हर इंसान का एक सपना होता है, और मैं कोई अलग नहीं हूं. जो किसी ने भी न किया हो वो करना किसी भी पत्रकार का सपना होता है, मेरा भी है.
टीवी पत्रकार अक्सर अपनी कैमरा टीम के साथ ही सफर करते हैं, पर यहां मैं औरों से जरा अलग हूं. अपने 15 साल के करियर में मैं शायद ये सबसे बड़ा रिस्क ले रही थी. मैं ऐसी जगह पर अकेले यात्रा कर रही थी जहां पर किसी भी पत्रकार के जाने की सख्त मनाही है.
देश था भूटान, और मेरा लक्ष्य था डोकलाम.
डोकलाम के बारे में भारतीय सुन तो रहे हैं लेकिन बॉर्डर पर जिन लोगों की तैनाती है, सिर्फ उन्होंने ही इसे देखा है. सवाल ये है कि ये इलाका कैसा दिखाई देता है और ये यात्रा नागरिकों और सेना के लिए कितनी कठिन है?
यहां तैनात सिपाही के लिए तो यहां होना उसकी ड्यूटी है, लेकिन यहां नागरिकों को भी आने-जाने दिया जाता है. जिस आखिरी खंड तक आप पहुंच सकते हैं वो है 'हा' जिला- जो भूटान की सीमा का आखिरी छोर है, और तिब्बत के साथ सीमा साझा करता है.
विदेशी नागरिकों का हा घाटी तक पहुंचना ही असंभव है, क्योंकि थिंपू या पारो के आगे आने-जाने की अनुमति नहीं है. और यही वो चुनौती वाली जगह थी. एक अनजाने इलाके में यात्रा करना, जोखिम उठाकर उन इलाकों पर पहुंचना, जहां पहले कोई भी भारतीय पत्रकार नहीं गया हो.
हम पत्रकारों को ये अहसास नहीं होता लेकिन हम अक्सर अपनी बॉडी लैंग्वेज से अपना परिचय खुद ही दे देते हैं. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. एक इमिग्रेशन अफसर ने तुरंत ये समझ लिया कि मैं एक सामान्य यात्री नहीं हूं, और वो मुझसे पूछताछ करने लगा.
आप भूटान में क्या कर रही हैं?
क्या इस देश में किसी को पता है कि आप भूटान की यात्रा पर हैं?
क्या आप भूटान में किसी को जानती हैं?
वो और उनके साथी मुझसे इस...
हर इंसान का एक सपना होता है, और मैं कोई अलग नहीं हूं. जो किसी ने भी न किया हो वो करना किसी भी पत्रकार का सपना होता है, मेरा भी है.
टीवी पत्रकार अक्सर अपनी कैमरा टीम के साथ ही सफर करते हैं, पर यहां मैं औरों से जरा अलग हूं. अपने 15 साल के करियर में मैं शायद ये सबसे बड़ा रिस्क ले रही थी. मैं ऐसी जगह पर अकेले यात्रा कर रही थी जहां पर किसी भी पत्रकार के जाने की सख्त मनाही है.
देश था भूटान, और मेरा लक्ष्य था डोकलाम.
डोकलाम के बारे में भारतीय सुन तो रहे हैं लेकिन बॉर्डर पर जिन लोगों की तैनाती है, सिर्फ उन्होंने ही इसे देखा है. सवाल ये है कि ये इलाका कैसा दिखाई देता है और ये यात्रा नागरिकों और सेना के लिए कितनी कठिन है?
यहां तैनात सिपाही के लिए तो यहां होना उसकी ड्यूटी है, लेकिन यहां नागरिकों को भी आने-जाने दिया जाता है. जिस आखिरी खंड तक आप पहुंच सकते हैं वो है 'हा' जिला- जो भूटान की सीमा का आखिरी छोर है, और तिब्बत के साथ सीमा साझा करता है.
विदेशी नागरिकों का हा घाटी तक पहुंचना ही असंभव है, क्योंकि थिंपू या पारो के आगे आने-जाने की अनुमति नहीं है. और यही वो चुनौती वाली जगह थी. एक अनजाने इलाके में यात्रा करना, जोखिम उठाकर उन इलाकों पर पहुंचना, जहां पहले कोई भी भारतीय पत्रकार नहीं गया हो.
