मेरा फोन इतना व्यस्त कभी नहीं रहा. 'ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे' से बात करने के कुछ देर बाद ही मैं इंटरनेट पर वायरल हो गई. कई दूसरे नामों के साथ, मसलन #विक्टिम #सर्वाइवर आदि के साथ इंटरनेट पर मेरे बारे में बातें होने लगी.
मैंने अपने साथ हुई उस घटना का जिक्र पहले भी किया है. एक ऑटोबायोग्राफिकल प्ले में और दूसरी बार सार्वजनिक रूप से एक हिंदी चैनल पर. हां, मैंने इससे पहले इस घटना का जिक्र कभी सोशल मीडिया पर नहीं किया था.
मेरी पोस्ट पर कई लोगों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. इसमें पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं. हाल के दिनों में मुझे चार महिलाओं के बारे में पता चला कि वे भी घरेलू और यौन हिंसा का सामना कर रही हैं. लेकिन इसके बारे में किसी को बताने से डरती हैं. मैं उनकी मदद करना चाहती हूं लेकिन अगर वे इसे स्वीकार नहीं करना चाहती, फिर क्या. बाद में ऐसे लोगों की हम एक छवि गढ़ने लगते हैं, उन्हें कोसने लगते हैं कि- तुम मर्द नहीं हो, तुम कैसी औरत हो, यह सब तुम कैसे झेल सकती है...और पता नहीं क्या-क्या. ऐसा कर हम उनके ही मान-सम्मान को छोटा कर देते हैं. मैं अपनी कहानी से केवल यही बात कहना चाहती थी.
किसी घटना के बाद लोग हम सभी की छवि को पीड़िता या उससे बच निकलने वाले के रूप में स्थापित कर देते हैं. लेकिन मैं इन दोनों में से कोई भी नहीं हूं. मैं केवल मैं हूं. यह थोड़ी मुश्किल तुलना है लेकिन मैं केवल नारी अधिकारों का समर्थन करने वाली एक महिला हूं. यह और बात है कि हमारे देश में महिला अधिकारों की बात करने वालों को बुरा समझा जाता है. पुरुषों के खिलाफ मेरे दिल में कुछ भी नहीं है. मैं महिलावादी नहीं होने के मुकाबले मैं एक बुरी महिलावादी बनना ज्यादा पसंद करूंगी.
हम सब में से ज्यादातर लोगों ने यह छवि गढ़ रखी है कि भारत दुनिया का 'रेप कैपिटल' है. मेरी कहानी तो शिकागो ले जाती है. इसलिए भी मेरे लिए इस बारे में बात करना जरूरी था क्योंकि रेप एक वैश्विक समस्या है और हमें इसी मंच से इस बारे में बात करनी होगी. अगर आप मेरी कहानी पढ़ कर उन दुष्कर्मियों...
मेरा फोन इतना व्यस्त कभी नहीं रहा. 'ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे' से बात करने के कुछ देर बाद ही मैं इंटरनेट पर वायरल हो गई. कई दूसरे नामों के साथ, मसलन #विक्टिम #सर्वाइवर आदि के साथ इंटरनेट पर मेरे बारे में बातें होने लगी.
मैंने अपने साथ हुई उस घटना का जिक्र पहले भी किया है. एक ऑटोबायोग्राफिकल प्ले में और दूसरी बार सार्वजनिक रूप से एक हिंदी चैनल पर. हां, मैंने इससे पहले इस घटना का जिक्र कभी सोशल मीडिया पर नहीं किया था.
मेरी पोस्ट पर कई लोगों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. इसमें पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं. हाल के दिनों में मुझे चार महिलाओं के बारे में पता चला कि वे भी घरेलू और यौन हिंसा का सामना कर रही हैं. लेकिन इसके बारे में किसी को बताने से डरती हैं. मैं उनकी मदद करना चाहती हूं लेकिन अगर वे इसे स्वीकार नहीं करना चाहती, फिर क्या. बाद में ऐसे लोगों की हम एक छवि गढ़ने लगते हैं, उन्हें कोसने लगते हैं कि- तुम मर्द नहीं हो, तुम कैसी औरत हो, यह सब तुम कैसे झेल सकती है...और पता नहीं क्या-क्या. ऐसा कर हम उनके ही मान-सम्मान को छोटा कर देते हैं. मैं अपनी कहानी से केवल यही बात कहना चाहती थी.
किसी घटना के बाद लोग हम सभी की छवि को पीड़िता या उससे बच निकलने वाले के रूप में स्थापित कर देते हैं. लेकिन मैं इन दोनों में से कोई भी नहीं हूं. मैं केवल मैं हूं. यह थोड़ी मुश्किल तुलना है लेकिन मैं केवल नारी अधिकारों का समर्थन करने वाली एक महिला हूं. यह और बात है कि हमारे देश में महिला अधिकारों की बात करने वालों को बुरा समझा जाता है. पुरुषों के खिलाफ मेरे दिल में कुछ भी नहीं है. मैं महिलावादी नहीं होने के मुकाबले मैं एक बुरी महिलावादी बनना ज्यादा पसंद करूंगी.
हम सब में से ज्यादातर लोगों ने यह छवि गढ़ रखी है कि भारत दुनिया का 'रेप कैपिटल' है. मेरी कहानी तो शिकागो ले जाती है. इसलिए भी मेरे लिए इस बारे में बात करना जरूरी था क्योंकि रेप एक वैश्विक समस्या है और हमें इसी मंच से इस बारे में बात करनी होगी. अगर आप मेरी कहानी पढ़ कर उन दुष्कर्मियों के खिलाफ गुस्से से भर जाते हैं, तो इसका मतलब है कि मैं अपने प्रयास में विफल हो गई. मैं उन दोषियों को फांसी पर लटकाना नहीं चाहती. मैं केवल इतना चाहती हूं कि आप ऐसी घटनाओं को झेलने वालों से प्यार करें. उन्हें समाज में बराबरी का मौका दे. हम दुष्कर्मियों के बारे में शोध करने में कितनी उर्जा गंवाते हैं. लेकिन दुष्कर्म की शिकार महिलाओं के बारे में बात नहीं करते.
कुछ गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) अच्छा काम कर रहे हैं. ऐसे ही बेटी बचाओ आंदोलन भी अच्छी परियोजना है. मैंने जमीनी स्तर पर कुछ काम किए हैं और मेरा अनुभव है कि यह महिलाएं बहुत मजबूत हैं, साहसी हैं और ऐसे विषयों पर खुल कर बातचीत करने के लिए तैयार हैं. यहां शहरों में, वे सोचती हैं कि यह कोई पब्लिसिटी स्टंट हैं लेकिन गांवों में उन्हें मालूम है कि हम मदद करना चाहते हैं.
मैंने शिकागो अथॉरिटी को इस घटना के बारे में सूचित नहीं किया. मैंने किसी से कुछ नहीं कहा. मैं सदमे में थी. लेकिन अब यह जरूरी है कि मैं यह बताऊं कि मैंने छोटी ड्रेस पहन रखी थी. मैं नशे में थी और लाल लिपस्टिक लगाए हुई थी. मैं महिलाओं से कहना चाहती हूं कि आप जो चाहे पहन सकती हैं. लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आप ऐसी घटनाओं से रूबरू होना चाहती हैं. मेरी मां सिंगल है इसलिए मैंने इस बारे में बात नहीं की. मैं नहीं चाहती कि समाज उनको जज करना शुरू करे. लेकिन अब इन सब विषयों पर बात करने का समय आ गया है.
( जैसा शिल्पा रतनाम को बताया गया.)
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.