शुएलिटी पर बात करना चाहते हैं और न उसको स्वीकारते हैं. और जब भी किसी औरत ने बात करने की कोशिश की है उस पर तरह-तरह के आरोप लगाकर चुप करा दिया जाता है.
भारतीय समाज में पुरुषों के लिये औरत सेक्स टॉय है. कभी काम वासना जागृत करने के लिये तो कभी कामक्षुधा पूर्ति के लिये. लेकिन सच तो ये है कि पुरुषों की तरह महिलाओं को भी किसी के बाल अच्छे लगते है तो किसी की आंखें. सेक्शुएलिटी उसके अंदर भी होती है. महिलाओं की भी इच्छाएं होती हैं. और शायद इसी बात को ड्यूरेक्स का नया विज्ञापन भी कहता है, जिसमें कामुकता की जगह जरूरत को फिल्माया गया है, स्त्री शरीर को न परोसकर स्त्री की जरूरत दिखाई गई है.
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