सुकमा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुआ नक्सली हमला विगत डेढ़ महीने में रोड ओपनिंग पार्टी के तौर पर गश्त करने वाले सीआरपीएफ दल पर दूसरा बड़ा हमला था. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सुकमा हमले की चुनौती पर कहा कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा. तो क्या मान लिया जाये कि अब छत्तीसगढ़ सरकार के अलावा केंद्र सरकार भी इस नक्सली हमले के बाद किसी ठोस नीति और कार्रवाई पर जल्द अमल करने की तैयारी में है? आज सरकार सुकमा हमले पर एक खास बैठक भी कर रही है.
दूसरा पहलू ये है कि गरीबी से जूझते इस इलाके में अगर सड़कों का निर्माण हो जाएगा तो वहां बुनियादी सुविधाएं जैसे स्कूल, हॉस्पिटल, सबसे बड़ी- रोजगार की समस्या और अन्य सुविधाएं स्थानीय लोगों को उपलब्ध होंगी या कराई जाएँगी. अगर ऐसा होता है तो निश्तिचत तौर पर उग्रवादियों का प्रभाव कम होगा. साथ ही आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ाया...
सुकमा में सीआरपीएफ के जवानों पर हुआ नक्सली हमला विगत डेढ़ महीने में रोड ओपनिंग पार्टी के तौर पर गश्त करने वाले सीआरपीएफ दल पर दूसरा बड़ा हमला था. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सुकमा हमले की चुनौती पर कहा कि किसी को बख्शा नहीं जाएगा. तो क्या मान लिया जाये कि अब छत्तीसगढ़ सरकार के अलावा केंद्र सरकार भी इस नक्सली हमले के बाद किसी ठोस नीति और कार्रवाई पर जल्द अमल करने की तैयारी में है? आज सरकार सुकमा हमले पर एक खास बैठक भी कर रही है.
दूसरा पहलू ये है कि गरीबी से जूझते इस इलाके में अगर सड़कों का निर्माण हो जाएगा तो वहां बुनियादी सुविधाएं जैसे स्कूल, हॉस्पिटल, सबसे बड़ी- रोजगार की समस्या और अन्य सुविधाएं स्थानीय लोगों को उपलब्ध होंगी या कराई जाएँगी. अगर ऐसा होता है तो निश्तिचत तौर पर उग्रवादियों का प्रभाव कम होगा. साथ ही आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ाया जाना होगा, फॉरेस्ट कंजरवेशन ऐक्ट जैसी कुछ बाधाएं आ सकती हैं, लेकिन राष्ट्रीय हित को देखते हुए बातचीत के जरिए इसका समाधान किया जाना होगा.
पुलिस और सीआरपीएफ जवानों के अंडर ये पूरा इलाका अब सेना के हवाले कर देना होगा, और समय रहते इस बीमारी का इलाज करना पड़ेगा. देश के एक पूर्व गृह सचिव के मुताबिक बस्तर में अब सेना की छावनी स्थापित की जानी चाहिए. उन्होंने यह सुझाव अपने कार्यकाल के दौरान 2015 में ही दिया था.
छत्तीसगढ़ का यह इलाका विकास के दौर में भी काफी पिछड़ा है, सड़क और कम्युनिकेशन के समुचित व्यवस्था के अभाव में कालांतर में इस इलाके में नक्सली प्रभुत्व काफी बढ़ गया है. चिंता की बात ये है कि सरकारी तंत्र भी इस पूरे इलाके से संबंधित समस्यायों पर तभी धयान देती है, जब कोई बड़ी घटना का नक्सली संगठनो के द्वारा कर दी जाती है.
अगर सरकार ये मानती है कि इस तरह की घटना की कोई सूचना पहले से नहीं थी. तो क्या ये मान जाय की सूचना तंत्र के मामले में नकसली संगठन हमारे पूरे तंत्र से बेहतर है? ये अलग बात है कि उस इलाके में रहने वाले गरीब महिलाओं को नक्सलिओं ने सुरक्षा ढाल बना लिया है और ग्रामीणों का पूरा सहयोग लिया है, साथ ही ये भी बात है कि उस इलाके के तमाम व्यावसाई, करोबारी और ठेकेदारों की उगाही सरकारी तंत्र से लगातार चलती जा रही है. इससे उनकी आर्थिक व्यवस्था सुचारू रूप से चल रही है, फिर सेना के जवानों से लूटा गए हथियार का इस्तेमाल वो हमेश उन्हीं के ही विरुद्ध करते आ रहे हैं. भले ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे नक्सली छटपटाहट में अब बड़े हमले कर रहे हैं, लेकिन कहीं से भी ये घटनाएं माफ़ी के काबिल नहीं हैं और बकौल प्रधानमंत्री, जवानों की शहादत का खामियाज़ा अब नक्सली संगठनो को भुगतने के लिए तैयार रहना पड़ेगा उन्होंने साफ चेतावनी दी और कहा कि जवानों की शहादत बेकार नहीं जाएगी.
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