संयोग देखिए, महाराष्ट्र के शनि सिंगणापुर मंदिर में एक महिला ने पूजा-अर्चना क्या कर डाली, नौबत मंदिर के शुद्धिकरण की आ गई. और भारत के कथित खुले समाज से मीलों दूर रूढ़िवादी सऊदी अरब में पहली बार महिलाएं चुनाव लड़ने और वोट डालने के लिए कमर कस चुकी हैं. वैसे, इसमें कोई शक नहीं कि भारत और सऊदी अरब में महिलाओं की स्थिति में जमीन-आसमान का फर्क है. लेकिन ये दो अलग-अलग बातें दर्शाती हैं कि अब भी महिलाओं की आजादी, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर कितनी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.
900 से ज्यादा महिला उम्मीदवार
सऊदी अरब में 12 दिसंबर को निकाय चुनाव होने हैं. इस चुनाव में 900 से ज्यादा महिलाएं अपना भाग्य आजमाने जा रही हैं. इन महिला उम्मीदवारों ने रविवार को अपना चुनावी कैंपेन शुरू कर दिया. इस चुनाव में पहली बार महिलाएं को अपना वोट डालने का भी हक मिला है. वैसे, इस बार केवल 131,000 महिलाओं ने ही वोट के लिए खुद का मान रजिस्टर कराया है. जबकि पुरुष वोटरों की संख्या करीब 13 लाख है. यह समीकरण शायद किसी महिला उम्मीदवार की जीत के लिए पर्याप्त नजर नहीं आता हो. लेकिन चुनाव में खड़े होने के अधिकार को ही एक नई शुरुआत का संकेत जरूर माना जा सकता है.
सऊदी अरब में यह तीसरा निकाय चुनाव है. सबसे पहले 2005 में सऊदी अरब में म्युनिसिपल चुनाव हुए थे जिसकी शुरुआत किंग अब्दुल्ला ने की थी. इसके बाद दूसरा चुनाव 2009 में होना था लेकिन इसे दो साल की देरी से 2011 में आयोजित किया गया. किंग अब्दुल्ला का निधन इसी साल जनवरी में हुआ. इसके बाद किंग सलमान ने गद्दी संभाली और तय समय पर चुनाव कराने का फैसला किया. इस बार के चुनाव के खास बात यह भी है कि वोट देने की उम्र को 21 से घटाकर 18 साल कर दिया गया है. सऊदी अरब में 284 म्युनिसिपल काउंसिल के लिए होने वाले चुनाव में करीब 7000 उम्मीदवार हैं.
सऊदी अरब में पूर्ण रूप से राजतंत्र है. महिलाओं के साथ गैरबराबरी और इस्लाम के कड़े नियमों के कारण अक्सर साउदी अरब की आलोचना होती रहती है....
संयोग देखिए, महाराष्ट्र के शनि सिंगणापुर मंदिर में एक महिला ने पूजा-अर्चना क्या कर डाली, नौबत मंदिर के शुद्धिकरण की आ गई. और भारत के कथित खुले समाज से मीलों दूर रूढ़िवादी सऊदी अरब में पहली बार महिलाएं चुनाव लड़ने और वोट डालने के लिए कमर कस चुकी हैं. वैसे, इसमें कोई शक नहीं कि भारत और सऊदी अरब में महिलाओं की स्थिति में जमीन-आसमान का फर्क है. लेकिन ये दो अलग-अलग बातें दर्शाती हैं कि अब भी महिलाओं की आजादी, उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर कितनी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.
900 से ज्यादा महिला उम्मीदवार
सऊदी अरब में 12 दिसंबर को निकाय चुनाव होने हैं. इस चुनाव में 900 से ज्यादा महिलाएं अपना भाग्य आजमाने जा रही हैं. इन महिला उम्मीदवारों ने रविवार को अपना चुनावी कैंपेन शुरू कर दिया. इस चुनाव में पहली बार महिलाएं को अपना वोट डालने का भी हक मिला है. वैसे, इस बार केवल 131,000 महिलाओं ने ही वोट के लिए खुद का मान रजिस्टर कराया है. जबकि पुरुष वोटरों की संख्या करीब 13 लाख है. यह समीकरण शायद किसी महिला उम्मीदवार की जीत के लिए पर्याप्त नजर नहीं आता हो. लेकिन चुनाव में खड़े होने के अधिकार को ही एक नई शुरुआत का संकेत जरूर माना जा सकता है.
सऊदी अरब में यह तीसरा निकाय चुनाव है. सबसे पहले 2005 में सऊदी अरब में म्युनिसिपल चुनाव हुए थे जिसकी शुरुआत किंग अब्दुल्ला ने की थी. इसके बाद दूसरा चुनाव 2009 में होना था लेकिन इसे दो साल की देरी से 2011 में आयोजित किया गया. किंग अब्दुल्ला का निधन इसी साल जनवरी में हुआ. इसके बाद किंग सलमान ने गद्दी संभाली और तय समय पर चुनाव कराने का फैसला किया. इस बार के चुनाव के खास बात यह भी है कि वोट देने की उम्र को 21 से घटाकर 18 साल कर दिया गया है. सऊदी अरब में 284 म्युनिसिपल काउंसिल के लिए होने वाले चुनाव में करीब 7000 उम्मीदवार हैं.
सऊदी अरब में पूर्ण रूप से राजतंत्र है. महिलाओं के साथ गैरबराबरी और इस्लाम के कड़े नियमों के कारण अक्सर साउदी अरब की आलोचना होती रहती है. यहां महिलाओं को गाड़ी चलाने तक का अधिकार नहीं है. ऐसे में कम से कम चुनाव के बहाने कुछ और बड़े बदलाव की उम्मीद तो की ही जा सकती है.
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