पीने वालों को तो पीने का मौका चाहिए, बहाना तो वे ढूंढ ही लेते हैं. मौका खुद सरकार उपलब्ध कराती है.
परमिट के लिए सबसे पहले तो एक मेडिकल सर्टिफिकेट चाहिए. डॉक्टर कम से कम एमडी होना चाहिए. जांच के बाद डॉक्टर सलाह देता है कि उस व्यक्ति की दिमागी और शारीरिक हालत ऐसी है कि उसके लिए शराब पीना बेहद जरूरी है. मेडिकल सर्टिफिकेट के साथ साथ आवेदक को अपना इनकम टैक्स रिटर्न या ऐसे दस्तावेज पेश करने होते हैं जिससे साबित हो कि उसकी हैसियत शराब पीने लायक है. आवेदक अगर सरकारी कर्मचारी है तो उसे विभागाध्यक्ष द्वारा जारी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट भी देना होता है. तब जाकर परमिट मिलती है - लेकिन उसके लिए भी कोटा तय होता है.
बाहरी लोगों को हफ्ते भर का अस्थाई परमिट मिलता है जिस पर एक बोतल शराब खरीदी जा सकती है. इसके लिए ट्रेन या फ्लाइट का टिकट और निवास प्रमाण पत्र देना होता है. जो लोग सड़क के रास्ते सफर कर रहे हैं उन्हें चुंगी पर टैक्स चुकाने के बाद ऐसी सुविधा मिल पाती है.
ये व्यवस्था गुजरात में प्रचलन में है - और अगर बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होती है तो ऐसे ही इंतजाम करने होंगे.
शराबबंदी की हालत में नीतीश के सामने डबल चुनौती होगी. पहली, साढ़े तीन से चार हजार करोड़ का राजस्व घाटा और दूसरी, दूसरे राज्यों से होने वाली शराब की तस्करी.
लेकिन नीतीश निश्चिंत हैं, ऐसी बातों से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. पूछने पर कहते हैं, "जब ऐसी स्थिति होगी तो उससे निपट लेंगे, लेकिन काम होने तो दीजिए."
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