जानते हैं नाइट आउट का मतलब क्या होता है? जी हां, दोस्तों के साथ रात में मस्ती करना. लड़कों का तो कुछ नहीं, लेकिन लड़कियों के लिए इसकी इजाजत मिलना वाकई बहुत मुश्किल होता है. माता-पिता तो इसके लिए कतई हां नहीं कहते, तो हॉस्टल वालों को तो भूल ही जाइए, वो तो पेरेंट्स से भी ज्यादा हिटलरी दिखाते हैं. खासतौर पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के हॉस्टल हो तो क्या ही कहने.
पर जरा दबंगई और साफगोई की हद देखिए, दिल्ली यूनिवर्सिटी की दो लड़कियों ने बड़ी ही हिम्मत दिखाते हुए अपनी हॉस्टल वार्डन से नाइटआउट के लिए इजाजत मांगी. हालांकि बेचारी जानती भी होंगी कि इसका नतीजा सिफर ही होगा, लेकिन ट्राइकरने में क्या है, आखिर सच्चाई भी कोई चीज़ है...तो प्रीती और अदिती नाम की इन लड़कियों ने हॉस्टल वार्डन के नाम एक एप्लीकेशन लिखी.
जिसमें लिखा- 'हम दोनों तनाव में हैं और अपने शैक्षिक जीवन से निराश हैं. कृपया करके हमें आज देर रात तक बाहर रहने की इजाजत दें, जिससे हम अपना तनाव थोड़ा सा कम कर सकें.'
इस पत्र की तस्वीर 'पिंजड़ा तोड़' अभियान चलाने वालों ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर की. 'पिंजड़ा तोड़' महिला हॉस्टल्स के कड़े नियमों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए चलाया जा रहा एक ऑनलाइन अभियान है. 'पिंजड़ा तोड़' ने लिखा कि इसे कहते हैं एप्लीकेशन लिखना, और नाइट आउट के लिए एक जायज वजह बताना.
हैरानी होगी ये जानकर कि हॉस्टल वार्डन ने दोनों लड़कियों को नाइट आउट की इजाजत दे दी. हॉस्टल अपने सख्त रवैये के लिए पहचाने जाते हैं. खासतौर पर लड़कियों के लिए हॉस्टल के नियम और कायदे काफी अलग भी होते हैं, लेकिन इस बास हॉस्टल वार्डन ने लड़कियों को इजाजत दे दी. भले ही नाइट आउट सुनने में बहुत ही अस्वीकार्य सा शब्द हो, लेकिन एक चीज हमेशा स्वीकार की जाती है, और वो हा सच. लड़कियों ने बहुत ही...
जानते हैं नाइट आउट का मतलब क्या होता है? जी हां, दोस्तों के साथ रात में मस्ती करना. लड़कों का तो कुछ नहीं, लेकिन लड़कियों के लिए इसकी इजाजत मिलना वाकई बहुत मुश्किल होता है. माता-पिता तो इसके लिए कतई हां नहीं कहते, तो हॉस्टल वालों को तो भूल ही जाइए, वो तो पेरेंट्स से भी ज्यादा हिटलरी दिखाते हैं. खासतौर पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के हॉस्टल हो तो क्या ही कहने.
पर जरा दबंगई और साफगोई की हद देखिए, दिल्ली यूनिवर्सिटी की दो लड़कियों ने बड़ी ही हिम्मत दिखाते हुए अपनी हॉस्टल वार्डन से नाइटआउट के लिए इजाजत मांगी. हालांकि बेचारी जानती भी होंगी कि इसका नतीजा सिफर ही होगा, लेकिन ट्राइकरने में क्या है, आखिर सच्चाई भी कोई चीज़ है...तो प्रीती और अदिती नाम की इन लड़कियों ने हॉस्टल वार्डन के नाम एक एप्लीकेशन लिखी.
जिसमें लिखा- 'हम दोनों तनाव में हैं और अपने शैक्षिक जीवन से निराश हैं. कृपया करके हमें आज देर रात तक बाहर रहने की इजाजत दें, जिससे हम अपना तनाव थोड़ा सा कम कर सकें.'
इस पत्र की तस्वीर 'पिंजड़ा तोड़' अभियान चलाने वालों ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर की. 'पिंजड़ा तोड़' महिला हॉस्टल्स के कड़े नियमों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए चलाया जा रहा एक ऑनलाइन अभियान है. 'पिंजड़ा तोड़' ने लिखा कि इसे कहते हैं एप्लीकेशन लिखना, और नाइट आउट के लिए एक जायज वजह बताना.
हैरानी होगी ये जानकर कि हॉस्टल वार्डन ने दोनों लड़कियों को नाइट आउट की इजाजत दे दी. हॉस्टल अपने सख्त रवैये के लिए पहचाने जाते हैं. खासतौर पर लड़कियों के लिए हॉस्टल के नियम और कायदे काफी अलग भी होते हैं, लेकिन इस बास हॉस्टल वार्डन ने लड़कियों को इजाजत दे दी. भले ही नाइट आउट सुनने में बहुत ही अस्वीकार्य सा शब्द हो, लेकिन एक चीज हमेशा स्वीकार की जाती है, और वो हा सच. लड़कियों ने बहुत ही साफगोई से अपनी बात रखी शायद यही वजह थी कि उन्हें नाइट आउट की इजाजत मिल गई.
ऐसा करके हॉस्टल वालों के कड़े रवैए का एक बहुत ही नर्म रुख भी दिखाई दिया, शायद यही वजह है कि ये एप्लीकेशन सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गई. लेकिन, इस प्रतिक्रिया देने वाले कई लोगों में विपरीत राय भी रखते हैं, जो देर रात लड़कियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं.
सवाल इन दो लड़कियों के हॉस्टल से बाहर निकलने का नहीं है, जब ऐसी ही कई लड़कियां रात में सड़कों पर होंगी तब बात बनेगी. इन दो लड़कियों ने तब बस एक मशाल थामी है. जब ऐसी ही कई लड़कियों का एक बड़ा कारवां रात में सड़कों पर होगा तभी उन दरिंदो के मनसूबे टूटेंगे जो रात में अकेली लड़की को आसान शिकार मानते हैं.
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