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Updated: 17 दिसम्बर, 2017 01:09 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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अब तो राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं. यानी लंबे समय से उनके कांग्रेस का अध्यक्ष बनने को लेकर चल रही कयासबाजी अब थम गई है. जाहिर है, नई जिम्मेदारी मिलने पर वे अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में अब और अधिक सक्रीय रूप से भाग लेंगे. यह स्वाभाविक भी है देश कि कोने-कोने में जाएंगे. यहां तक तो सब ठीक है. पर बड़ा सवाल तो यह उठ खड़ा हुआ है कि उनकी अपनी पार्टी के कामकाज के लिए होने वाली विमान यात्राओं का खर्च उनकी सुरक्षा में भागते रहने वाले चार सौ से ज्यादा एस.पी.जी. के अधिकारियों का खर्च और तमाम सुरक्षा काफिले की तामझाम के ऊपर होने वाले खर्च को देश का आम कर दाता क्यों वहन करें?

अब भी तो यही हो रहा है. लेकिन, अब आगे कई गुना और अधिक होगा. राहुल गांधी जी तो वैसे भी चुनावी सभाओं से लेकर पार्टी के कार्यक्रमों में और व्यक्तिगत पार्टियों तक में लगातार घूमते-फिरते ही रहते हैं. इसमें किसी को परेशानी भी नहीं है. होनी भी नहीं चाहिए परन्तु, उनकी निजी या कांग्रेस पार्टी के काम से की जाने वाली यात्राओं के ऊपर होने वाले करोड़ों रुपये के खर्च को आयकर दाता क्यों उठाए? राहुल गांधी कोई सरकारी काम तो करेंगे नहीं. जो राहुल जी कर रहे हैं, वही कार्य तो देशभर से चुने गए तमाम 795 सांसद भी कर रहे हैं. तो क्या उन्हें भी दे दी जाए एसपीजी सुरक्षा? सरकार को राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा को एसपीजी कवर देने के संबध में फिर से विचार करने की और एस.पी.जी. एक्ट में आमूलचूल सुधार की सख्त और तत्काल आवश्यकता है.

प्रियंका गांधी, राहुल गांधी,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और कुछ हद तक सोनिया गांधी को भी एसपीजी कवर देने की बात तो समझ आती है. हालांकि, सोनिया की हैसियत भी तो मात्र एक पूर्व प्रधानमंत्री की विधवा की है. वे एक सांसद जरूर है. लेकिन, देश में सांसद तो 795 हैं. उन्हें तो मात्र तीन अंगरक्षक ही मिलते हैं. न गाड़ी, न बड़ी कोठी, न गृह रक्षक फोर्स, न हेलीकाप्टर न और कोई लम्बा तामझाम. इनपर विशेष मेहरबानी का कोई भी कारण तो समझ से परे है. सोनिया पर होने वाला सरकारी खर्च भी वाजिब है या नाजायज इसपर भी बहस तो होनी ही चाहिए. परन्तु, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और उनके पूरे कुनबे की सुरक्षा पर इतना भारी-भरकम खर्चा करने का क्या औचित्य है? प्रियंका गांधी तो सांसद तक भी नहीं हैं और उनके पति की हैसियत तो एक आम नागरिक से अधिक कुछ भी नहीं है उनके पास कोई सरकारी पद भी नहीं है. फिर भी उन्हें भी भव्य बंगला मिला हुआ है. वह भी सपरिवार प्रधानमंत्री के स्तर की सुरक्षा ले रहें हैं. कुछ दिनों पूर्व तक तो देश के किसी भी एयरपोर्ट पर उनकी सुरक्षा जांच तक नहीं होती थी.

रोज का कितना खर्चा...