हम पत्रकारों को ये अहसास नहीं होता लेकिन हम अक्सर अपनी बॉडी लैंग्वेज से अपना परिचय खुद ही दे देते हैं. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. एक इमिग्रेशन अफसर ने तुरंत ये समझ लिया कि मैं एक सामान्य यात्री नहीं हूं, और वो मुझसे पूछताछ करने लगा.
आप भूटान में क्या कर रही हैं?
क्या इस देश में किसी को पता है कि आप भूटान की यात्रा पर हैं?
क्या आप भूटान में किसी को जानती हैं?
वो और उनके साथी मुझसे इस स्तर तक पूछताछ करते रहे कि उन्होंने मुझे मेरे सामान की तलाशी लेने की धमकी भी दी. और बताया भी कि अगर उन्होंने ये सिद्ध कर दिया कि मेरे इरादे कुछ और हैं, तो वो मुझे तुरंत गिरफ्तार कर लेंगे.
चेहरे पर मुस्कुराहट लिए मैंने शांति से कहा 'ठीक है ऑफिसर, धन्यवाद'.
मुझे आश्चर्य हुआ कि वो ऑफिसर मुझपर चिल्लाया और पूछा कि मैं मुस्कुरा क्यों रही थी. 'मुस्कुराइए नहीं, ये आपका देश नहीं है. आप एक दूसरे देश में प्रवेश कर रही हैं और यहां हमारे देश का कानून चलता है'
इतने सालों में पहली बार मुझे अहसास हुआ कि चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ धन्यवाद देना भी आपको गिरफ्तार करवा सकता है.
आखिरकार, सामान्य से दुगना किराया देकर मुझे हा जाने के लिए एक साधन मिला. लेकिन मुझे केवल थिंपू और पारो जाने की ही इजाज़त मिली थी.
फुएंटशोलिंग और पारो के बीच दो इमिग्रेशन चेक गेट हैं और हर चेक गेट पर अधिकारियों द्वारा पूछे गए सवालों के साथ मेरे दिल की धड़कनें बढ़ती गईं. मुझे डर लग रहा था कि अगर उन्हें मेरी वास्तविक पहचान पता चल गई तो?
किस्मत से पारो के रास्ते में स्पीड चैक पेट्रोलिंग और सामानों की स्कैनिंग की जा रही थी. मैं आखिरकार देर रात पारो पहुंची और थका देने वाली इस यात्रा के बाद अपने होटल पहुुंची. मैंने अपने आपको शांत किया क्योंकि मेरे ड्राइवर या होटल के अधिकारियों, किसी ने भी कोई परेशानी खड़ी नहीं की थी जिसकी वजह से मुझे भूटान की रॉयल सरकार की पुलिस हिरासत में जाना पड़ता.
अगली सुबह 6 बजे, मैं चिलेला जाने के लिए तैयार थी. उस सड़क पर, जो हा के सबसे नजदीक पहुंचती थी. (ये बिल्कुल वैसा था जैसे आपको कोलकाता से दिल्ली का सफर करना है और आपके पास केवल कानपुर तक का टिकिट हो)
यहां मैं पारो से हा की यात्रा कर रही थी, जिसके आने-जाने का रास्ता करीब 150 किलोमीटर का है. जाने का परमिट भी नहीं, और अधिकारी थोड़ी थोड़ी दूर पर चैकिंग कर रहे थे.
वो एक शानदार सुबह थी. भगवान को जितना धन्यवाद देती उतना कम होता, क्योंकि बारिश नहीं हो रही थी और वहां हमेशा रहने वाला घना कोहरा भी गायब था.
जिस वक्त मैंने बैकग्राउंड में पारो हवाई अड्डे से कैमरे से अपनी यात्रा को रिकॉर्ड करना शुरू किया, मेरा ड्राइवर घबरा गया. वह जानना चाहता था कि आखिर मैं कर क्या रही हूं?
मैं पूरी कोशिश कर रही थी कि मैं अपना धैर्य न खो दूं. मैंने बहुत सी ऐसी कहानियां सुन रखी थीं, जब अकेले यात्रियों को भूटान में यात्रा के दौरान बहुत भयानक अनुभवों से गुजरना पड़ा था. खासकर जब आप एक महिला हों तो. आपको हर स्टॉप पर सफाई देनी होती. न सिर्फ आपके सिंगल होने पर, बल्कि इस बात पर भी कि आपको अकेले क्यों आना पड़ा.
