इस तस्वीर को कैमरे में कैद करने वाले शख्स का नाम अविनाश लोधी है, जो जबलपुर मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं और एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर हैं. अविनाश जबलपुर में बंदरों के झुंड की तस्वीरें ले रहे थे, तभी उनका ध्यान इस मां ने अपनी तरफ खींचा. और उन्होंने तुरंत ये तस्वीर ली.
'आईचौक' से बातचीत में अविनाश ने कहा कि 'ये तस्वीर मेरे दिल के बेहद करीब है, जो मैंने अप्रैल में जबलपुर में ही ली थी, अपने इतने सालों के फोटोग्राफी करियर में मैंने किसी जंगली जानवर में ऐसा दृश्य और भाव कभी नहीं देखे थे. ये बंदर का बच्चा अचानक गिर अचेता हो गया. फिर उसकी मां के चेहरे पर भाव आए, वे चौंकाने वाले थे. ये बहुत अचानक हुआ, मैंने वो तस्वीर ले तो ली. लेकिन उसके एक घंटे बाद तक मैं खामोश रहा.'
और क्या दिखाती है ये तस्वीर
खुशी और ग़म दोनों को शब्दों में बयां करने का हुनर कवियों में बखूबी होता है. लेकिन जरूरी नहीं है कि दर्द को शब्दों में बयां किया जाए. तस्वीरें खामोश होती हैं फिर भी खामोशी हजारों शब्दों की मानिंद चीखती है. इस तस्वीर को देखकर ये कहा जा सकता है कि फोटोग्राफर भी किसी कवि से कम नहीं रचते.
एक मां का दर्द दिखाती ये तस्वीर किसी भी पत्थर दिल की आंख से आंसू छलकाने का हुनर रखती है. इसे देखकर मुंह से 'उफ्फ' के सिवा और कुछ नहीं निकलता. तो क्या हुआ कि इस तस्वीर में इंसान नहीं बंदर हैं. पर एक मां के दिल की हूक, उसका दर्द ठीक वैसा ही है जैसा हम इंसानों में होता है. अपने बच्चे का बेजान शरीर अपने हाथों में थामे एक मां का कलेजा ऐसे ही फटता...
इस तस्वीर को कैमरे में कैद करने वाले शख्स का नाम अविनाश लोधी है, जो जबलपुर मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं और एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर हैं. अविनाश जबलपुर में बंदरों के झुंड की तस्वीरें ले रहे थे, तभी उनका ध्यान इस मां ने अपनी तरफ खींचा. और उन्होंने तुरंत ये तस्वीर ली.
'आईचौक' से बातचीत में अविनाश ने कहा कि 'ये तस्वीर मेरे दिल के बेहद करीब है, जो मैंने अप्रैल में जबलपुर में ही ली थी, अपने इतने सालों के फोटोग्राफी करियर में मैंने किसी जंगली जानवर में ऐसा दृश्य और भाव कभी नहीं देखे थे. ये बंदर का बच्चा अचानक गिर अचेता हो गया. फिर उसकी मां के चेहरे पर भाव आए, वे चौंकाने वाले थे. ये बहुत अचानक हुआ, मैंने वो तस्वीर ले तो ली. लेकिन उसके एक घंटे बाद तक मैं खामोश रहा.'
और क्या दिखाती है ये तस्वीर
खुशी और ग़म दोनों को शब्दों में बयां करने का हुनर कवियों में बखूबी होता है. लेकिन जरूरी नहीं है कि दर्द को शब्दों में बयां किया जाए. तस्वीरें खामोश होती हैं फिर भी खामोशी हजारों शब्दों की मानिंद चीखती है. इस तस्वीर को देखकर ये कहा जा सकता है कि फोटोग्राफर भी किसी कवि से कम नहीं रचते.
एक मां का दर्द दिखाती ये तस्वीर किसी भी पत्थर दिल की आंख से आंसू छलकाने का हुनर रखती है. इसे देखकर मुंह से 'उफ्फ' के सिवा और कुछ नहीं निकलता. तो क्या हुआ कि इस तस्वीर में इंसान नहीं बंदर हैं. पर एक मां के दिल की हूक, उसका दर्द ठीक वैसा ही है जैसा हम इंसानों में होता है. अपने बच्चे का बेजान शरीर अपने हाथों में थामे एक मां का कलेजा ऐसे ही फटता है.
पर अच्छी बात ये थी कि बंदरा का ये छोटा बच्चा सिर्फ बेहोश हुआ था, पर अपने बच्चे की हालत देखकर उसकी मां के दिल पर क्या गुजरी ये तस्वीर खुद बयां कर रही है. दो तीन मिनट बाद वो ठीक भी हो गया. खैर एक बात तो है मां किसी की भी हो, मां मां ही होती है. माओं के दिल में सिर्फ ममता होती है.
क्या सच में जानवरों को दर्द का अहसास होता है?
जानवरों को भी दर्द का अहसास होता है, ये तस्वीर साफ कहती है. इसे वैज्ञानिक तरीके के समझें तो विकासवादी जीवविज्ञानी मार्क बेकॉफ का कहना है कि सारे स्तनधारी एक ही नर्वस सिस्टम, न्यूरोकेमिकल्स, धारणाएं और भावनाएं साझा करते हैं, और ये सभी मिलकर दर्द का अनुभव कराते हैं. हालांकि वो इंसानों की तरह से ही दर्द का अनुभव करते हैं ये कहा नहीं जा सकता पर इसका मतलब ये जरा भी नहीं कि वो अहसास नहीं करते.'
वहीं Natural History Museum of Los Angeles में शोधकर्ता ब्री पुटमैन का कहना है कि 'जो स्तनधारी नहीं हैं उनका दर्द को दिखाना और भी ज्यादा संघर्षपूर्ण हो जाता है क्योंकि वो स्तनधारियों की तरह फेशियल एक्प्रेशन नहीं बना पाते. पर इसका मतलब ये जरा भी नहीं कि उसे दर्द नहीं है.'
खैर वैज्ञानिकों की बातें न भी मानी जाएं तो भी ये तस्वीर खुद दर्द का सबूत देती है. इस तस्वीर को सही समय पर क्लिक करना इसे और भी खास बनाता है, और वही एक फोटोग्राफर की उपलब्धि होती है. जानवरों के जीवन का एक पहलू हम इंसानों के सामने रखने में अविनाश सफल हुए.
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