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने साल 2015-16 के आम बजट में एसपीजी के लिए करीब 359.55 करोड़ रुपये का बजट रखा. यानी करीब-करीब रोज का एक करोड़ रुपये एसपीजी पर भारत सरकार खर्च कर रही है. लेकिन, यह तो सिर्फ एसपीजी पर होने वाला सीधा खर्च है. ये वीवीआईपी जहां भी जाते हैं, उस राज्य में पूरी कानून-व्यवस्था, बैरिकेडिंग, कारवां आदि का खर्च इससे कई गुना अधिक है. यानी रोज करोड़ों का खर्च मात्र मुट्ठीभर लोगों पर हो रहा है और टैक्स जनता भर रही है.

निश्चित रूप से भारतीय प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था दुनिया के किसी भी अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष की तुलना में उन्नीस तो किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए. भारत ने बीते दौर में एक प्रधानमंत्री और एक पूर्व प्रधानमंत्री क्रमशः इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को आतंकवाद का शिकार होते देखा है. जाहिर है, अब देश सतर्क हो चुका है. इसीलिए तो एसपीजी का गठन भी हुआ है. पर एक परिवार को बाल-बच्चों, नाती-पोंतों समेत सबको एसपीजी कवर प्राप्त हो और बाकी सब के सब उससे वंचित हों, यह कैसा न्याय है? दो तो सबको दे दो, नहीं तो किसी को भी नहीं.

अब प्रश्न ये है कि क्या अन्य भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों के परिजनों को भी एसपीजी कवर मिलता है? ये कोई पुरानी बात नहीं है जब वी. नरसिंह राव के पुत्र पी. वी. राजेश्वर राव के निधन का एक छोटा सा समाचार छपा था. वे पूर्व सांसद भी थे. उन्हें कभी कोई अलग से सुरक्षा नहीं मिली. उनके बाकी भाई-बहनों को भी कभी एसपीजी सुरक्षा नहीं प्राप्त हुई. राव की तरह से बाकी भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्य भी सामान्य नागरिक की तरह से ही जीवन बिता रहे हैं. इनमें पत्नी और बच्चे सभी शामिल हैं. डॉ. मनमोहन सिंह की एक पुत्री डॉ. उपिन्दर सिंह, दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ाती हैं. चंद्रशेखर जी के दोनों पुत्र भी बिना किसी खास सुरक्षा व्यवस्था के जीवनयापन कर रहे हैं. उनके एक पुत्र नीरज शेखर तो मेरे साथ ही राज्यसभा के सांसद हैं. देवगौड़ा और गुजराल साहब के परिवारों को भी कोई अलग से सुरक्षा नहीं मिली हुई. पर राजीव गांधी के परिवार पर रोज करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं. क्योंकि वे चौबीसो घंटे एसपीजी के सुरक्षा कवर में रहते हैं.

मुफ्त देसी-विदेशी दौरे..

एसपीजी की सुरक्षा में आने वालों को दिल्ली से बाहर किसी अन्य शहर या विदेशी दौरे पर जाने के दौरान हेलिकॉप्टर या विमान की सुविधा भी तुरंत उपलब्ध करायी जाती है. ये सारी सुविधाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति पूर्व प्रधानमंत्री तक को मिलना तो जायज ठहराया जा सकता है. पर इसके दायरे में राहुल गांघी और प्रियंका गांधी भी कवर हों, यह तो समझ से परे है. प्रियंका गांधी अपनी निजी यात्राओं पर लगातार सैर-सपाटा करती रहती हैं. पूरे परिवार और लम्बी-चौड़ी मित्रमंडली के साथ. तो सवाल यह है कि उनकी सुरक्षा का खर्च देश का आम करदाता क्यों उठाए? यही बात राहुल गांधी को लेकर भी कही जा सकती है. हालांकि, वे सांसद होने के नाते सांसदों को लागू सामान्य सरकारी बंगले के हकदार तो हैं. लेकिन, कैबिनेट मंत्रियों के दर्जे के बंगले, सुरक्षा के तामझाम और हाउस गार्ड के हक़दार तो कतई नहीं. इन्हें एम.पी. स्तरीय सुरक्षा मिले ताकि ये अपने कार्यों का निर्वाह सही तरह से कर सकें, इसमें तो किसी को कोई समस्या नहीं है. जहाँ भीड़-भाड़ में जाए वहां स्थानीय प्रशासन किसी भी सांसद की उन्हें लोकल सुरक्षा कवच तो देगा ही वे किस मानें में बहन मायावती, मुलायम सिंह जी, अखिलेश, लालू जी, शरद यादव, शरद पवार या करूणानिधि से ज्यादा असुरक्षित हैं?

