संस्थान | स्थापना | बजट (2015-16) |
NASA (अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी) | 1958 | 1,13,463 करोड़ रुपये |
ISRO (भारत की अंतरिक्ष एजेंसी) | 1969 | 6000 करोड़ रुपये |
आंकड़ों से बहुत कुछ स्पष्ट है. जो नहीं स्पष्ट है, वही खबर है. तो खबर यह है कि पहली बार अमेरिका के 9 नेनौ-माइक्रो सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए इसरो की मदद ली जा रही है. इसरो की व्यावसायिक शाखा एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने यह समझौता किया है.
है न गर्व की बात! एक ऐसे देश के 9 सैटेलाइट को हमारी स्पेस एजेंसी अंतरिक्ष में भेज रही है, जिसका बजट हमसे लगभग 20 गुना ज्यादा है. उपलब्धियों के मामले में जो हमसे मीलों आगे है. आज हम उसकी प्रगति के वाहक बनने में सक्षम हैं. छाती चौड़ी करने वाली बात तो है.
दरअसल थोड़ा और गहरे जाएंगे तो इसरो पर आपको-हमको और सबको नाज होगा. यह अकेले अमेरिकी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने की बात नहीं है. इसरो यह काम 19 देशों के लिए कर चुका है. 45 विदेशी उपग्रहों को इसरो ने सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में पहुंचाया है.
अपनी स्मृति पर थोड़ा और जोर डालें. आपको इसरो का 'मंगल मिशन' याद है? ऐसा ही मिशन नासा भी कर चुका है - मार्श मिशन. लेकिन दोनों में आसमान-जमीन का फर्क है. अब तक शायद आपको भी याद आ ही गया होगा कि हमारा 'मंगल मिशन' हॉलीवुड की फिल्म 'ग्रैविटी' से भी सस्ता था.
पूरी दुनिया की आईटी इंडस्ट्री में हमने अपनी मेहनत से धाक जमाई. सस्ती और भरोसेमंद सर्विस. इसी लीक पर इसरो भी चल रही है - सस्ती और भरोसेमंद सर्विस. कम से कम असफलता का रिकॉर्ड, जिस देश ने हमारे प्रक्षेपण यान और उल्टी गिनती की सटीकता पर भरोसा किया, उस पर कायम उतरना. इसरो अब इसी के लिए जाना जाने लगा है. कलाम साहब आज जरूर खुश होंगे... खुश होने का दिन भी है.
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