मुझे याद आता है कि मैंने ललित मोदी से करीब तीन हफ्ते पहले एक इंटरव्यू के लिए समय मांगा था. यह वह समय था जब #Lalitgate सुर्खियों में आना शुरू हुआ था. उन्होंने 28 जून को लंदन के स्लोआन स्ट्रीट स्थित अपने घर में शाम सात बजे मिलने का समय भी दे दिया. हमने यह फैसला किया था इस मुलाकात में क्रिकेट से जुड़े कुछ मुद्दों पर ही बातें होंगी.
मेरे दिमाग में यह बात साफ थी कि हमारी सारी बातें कैमरे के सामने होंगी. इस हिसाब से मैंने कैमरे का भी इंतजाम कर लिया और वेस्ट हैम्प्सटेड के अपने अपार्टमेंट से तय समय के अनुसार एक घंटे पहले निकला. करीब आधे रास्ते पहुंचने के बाद मुझे ललित का एक मैसेज मिला जिसमें उन्होंने बताया कि मिलने की जगह बदल गई है और अब मैं उनसे नाइटब्रिज के बुलगारी होटल में मिलूं. यह जगह हालांकि ललित के घर के पास ही था इसलिए मुझे ज्यादा चक्कर नहीं लगाने पड़े.
होटल पहुंचने पर मैंने देखा कि ललित होटल की लॉबी के आखिरी टेबल पर बैठे हुए थे. ललित के बगल में उनके वकील और उनका एक प्रमुख सहयोगी था जो उनके आईटी के कामकाज को संभालता है.
ललित ने मुझे देखते ही कहा, ''मैंनें आपसे केवल मिलने को कहा था लेकिन मैं कोई इंटरव्यू नहीं देना चाहता.''
यह सुनकर मुझे एक झटका सा लगा और इससे पहले मैं अपनी बात उन्हें समझा पाता उन्होंने अपने इंटरव्यू नहीं देने के फैसले को एक बार फिर दोहरा दिया.
मैंने उन्हें फिर समझाने की कोशिश की. मैंने उन्हें बताया कि मैं किसी राजनैतिक विषय पर उनका इंटरव्यू नहीं लेना चाहता और हम केवल क्रिकेट के बारे में बात करेंगे. मैंने उनसे कहा कि मैं केवल यह जानना चाहता हूं कि आईसीसी ने उनके द्वारा भेजे गए ई-मेल और उसमें दिए गए तीन नामों के संबंध में जांच क्यों नहीं की या अगर की भी तो हमें क्यों नहीं पता चला. मेरा दूसरा सवाल था कि क्या उन्हें कोई उम्मीद है कि इस मामले में कोई जांच होगी भी या नहीं. एन श्रीनिवासन आईसीसी के शीर्ष पद पर हैं और उसकी इकाई एंटी करप्शन एंड सिक्योरिटी यूनिट (ACS) के भी बॉस हैं. साथ ही तीनों खिलाड़ी भी चेन्नई सुपरकिंग्स से ताल्लुक रखते हैं.
आखिर में मैंने उनसे एक और सवाल पूछा कि क्या वह केवल गिरफ्तारी के डर के कारण भारत नहीं लौट रहे हैं. इतना सुनते ही...
मुझे याद आता है कि मैंने ललित मोदी से करीब तीन हफ्ते पहले एक इंटरव्यू के लिए समय मांगा था. यह वह समय था जब #Lalitgate सुर्खियों में आना शुरू हुआ था. उन्होंने 28 जून को लंदन के स्लोआन स्ट्रीट स्थित अपने घर में शाम सात बजे मिलने का समय भी दे दिया. हमने यह फैसला किया था इस मुलाकात में क्रिकेट से जुड़े कुछ मुद्दों पर ही बातें होंगी.
मेरे दिमाग में यह बात साफ थी कि हमारी सारी बातें कैमरे के सामने होंगी. इस हिसाब से मैंने कैमरे का भी इंतजाम कर लिया और वेस्ट हैम्प्सटेड के अपने अपार्टमेंट से तय समय के अनुसार एक घंटे पहले निकला. करीब आधे रास्ते पहुंचने के बाद मुझे ललित का एक मैसेज मिला जिसमें उन्होंने बताया कि मिलने की जगह बदल गई है और अब मैं उनसे नाइटब्रिज के बुलगारी होटल में मिलूं. यह जगह हालांकि ललित के घर के पास ही था इसलिए मुझे ज्यादा चक्कर नहीं लगाने पड़े.
होटल पहुंचने पर मैंने देखा कि ललित होटल की लॉबी के आखिरी टेबल पर बैठे हुए थे. ललित के बगल में उनके वकील और उनका एक प्रमुख सहयोगी था जो उनके आईटी के कामकाज को संभालता है.
ललित ने मुझे देखते ही कहा, ''मैंनें आपसे केवल मिलने को कहा था लेकिन मैं कोई इंटरव्यू नहीं देना चाहता.''
