अगर बात डेटिंग एप्स की करें तो ये आजकल काफी लोकप्रिय हो रहे हैं. सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनियाभर में पिछले कुछ सालों से डेटिंग एप्स ने अपना अलग महत्व साबित कर दिया है. लेकिन इन सभी डेटिंग एप्स में एक बात कॉमन होती है. ये सभी मेल और फीमेल धारणा को दिमाग में रखकर बनाए जाते हैं.
इसी नियम को तोड़ते हुए अब एक नया एप आया है जो थर्ड जेंडर को भी पार्टनर चुनने का मौका देता है. Winkd नाम का ये एप LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांस और क्वीर) के लिए बनाया गया है. डायना काल्कोल और नेडा रोबाट मैली दोनों ही एप डिजाइनर्स हैं और उनका ये एप थर्ड जेंडर के लिए एक नई पहल के रूप में देखा जा रहा है.
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इस एप को बनाने वाले दोनों डिजाइनर्स का कहना है कि ये एप इंसानों के लिए है. इसीलिए शायद एप सेटिंग्स में जानकारी के लिए कुछ ऐसी स्क्रीन दी गई है.
मेल या फीमेल की तरह इस एप में सिलेक्ट करना होता है ह्यूमन |
2016 में टिंडर ने जब इस तरह की सेटिंग यूएस, यूके और कनाडा में लॉन्च की थी तो कंपनी को काफी पब्लिसिटी मिली थी. ये एप फिलहाल तो सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में है और शायद इसे बाकी देशों में भी लॉन्च किया जाए, लेकिन इसका भारत में कोई वजूद नहीं है. टिंडर भी भारत में ऐसी सेटिंग तो नहीं ला सकता. कारण ये है कि भारत में थर्ड जेंडर राइट्स अभी भी धारा 377 के पत्थर के नीचे दबे हुए हैं.
अगर बात डेटिंग एप्स की करें तो ये आजकल काफी लोकप्रिय हो रहे हैं. सिर्फ भारत में ही नहीं, दुनियाभर में पिछले कुछ सालों से डेटिंग एप्स ने अपना अलग महत्व साबित कर दिया है. लेकिन इन सभी डेटिंग एप्स में एक बात कॉमन होती है. ये सभी मेल और फीमेल धारणा को दिमाग में रखकर बनाए जाते हैं.
इसी नियम को तोड़ते हुए अब एक नया एप आया है जो थर्ड जेंडर को भी पार्टनर चुनने का मौका देता है. Winkd नाम का ये एप LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांस और क्वीर) के लिए बनाया गया है. डायना काल्कोल और नेडा रोबाट मैली दोनों ही एप डिजाइनर्स हैं और उनका ये एप थर्ड जेंडर के लिए एक नई पहल के रूप में देखा जा रहा है.
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इस एप को बनाने वाले दोनों डिजाइनर्स का कहना है कि ये एप इंसानों के लिए है. इसीलिए शायद एप सेटिंग्स में जानकारी के लिए कुछ ऐसी स्क्रीन दी गई है.
मेल या फीमेल की तरह इस एप में सिलेक्ट करना होता है ह्यूमन |
2016 में टिंडर ने जब इस तरह की सेटिंग यूएस, यूके और कनाडा में लॉन्च की थी तो कंपनी को काफी पब्लिसिटी मिली थी. ये एप फिलहाल तो सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में है और शायद इसे बाकी देशों में भी लॉन्च किया जाए, लेकिन इसका भारत में कोई वजूद नहीं है. टिंडर भी भारत में ऐसी सेटिंग तो नहीं ला सकता. कारण ये है कि भारत में थर्ड जेंडर राइट्स अभी भी धारा 377 के पत्थर के नीचे दबे हुए हैं.
हमेशा से एक सवाल मन में आता है कि अगर प्रकृति खुद ऐसे लोगों की रचना करती है तो फिर उनमें कुछ भी आप्राकृतिक कैसे हो सकता है. लेकिन फिर भी नियम तो नियम है. इस एप की जो सबसे खास बात है वो इसकी सेटिंग्स ही है. जिसमें बनाने वालों ने इंसानों का जिक्र किया है और उन्हें रंग, भेद, नस्ल, सेक्शुएलिटी आदि के झंझट में बांधा नहीं है. अगर यही सोच लिया जाए कि थर्ड जेंडर भी इंसान हैं तो क्या गलत होगा, लेकिन नहीं यहां तो उन्हें बहुत ही अलग नजरों से देखा जाता है.
कुल मिलाकर दुनिया भले ही कुछ भी कहे, लेकिन भारत में लोगों का बदलना और उनकी सोच को आगे ले जाना बहुत मुश्किल है. इमानदारी से कहूं तो इस तरह के एप्स भले ही विदेशों में लोगों को कितना भी भाएं, लेकिन भारत में इनका कोई वजूद नहीं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.