ब्राजील फिलहाल भले ही ओलंपिक खेलों के उत्साह में डूबने जा रहा है. लेकिन इसी साल मई में रियो डी जनेरियो में जब एक 16 साल की लड़की के साथ 30 लोगों द्वारा गैंगरेप की खबर आई, तो पूरी दुनिया सकते में रह गई. लड़की के साथ न केवल रेप हुआ बल्कि उस पूरे हादसे का वीडियो बनाया गया. उसे सोशल मीडिया पर डाला गया. देखते ही देखते वीडियो वायरल हो गया. जब तक पुलिस और प्रशासन जागती, देर हो चली थी.
इसके बाद ब्राजील में रेप के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और आंदोलन कई दिनों तक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे. इस बीच कई लोगों ने उस लड़की को भी रेप के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की. उसे जान से मारने तक की धमकियां मिली.
बहरहाल, रेप को लेकर पहले भी तमाम प्रकार की बहसें होती रही हैं लेकिन क्या किसी को रेप देखने में भी मजा आ सकता है? ये सवाल असंवेदनशील है. लेकिन पूछना जरूरी भी. गूगल पर 'रेप वीडियोज' सर्च कीजिए और इस सवाल का जवाब चंद सेकंड में आपके सामने होगा. जाहिर है, ऐसे वीडियोज खूब देखे जाते हैं. इसलिए ऐसे बीमार मानसिकता वाले लोगों के लिए इंटरनेट पर पूरा बाजार मौजूद है.
इंटरनेट पर लगाम लगाना भले मुश्किल हो लेकिन तब क्या जब पुलिस की नाक के नीचे भरे बाजार में ऐसे वीडियो का सौदा होने लगे. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे उत्तर प्रदेश में पुलिस की नाक के नीचे ऐसे वीडियोज महज 50 से 150 रुपये के बीच खरीदे और बेचे जा रहे हैं. 30 सेकेंड से 5 मिनट तक के ऐसे वीडियो की खूब डिमांड है. दुकानदार इन्हें या तो सीधे आपके स्मार्टफोन में डाउनलोड कर देगा या फिर पेन ड्राइव में दे देगा. वीडियो कितना नया है, इस आधार पर इसके रेट तय हो जाते हैं.
पैसे देकर रेप देखने की ये कैसी... ब्राजील फिलहाल भले ही ओलंपिक खेलों के उत्साह में डूबने जा रहा है. लेकिन इसी साल मई में रियो डी जनेरियो में जब एक 16 साल की लड़की के साथ 30 लोगों द्वारा गैंगरेप की खबर आई, तो पूरी दुनिया सकते में रह गई. लड़की के साथ न केवल रेप हुआ बल्कि उस पूरे हादसे का वीडियो बनाया गया. उसे सोशल मीडिया पर डाला गया. देखते ही देखते वीडियो वायरल हो गया. जब तक पुलिस और प्रशासन जागती, देर हो चली थी. इसके बाद ब्राजील में रेप के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और आंदोलन कई दिनों तक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में छाए रहे. इस बीच कई लोगों ने उस लड़की को भी रेप के लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की. उसे जान से मारने तक की धमकियां मिली. बहरहाल, रेप को लेकर पहले भी तमाम प्रकार की बहसें होती रही हैं लेकिन क्या किसी को रेप देखने में भी मजा आ सकता है? ये सवाल असंवेदनशील है. लेकिन पूछना जरूरी भी. गूगल पर 'रेप वीडियोज' सर्च कीजिए और इस सवाल का जवाब चंद सेकंड में आपके सामने होगा. जाहिर है, ऐसे वीडियोज खूब देखे जाते हैं. इसलिए ऐसे बीमार मानसिकता वाले लोगों के लिए इंटरनेट पर पूरा बाजार मौजूद है. इंटरनेट पर लगाम लगाना भले मुश्किल हो लेकिन तब क्या जब पुलिस की नाक के नीचे भरे बाजार में ऐसे वीडियो का सौदा होने लगे. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे उत्तर प्रदेश में पुलिस की नाक के नीचे ऐसे वीडियोज महज 50 से 150 रुपये के बीच खरीदे और बेचे जा रहे हैं. 