यह सुनकर मुझे एक झटका सा लगा और इससे पहले मैं अपनी बात उन्हें समझा पाता उन्होंने अपने इंटरव्यू नहीं देने के फैसले को एक बार फिर दोहरा दिया.
मैंने उन्हें फिर समझाने की कोशिश की. मैंने उन्हें बताया कि मैं किसी राजनैतिक विषय पर उनका इंटरव्यू नहीं लेना चाहता और हम केवल क्रिकेट के बारे में बात करेंगे. मैंने उनसे कहा कि मैं केवल यह जानना चाहता हूं कि आईसीसी ने उनके द्वारा भेजे गए ई-मेल और उसमें दिए गए तीन नामों के संबंध में जांच क्यों नहीं की या अगर की भी तो हमें क्यों नहीं पता चला. मेरा दूसरा सवाल था कि क्या उन्हें कोई उम्मीद है कि इस मामले में कोई जांच होगी भी या नहीं. एन श्रीनिवासन आईसीसी के शीर्ष पद पर हैं और उसकी इकाई एंटी करप्शन एंड सिक्योरिटी यूनिट (ACS) के भी बॉस हैं. साथ ही तीनों खिलाड़ी भी चेन्नई सुपरकिंग्स से ताल्लुक रखते हैं.
आखिर में मैंने उनसे एक और सवाल पूछा कि क्या वह केवल गिरफ्तारी के डर के कारण भारत नहीं लौट रहे हैं. इतना सुनते ही ललित मोदी एक तरह से मुझ पर चीख पड़े और कहा, ''कैसी गिरफ्तारी. मुझ पर किसी अदालत की ओर से कोई आरोप नहीं लगा है. ऐसे में मुझे गिरफ्तारी से भला क्यों डर लगेगा. पहले आप मुझे आरोपी तो बनाइए फिर प्रश्न पूछ लेना.''
खैर मुझे तब तक पता चल चुका था मेरा इंटरव्यू हो गया. हम इसके बाद साथ बैठे और कई मुद्दों पर बातें की. एक बात साफ है ललित को दस्तावेजों को संभाल कर रखने में महारत हासिल है. एक इतिहासकर होने के नाते यह देखना दिलचस्प था कि कैसे ललित ने अपने हर दावे के साथ दस्तावेजों की पोटली तैयार रखी है.
हर मुद्दे पर वह अपने स्मार्टफोन से कई दस्तावेज निकालते चले गए और मेरे लिए यह साफ हो गया कि ललित हर मौके के लिए खुद को तैयार रखते हैं. यह भी बहुत साफ है कि ललित बिना लड़ाई के हार नहीं मानने वाले और बीसीसीआई में हुई सभी गलतियों के लिए अकेले उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
उस मुलाकात में ललित मोदी ने कई सवाल खड़े किए. मसलन, ''मुद्गल समिति द्वारा दिए गए नामों को क्यों सार्वजनिक नहीं किया गया. दिल्ली हाई कोर्ट ने जब मेरा पासपोर्ट लौटाने का निर्देश दिया तो ईडी ने इस फैसले को क्यों चुनौती नहीं दी. वैसा उन्होंने इसलिए किया कि क्योंकि उन्हें पता था कि वहां मामला ही नहीं बन रहा है. अगर उनकी बात में दम होता तो वे निश्चित तौर पर इसको चुनौती देते.''
इसका साफ मतलब है कि ललित मोदी अब ईडी को चुनौती पेश कर रहे हैं. वह साफ कह रहे हैं कि अगर कोई केस उनके खिलाफ है तो इसे साबित किया जाए. पूर्व में शायद ऐसा बहुत कम लोगों ने किया होगा. अब ईडी के पास चुनौती है कि वह आगे आकर सबूत पेश करे और बताए कि ललित मोदी का पक्ष कमजोर है. उनके द्वारा टि्वटर पर लिखी जा रही बातों में सच्चाई नहीं है.
इन तमाम विवादों के बीच भारतीय क्रिकेट कहां है? एक पूर्व कप्तान ने इंडिया टुडे चैनल पर इंटरव्यू प्रसारित होने के दिन मुझसे कहा, ''अगर मैं अभी टीवी पर आता हूं तो मैच फिक्सिंग, स्कैंडल और मनी लॉड्रिंग इत्यादी सवाल ही आएंगे. इन सब में क्रिकेट कहां है.''
यह बेहद निराशाजनक है कि भारतीय क्रिकेट किस स्तर तक गिर गया है. यह अब केवल मैदान के 22 गज पर सिमटा हुआ खेल नहीं रह गया है. अब क्रिकेट प्रशासक के तौर पर सत्ता से जुड़े लोगों के बीच अपने शक्ति प्रदर्शन का भी जरिया बन चुका है. इन सब से सबसे ज्यादा निराश एक क्रिकेट फैन ही है. इस लड़ाई में ललिक मोदी जीतें या नहीं, एक की हार तो हो ही गई है ...और वह है क्रिकेट.
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