घुमावदार सड़कों को पार करके आखिरकार मैं चेलेला पहुंच गई. 3,988 किलोमीटर की ऊंचाई पर, यह बहुत पुरानी जगह है. चेलाला आखिरी पर्यटन स्थल है, लेकिन इसे डोकलाम गतिरोध की वजह से इस साल जून से बंद कर दिया है. और चेलेला से कुछ ही किलोमीटर दूर है हा. लेकिन वहां प्रवेश करना नामुमकिन है. जहां हर पांच मिनट में सेना की गाड़ियां पास से गुजर रही हों, कुछ संदेह की वजह से रुक भी रही हों, ऐसे में मेरे लिए वहां जाना काफी चुनौतीपूर्ण काम था.
हा आखिरी जिला था और उस पूरे इलाके की कई जगहें भारतीय सेना और भूटान की रॉयल सेना के नियंत्रण क्षेत्र में थीं. हा में एक रणनीतिक प्रशिक्षण केंद्र भी है, जहां भारतीय सेना रॉयल भूटान सेना कर्मियों को प्रशिक्षण देती है. और सबसे महत्वपूर्ण ये, कि हा अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रिहाइश के लिए आखिरी स्थान है.
भूटान के इस सबसे छोटे जिले में प्रवेश की इजाज़त सिर्फ वहां के नागरिकों या फिर उनके रिश्तेदारों को ही है, वो भी पूर्व अनुमति के साथ.
हा में एक तरफ भारत और दूसरी तरफ तिब्बत है और उसके ठीक आगे डोकलाम. इसकी ऊंचाई और बड़े-बड़े पहाड़ों ने इस इलाके को बेहद खूबसूरत बनाया दिया है. और सन्नाटा इस कदर है, जैसे इशारा कर रहा हो कि आपपर नजर रखी जा रही है.
कुछ मुट्ठी भर घर हैं, जहां कुछ सौ नागरिक रहते होंगे. कुछ हजार सैनिक होंगे. कुछ लाख लोग इसकी स्थिति का जायजा ले रहे होंगे और कुछ करोड़ इसपर होने वाली गतिविधियों के बारे में पढ़ या देख रहे होंगे.
तो ये था डोकलाम.
फोटो से लेकर वीडियो तक, मेरे पास सब थे. जब तक कि मेरे ड्राइवर ने दोबारा मुझसे सवाल नहीं किए और मुझे घूरा नहीं. जो रिस्क मैंने उठाया था वो उस ड्राइवर को भी परेशानी में डाल सकता था. (अगर पकड़े जाते, उसे इन निषिद्ध क्षेत्रों में ड्राइविंग करने के लिए उसे अपने ड्राइविंग लाइसेंस से हाथ धोना पड़ता)
कुछ ही मिनटों में मुझे उस निषिद्ध क्षेत्र से बाहर चेलेला की तरफ जाना पड़ा. चेलेला में बूंदा-बांदी हो रही थी.
खाना बेचने वाला एक वाहन वहां खड़ा था और जैसे ही उसने दरवाजा खोला... ताजा ताजा मोमोज़, अदरक वाली चाय और मैगी ने मुझे सुकून दिया. मुझे याद नहीं पड़ता कि अपने पूरे जीवन में पहले कब खाना खाकर (मैगी खाकर) मुझे इतनी शांति महसूस हुई थी.
एक कप गर्म चाय और एक बाउल मैगी जिसे बाजार भाव से 20 गुना ज्यादा देकर लिया था, उसका स्वाद लाजवाब था.
जैसे ही मैंने चाय की चुस्की ली, मुझे ख्याल आया कि घर आकर कितना सुखद लगेगा. पहाड़ी से नीचे आने का सफर बहुत लंबा लग रहा था. इसलिए क्योंकि मुझे अपने कैमरे के साथ पकड़े जाने का डर था.
आखिरकार जब मैं भारतीय क्षेत्र में पहुंची, पता नहीं मुझे क्या हुआ. मैंने तारों से ढके हुए आसमान को देखा और चिल्लाई 'मैंने कर दिखाया. थैंक्यू गॉड'
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