विगन समाज के बारे में सुना है आपने? मैंने इससे पहले नहीं सुना था. लेकिन बात हिंदुत्व, गोरक्षा, शाकाहार बनाम मांसाहार की करनी है, इसलिए जिक्र जरूरी है. ये ऐसे लोग हैं जिनके खानपान, रहन-सहन में पशुओं से आने वाले किसी भी प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं होता. मसलन, इनकी मान्यता है कि जानवर का दूध उसी जानवर के बच्चे के लिए ही होता है. वे अपने खाने में अंडा, शहद, दूध, दही आदि का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करते. यही नहीं, चमड़े से बने सामान, ऊन, साबुन, तेल या कॉस्मेटिक्स जिनमें जानवरों की खाल और उनके ऊपर प्रयोग आदि किए जाते हैं, इन सामानों का भी इस्तेमाल ये नहीं करते. मतलब, हमसे और आपसे से भी ज्यादा शाकाहारी किस्म के लोग.
इस हिसाब से देखें तो उनके लिए गाय भले ही माता न हो लेकिन गायों को इज्जत तो वे हमसे भी ज्यादा दे रहे हैं. आप और हम बस व्यापार कर रहे हैं. बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं.
मोहन भागवत का सुझाव
गाय की सुरक्षा कैसे हो. उनका संरक्षण कैसे किया जाए, इसे लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की ओर से नया सुझाव आया है! बातों-बातों में वह केन्या का उदाहरण दे गए. बकौल भागवत केन्या में गाय के वध पर प्रतिबंध है. वहां लोग गाय का सम्मान करते हैं. लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी हो जाती है मसलन सूखा वगैरह, तब उन लोगों को जान बचाने के लिए गाय का खून पीना पड़ता है.
कितने सरल तरीके से भागवत समझा गए कि कठिन परिस्थितियों में वहां के लोग बांस से बने एक ट्यूब को गाय के जेग्युलर वेन (गर्दन के पास का हिस्सा) में डालकर उसका रक्त पी लेते हैं. मानो केन्या के आदमी... आदमी न होकर कोई पिशाच हैं. मजेदार यह कि इस दौरान पूरा ख्याल रखा जाता है कि गाय मरे नहीं. हो सकता है ऐसा होता हो. मैनें थोड़ी बहुत रिसर्च भी की लेकिन हाथ कुछ नहीं आया. भागवत जी ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, इसलिए शायद ज्यादा जानते भी होंगे.
लेकिन अपने बयान से उन्होंने मेरी उलझन बढ़ा दी. पहला ये कि यह उदाहरण क्यों दिया गया, समझ नहीं आया. और दूसरा किसके...
विगन समाज के बारे में सुना है आपने? मैंने इससे पहले नहीं सुना था. लेकिन बात हिंदुत्व, गोरक्षा, शाकाहार बनाम मांसाहार की करनी है, इसलिए जिक्र जरूरी है. ये ऐसे लोग हैं जिनके खानपान, रहन-सहन में पशुओं से आने वाले किसी भी प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं होता. मसलन, इनकी मान्यता है कि जानवर का दूध उसी जानवर के बच्चे के लिए ही होता है. वे अपने खाने में अंडा, शहद, दूध, दही आदि का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करते. यही नहीं, चमड़े से बने सामान, ऊन, साबुन, तेल या कॉस्मेटिक्स जिनमें जानवरों की खाल और उनके ऊपर प्रयोग आदि किए जाते हैं, इन सामानों का भी इस्तेमाल ये नहीं करते. मतलब, हमसे और आपसे से भी ज्यादा शाकाहारी किस्म के लोग.
इस हिसाब से देखें तो उनके लिए गाय भले ही माता न हो लेकिन गायों को इज्जत तो वे हमसे भी ज्यादा दे रहे हैं. आप और हम बस व्यापार कर रहे हैं. बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं.
मोहन भागवत का सुझाव
गाय की सुरक्षा कैसे हो. उनका संरक्षण कैसे किया जाए, इसे लेकर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की ओर से नया सुझाव आया है! बातों-बातों में वह केन्या का उदाहरण दे गए. बकौल भागवत केन्या में गाय के वध पर प्रतिबंध है. वहां लोग गाय का सम्मान करते हैं. लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी हो जाती है मसलन सूखा वगैरह, तब उन लोगों को जान बचाने के लिए गाय का खून पीना पड़ता है.
कितने सरल तरीके से भागवत समझा गए कि कठिन परिस्थितियों में वहां के लोग बांस से बने एक ट्यूब को गाय के जेग्युलर वेन (गर्दन के पास का हिस्सा) में डालकर उसका रक्त पी लेते हैं. मानो केन्या के आदमी... आदमी न होकर कोई पिशाच हैं. मजेदार यह कि इस दौरान पूरा ख्याल रखा जाता है कि गाय मरे नहीं. हो सकता है ऐसा होता हो. मैनें थोड़ी बहुत रिसर्च भी की लेकिन हाथ कुछ नहीं आया. भागवत जी ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, इसलिए शायद ज्यादा जानते भी होंगे.
लेकिन अपने बयान से उन्होंने मेरी उलझन बढ़ा दी. पहला ये कि यह उदाहरण क्यों दिया गया, समझ नहीं आया. और दूसरा किसके लिए दिया गया गया. वे कहना क्या चाहते थे. क्या वे यह कहना चाहते हैं कि बीफ पसंद करने वालों के लिए कोई दूसरा रास्ता भी है. या फिर वे यह बताना चाहते थे कि गोबर और मूत्र के बाद गाय के रक्त में भी जीवन-रक्षण के गुण होते हैं.
एक और बात, भागवत जी जब आप यह लाइन कह रहे थे तो आपके चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आई! गुस्से का कोई भाव नहीं दिखा. आप जैसे लोग कैसे बड़े आराम से ऐसी कहानी सुना गए. गाय भले मरे नहीं लेकिन उसका खून चूसना... आपको अजीब नहीं लगता! मेरा तो चेहरा तमतमा गया. खून उबाल मार रहा है. छोड़िए पाकिस्तान को, असली दुश्मन तो अफ्रीका में छिपे बैठे हैं.
वैसे, कभी विनोबा भावे ने कहा था कि हिंदुस्तान में आज गाय की हालत उन देशों से भी खराब है, जहां कभी गाय या उनकी सेवा के बारे में बात नहीं की गई. यह दिलचस्प है कि आजादी के बाद से ही गोमांस के निर्यात पर प्रतिबंध होने के बावजूद 2014-15 के दौरान 24 लाख टन मीट का निर्यात हुआ और भारत में 4.8 अरब अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा आई. एक आंकड़े के अनुसार मांस के निर्यात और वध पर पूर्ण प्रतिबंध से देश की जीडीपी में 2 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है. तो बस... बात यही है कि हम व्यापार करते हैं, और यही होगा भी. रही बात कुछ 'कथित राष्ट्रवादियों' की, तो वे बस राजनीति ही करेंगे... इसके अलावा शायद वो कुछ कर भी न पाएं.
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