सावन का महीना जाते ही त्योहारों का मौसम आने लगता है... रक्षाबंधन से लेकर जन्माष्टमी तलक... बरखा बहार के इस मौसम में त्योहारी सीज़न शबाब पर है, लेकिन इसी महीने में एक और त्योहार आने वाला है जिसका इंतजार सीने में हिलोरें पैदा करने लगता है. जिसकी गूंज दिलों की धड़कनें बड़ा देती है, जिसकी खुशबू बिना किसी पकवान के भी माहौल में चार-चांद लगा देती है. पतंगों के साथ तिरंगे का मौसम आने वाला है. लेकिन अफसोस मुझे भी इसी बात का है कि ये त्योहार बस देशभक्ति के लिफाफे में लिपटकर रह गया है.
चंद दिनों की देशभक्ति होगी और फिर कौन जाने 15 अगस्त और आज़ादी का मतलब. कुछ दिन तक तिरंगे के साथ देश के जवानों की भक्ति उबाल मारेगी. वंदेमातरम से लेकर राष्ट्रगान तक, भारत माता की जय से लेकर शहीदों को नमन तक, रग-रग में देशभक्ति का खून दौड़ेगा. सड़कों से चौराहों तलक, स्कूलों से सरकारी इमारतों तलक, पार्कों से घरों की छतों तलक, रेड लाइट से लेकर गांव की पगडंडियों तलक, हर तरफ देशभक्ति से लबरेज़ युवाओं का खून जोश मारेगा. सुबह-सुबह स्कूली बच्चों की प्रभात फेरियां नज़र आएंगी. गली, मोहल्लों में आज़ादी के मतवालों के तराने गूंजेंगे और 15 अगस्त निकलते ही आज़ादी और देशभक्ति तिरंगे के साथ ही लपेट कर रख दिये जाएंगे. 2 अक्टूबर तक फिर न तिरंगे का सम्मान होगा, ना किसी को आज़ादी से कोई मतलब होगा.
कितने कमजोर हो गये हैं हम, सिर्फ एक तिरंगा खरीदकर अपना फर्ज पूरा कर लेते हैं. टीवी पर देशभक्ति वाली फिल्में देखकर अपना कोटा पूरा कर देते हैं. छत पर तिरंगे वाली पतंगे उड़ाकर आसमान को रंग-बिरंगा कर देते हैं. इतना ही नहीं सरकारी कर्मचारियों का एक तबका तो 12 अगस्त से ही छुट्टियों के मूड में आ गया है. शुक्रवार को आफिस खत्म करने के बाद 15 अगस्त तक पिकनिक मनाने का प्लान पहले ही तैयार हो चुका है. बड़े दुख की बात है कि...
सावन का महीना जाते ही त्योहारों का मौसम आने लगता है... रक्षाबंधन से लेकर जन्माष्टमी तलक... बरखा बहार के इस मौसम में त्योहारी सीज़न शबाब पर है, लेकिन इसी महीने में एक और त्योहार आने वाला है जिसका इंतजार सीने में हिलोरें पैदा करने लगता है. जिसकी गूंज दिलों की धड़कनें बड़ा देती है, जिसकी खुशबू बिना किसी पकवान के भी माहौल में चार-चांद लगा देती है. पतंगों के साथ तिरंगे का मौसम आने वाला है. लेकिन अफसोस मुझे भी इसी बात का है कि ये त्योहार बस देशभक्ति के लिफाफे में लिपटकर रह गया है.
चंद दिनों की देशभक्ति होगी और फिर कौन जाने 15 अगस्त और आज़ादी का मतलब. कुछ दिन तक तिरंगे के साथ देश के जवानों की भक्ति उबाल मारेगी. वंदेमातरम से लेकर राष्ट्रगान तक, भारत माता की जय से लेकर शहीदों को नमन तक, रग-रग में देशभक्ति का खून दौड़ेगा. सड़कों से चौराहों तलक, स्कूलों से सरकारी इमारतों तलक, पार्कों से घरों की छतों तलक, रेड लाइट से लेकर गांव की पगडंडियों तलक, हर तरफ देशभक्ति से लबरेज़ युवाओं का खून जोश मारेगा. सुबह-सुबह स्कूली बच्चों की प्रभात फेरियां नज़र आएंगी. गली, मोहल्लों में आज़ादी के मतवालों के तराने गूंजेंगे और 15 अगस्त निकलते ही आज़ादी और देशभक्ति तिरंगे के साथ ही लपेट कर रख दिये जाएंगे. 2 अक्टूबर तक फिर न तिरंगे का सम्मान होगा, ना किसी को आज़ादी से कोई मतलब होगा.