30 सेकेंड से 5 मिनट तक के ऐसे वीडियो की खूब डिमांड है. दुकानदार इन्हें या तो सीधे आपके स्मार्टफोन में डाउनलोड कर देगा या फिर पेन ड्राइव में दे देगा. वीडियो कितना नया है, इस आधार पर इसके रेट तय हो जाते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक एक दिन में सैकड़ों से लेकर हजारों वीडियो बेचे जा रहे हैं. अखबार ने जब एक दुकानदार से बात की तो उसने जो कहा वो बेहद हैरान करने वाला है. 'पोर्न अब पुरानी बात हो चली है. आजकल लोग असली क्राइम देखना पसंद करते हैं.' ये आगरा के कासगंज बाजार के एक दुकानदार के शब्द हैं और खतरनाक इशारा भी. तो क्या जो लोग रेप जैसे संगीन अपराध को अंजाम देते हैं, उनसे आगे एक और तबका तैयार हो रहा है जो रेप के वीडियोज को देखने में दिलचस्पी रखता है. और अगर हां, तो क्यों? यह भी पढ़ें- बलात्कार पीड़ित की जाति पूछ रहे हैं तो दुष्कर्मी आप भी हैं! यही नहीं, कई जगहों पर तो एक गैंग तैयार हो गया है जो फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया या दूसरे साइट्स से इन वीडियो को निकालता है और फिर इन्हें बेचा जाता है. सावधानी भी पूरी रखी जाती है. बहुत भरोसेमंद ग्राहक को ही ऐसे वीडियो बेचे जाते हैं. सोचिए, एक रेप को देखने के लिए जो लोग पैसे दे रहे हैं. उनकी मानसिकता किस स्तर पर है. ऐसे लोगों की पहचान कब और कैसे की जाए. और फिर यूपी की बात क्यों करें. जब यूपी की दुकानों में ऐसे वीडियो खरीदे और बेचे जा रहे हैं, तो जरूर कई और राज्यों में भी ये खेल चल रहा होगा. इंटरनेट ने आसान रास्ता मुहैया कराया है और मोबाइल कैमरे ऐसी घटनाओं को अंजाम देने का बड़ा जरिया. ये वीडियो बनाए जाते हैं ताकि रेप पीड़िता को ब्लैकमेल किया जा सके या फिर उन्हें चुप रहने के लिए मजबूर. कई बार इसका इस्तेमाल भविष्य में भी पीड़िता को परेशान करने के लिए किया जाता है. यह भी पढ़ें- गैंगरेप के पीड़ितों की बेबसी! 'इंसाफ न मिला तो खुदकुशी कर लेंगे' नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2014 की ही रिपोर्ट लीजिए तो देश में साइबर क्राइम से जुड़े 9,600 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. इसमें ऑनलाइन ट्रॉलिंग से लेकर वीडियोज को सोशल साइट्स और दूसरे वेबसाइट्स पर डालने तक के अपराध शामिल हैं. हाल में सोशल मीडिया और इंटरनेट की पहुंच जितनी सुलभ हुई है, उसने एक-दूसरे तक की पहुंच को आसान तो बनाया ही है. क्राइम के एक नए ट्रेंड को भी जगह दे दी है. अब यहां ब्लैकमेल भी किया जाता है और जान से मारने की धमकी भी. महिला और बाल विकास मंत्रालय संभाल रहीं मोनिका गांधी ने हाल में महिलाओं के खिलाफ ऑनलाइन ट्रॉलिंग के बारे में चिंता जताते हुए कहा था कि इसे भी हिंसा माना जाएगा. लेकिन सवाल है कि ऐसे मामलों पर लगाम कैसे लगेगी क्योंकि 29 में से केवल 19 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में ही साइबर क्राइम सेल मौजूद हैं. इसलिए फिलहाल तो पुलिस बाजार में हो रहे काले धंधों पर ही लगाम लगा ले तो ही बहुत है. लेकिन उन खरीदारों की सोच पर लगाम कैसे लगाई जाए? ये सवाल अब भी अपनी जगह कायम है. यह भी पढ़ें- सोशल मीडिया पर तीन चौथाई महिला शिकार हैं साइबर ट्रॉलिंग की इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |