मैं तब 14 साल की थी. लड़कों से बात करना, बाइक चलाना, उनके साथ सिगरेट पीना...यह सब मेरी आदतों में शुमार था. तब अक्सर मेरी उन आदतों के कारण बांद्रा के लोग मुझे वेश्या कहकर बुलाते थे. मैं तब उस शब्द का अर्थ नहीं समझ सकी. लेकिन इन सब कामों को करने वालों को अगर वेश्या कहा जाता है तो मैं उसे खुशी से स्वीकार करने के लिए तैयार हूं.
पिता के निधन के बाद, मैं शिकागो चली गई. वहां मेरे तरह के और भी कई लोग थे. मैं उस आजाद माहौल में घुलमिल गई. अपने बालों और अपनी जिंदगी के साथ कई प्रयोग किए. वहां मैं सही मायनों में अपनी जिंदगी जी रही थी. शिकागो में क्रिसमस से एक दिन पहले शाम को देर रात मैं एक बार से निकली. छोटी ड्रेस और लाल लिपस्टिनक लगाए मैं अकेले ही नशे में घर की ओर चल पड़ी. मैं तब 24 साल की थी. अचानक लड़कों को एक ग्रुप आया. उन्होंने बंदूक की नोक पर मेरे साथ गैंगरेप किया गया. यह घटना मेरे दिमाग में कहीं जा कर बस गई और मैंने इसे किसी से साझा नहीं किया. लेकिन इसके बावजूद यह घटना मेरे स्वभाव और जोश को नहीं बदल सकी. मैं अब भी छोटे कपड़े पहनती हूं और मेरे होठों पर चटक लाल रंग आप अब भी देख सकते हैं.
आगे चलकर मैंने हाई स्कूल के अपने एक बेहद करीबी दोस्त से शादी की. इसके बाद मुझे घरेलू हिंसा भी झेलनी पड़ी. आखिरकार शादी टूट गई. मुझे हैरानी होती है कि नारी अधिकारों की बात करने वाली मुझ जैसी महिला के साथ यह सब कैसे हो सकता है.
ऐसा लेकिन होता है क्योंकि कई चीजें आपके हाथों में नहीं होतीं. हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां हर कोई अपनी आवाज उठाने और मुश्किल परिस्थितियों से बाहर आने के तनाव में है. लेकिन एक बात मैं कहना चाहती हूं. हम सब में से कोई पिटना नहीं चाहता, रेप का शिकार या अपना शरीर बेचना नहीं चाहता. मुझे अपने साथ घटी घटना को बताने में 20 साल लग गए. लेकिन मुझ जैसी महिला के लिए इसे इतने सालों तक अपने अंदर रखने को कमजोरी नहीं माना जाना चाहिए. यह मजबूती का प्रतीक है और हमें इसका सम्मान करना शुरू कर देना चाहिए.
(यह...
मैं तब 14 साल की थी. लड़कों से बात करना, बाइक चलाना, उनके साथ सिगरेट पीना...यह सब मेरी आदतों में शुमार था. तब अक्सर मेरी उन आदतों के कारण बांद्रा के लोग मुझे वेश्या कहकर बुलाते थे. मैं तब उस शब्द का अर्थ नहीं समझ सकी. लेकिन इन सब कामों को करने वालों को अगर वेश्या कहा जाता है तो मैं उसे खुशी से स्वीकार करने के लिए तैयार हूं.
पिता के निधन के बाद, मैं शिकागो चली गई. वहां मेरे तरह के और भी कई लोग थे. मैं उस आजाद माहौल में घुलमिल गई. अपने बालों और अपनी जिंदगी के साथ कई प्रयोग किए. वहां मैं सही मायनों में अपनी जिंदगी जी रही थी. शिकागो में क्रिसमस से एक दिन पहले शाम को देर रात मैं एक बार से निकली. छोटी ड्रेस और लाल लिपस्टिनक लगाए मैं अकेले ही नशे में घर की ओर चल पड़ी. मैं तब 24 साल की थी. अचानक लड़कों को एक ग्रुप आया. उन्होंने बंदूक की नोक पर मेरे साथ गैंगरेप किया गया. यह घटना मेरे दिमाग में कहीं जा कर बस गई और मैंने इसे किसी से साझा नहीं किया. लेकिन इसके बावजूद यह घटना मेरे स्वभाव और जोश को नहीं बदल सकी. मैं अब भी छोटे कपड़े पहनती हूं और मेरे होठों पर चटक लाल रंग आप अब भी देख सकते हैं.
आगे चलकर मैंने हाई स्कूल के अपने एक बेहद करीबी दोस्त से शादी की. इसके बाद मुझे घरेलू हिंसा भी झेलनी पड़ी. आखिरकार शादी टूट गई. मुझे हैरानी होती है कि नारी अधिकारों की बात करने वाली मुझ जैसी महिला के साथ यह सब कैसे हो सकता है.
ऐसा लेकिन होता है क्योंकि कई चीजें आपके हाथों में नहीं होतीं. हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां हर कोई अपनी आवाज उठाने और मुश्किल परिस्थितियों से बाहर आने के तनाव में है. लेकिन एक बात मैं कहना चाहती हूं. हम सब में से कोई पिटना नहीं चाहता, रेप का शिकार या अपना शरीर बेचना नहीं चाहता. मुझे अपने साथ घटी घटना को बताने में 20 साल लग गए. लेकिन मुझ जैसी महिला के लिए इसे इतने सालों तक अपने अंदर रखने को कमजोरी नहीं माना जाना चाहिए. यह मजबूती का प्रतीक है और हमें इसका सम्मान करना शुरू कर देना चाहिए.
(यह पोस्ट सबसे पहले 'ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे' के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ.)
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.