कितने कमजोर हो गये हैं हम, सिर्फ एक तिरंगा खरीदकर अपना फर्ज पूरा कर लेते हैं. टीवी पर देशभक्ति वाली फिल्में देखकर अपना कोटा पूरा कर देते हैं. छत पर तिरंगे वाली पतंगे उड़ाकर आसमान को रंग-बिरंगा कर देते हैं. इतना ही नहीं सरकारी कर्मचारियों का एक तबका तो 12 अगस्त से ही छुट्टियों के मूड में आ गया है. शुक्रवार को आफिस खत्म करने के बाद 15 अगस्त तक पिकनिक मनाने का प्लान पहले ही तैयार हो चुका है. बड़े दुख की बात है कि हमने 15 अगस्त, 2 अक्टूबर और 26 जनवरी को सिर्फ छुट्टी का दिन बनाकर रख दिया है. क्या हम जैसे दूसरे त्योहार मनाते हैं ऐसे हम अपने राष्ट्रीय त्योहार नहीं मना सकते.
अफसोस की बात ये है कि हम आज़ादी के दिन छुटिटयों में जश्न मनाते हैं. और 70 साल बाद भी हमारे मुल्क की आबादी का एक बड़ा तबका भूखा सोता है और हम उससे बेखबर हैं. ग्लोबल हंगल इंडेक्स के आंकड़ों के मुताबिक देश में हर रोज 3 हजार बच्चे भूख से मर जाते हैं. आज भी ओडिशा, झारखंड, उत्तर बंगाल और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में लोग भूखे सोने को मजबूर हैं. भूख से आगे बढ़ें तो जल ही जीवन है, लेकिन WHO की रिपोर्ट कहती है कि देश में साढ़े 9 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी तक मुहैया नहीं है. चलिए इससे आगे बात एजुकेशन की कर लेते हैं. सरकार ने 14 साल तक हर बच्चे को तालीम देने के लिए कानून बना रखा है, लेकिन 2011 की जनगणना के आंकड़े ही कहते हैं कि देश में 8 करोड़ बच्चे स्कूल ही नहीं जाते और जहां बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते भी हैं, वहां या तो स्कूल में टीचर नहीं हैं या फिर इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नहीं है. आंकड़े ना सिर्फ परेशान करते हैं बल्कि अफसोसनाक भी हैं.
अब आप कहेंगे कि ये सब आंकड़े हमें पढ़ाने की क्या जरूरत है. ये तो सरकार की जिम्मेदारी है. भाई बेशक सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन देश के नागरिक होने के नाते हमारा भी तो कुछ फर्ज बनता है. आप कहेंगे कि भाई हमने तो तिरंगा फहरा दिया और मिठाई भी खा ली, अब क्या बचा है. हैरत की बात ये है कि जिस मुल्क की आबादी 125 करोड़ से ज़्यादा है, वहां टैक्स देने वालों की तादाद महज साढ़े 3 करोड़ है. हालांकि नोटबंदी के बाद ये आंकड़ा बढ़कर करीब 5 करोड़ से ऊपर पहुंच गया है. लेकिन अफसोस की बात ये है कि जिस देश में लोगों के भूखों सोने की नौबत है, वहां हर साल 25 लाख कारें सड़कों पर उतर जाती हैं. सवाल ये है कि अगर आप टैक्स नहीं देंगे तो सरकार के पास पैसा कहां से आएगा, आपके टैक्स के पैसे से ही तो विकास की योजनाएं बनती हैं.
आप बेशक खूब कमाएं लेकिन कम से कम फिजूलखर्ची तो कम कर ही सकते हैं. शादी पार्टियों में फिजूलखर्ची करने के बजाए हम उस पैसों से जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं. धर्म के नाम पर होने वाले हर तरह के आयोजनों को बंद कर हम उसके पैसों से गरीब और बीमार बच्चों का बचपन सुधार सकते हैं. अपने त्योंहारों में ऊल-जलूल पैसा खर्च करने के बजाए हम उस पैसे से लोगों को इलाज मुहैया करा सकते हैं. गरीब बच्चियों की शादियां करा सकते हैं. और आप ऐसा करने वाले अनोखे नहीं होंगे, दुनिया के दूसरे मुल्कों में जाकर देखिए वहां लोग समाज की किस तरह मदद करते हैं. हिम्मत करेंगे तो हम बहुत कुछ कर सकते हैं. सिर्फ़ पतंगे उड़ाने से या तिरंगा लगाने से आपकी देशभक्ति साबित नहीं होगी. देश के नागरिक होने के नाते आपके जो फर्ज़ हैं उनको अदा करना भी आपके लिए उतना ही जरूरी है.
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