कुछ माह पहले एक आरटीआई के जवाब में भारत सरकार बताया कि प्रियंका गांधी को लुटियन दिल्ली के लोधी एस्टेट के शानदार बंगले का मासिक किराया मात्र 8,888 रुपये ही देना पड़ता है. यह छह कमरे और दो बड़े हालों और तीन बड़े लॉन, कई सर्वेंट क्वार्टर सहित विशाल बंगला है. कई एकड़ में फैला है. ऊंची दीवारें हैं. जगह-जगह सुरक्षा पोस्ट बने हुए हैं. दर्जनों सुरक्षा प्रहरी 24 घंटे तैनात रहते हैं. यह भी ठीक है कि उनकी भी सुरक्षा अहम है. वे कम से कम नेहरु-गाँधी परिवार की वंशज तो हैं ही. पर उनसे आखिरकार इतना कम किराया क्यों लिया जा रहा है? उनके और उनके पति के पास हजारों करोड़ की संपत्ति है. उन्हें धन की कमी है क्या? पिछले ही हफ्ते नगर विकासमंत्री पुरी साहब से बात हो रही थी, परेशान थे बेचारे उन्होंने बताया कि अभी भी वे एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों को उनकी हैसियत के अनुसार कोठियां नहीं दे पायें हैं.

राहुल गांधी, टाटा नैनो, गुजरात, नरेंद्र मोदी

कई तो एम.पी. फ्लैट्स में या गेस्ट हाउसों में रह रहे हैं. एक ओर यह हालात और दूसरी ओर राहुल, प्रियंका के सरकारी खर्च पर गुलछर्रे. इतने कम किराए पर राजधानी में एक कमरे का फ्लैट मिलना भी कठिन है. और जब प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा का अपना सैंकड़ों करोड़ का लंबा-चौड़ा कारोबार है. वे स्वयं सक्षम हैं, तो फिर उनसे इतना कम किराया सरकार क्यों लेती है. आख़िरकार, यदि किसी व्यापारी को खतरा महसूस होता है और पुलिस विभाग उस खतरे को जायज मानती है तो उसे भी गनर मुहैया कराने का प्रावधान है, पर पैसे सरकारी खजाने में जमा करवाने के बाद जाहिर है, देश की जनता को इस सवाल का जवाब तो चाहिए ही. और, क्या प्रियंका गांधी को दिल्ली में अपना मकान रहते हुए भी लगभग मुफ्त में लुटियन जोन के बंगले में रहने की मांग करनें में स्वयं में शोभा देता है? शर्म नहीं आती? इस देश में बाकी पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार भी तो हैं. उन्हें तो इस तरह की कोई सुविधाएं नहीं मिलतीं? प्रियंका तो सांसद या विधायक क्या वार्ड पार्षद तक भी तो नहीं हैं. लाल बहादुर शास्त्री के परिवार के किसी सदस्य के पास तो दिल्ली में एक फ्लैट भी नहीं है वे गुडगाँव में रहते हैं.

जिस तरह की सुविधाएं राहुल गांधी और प्रियंका को मिलती हैं, उसकी एक चौथाई भी बाकी पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्यों को नहीं मिलती. भूतपूर्व प्रधानमंत्री पी. वी.नरसिंह राव के बच्चों को शायद ही कभी एसपीजी सुरक्षा मिली हो. यहां तक कि वर्तमान प्रघानमंत्री का पूरा परिवार भी आम नागरिक की जिंदगी जी रहा है. पर राजीव गांधी के परिवार पर रोज करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं. क्योंकि वे एसपीजी के सुरक्षा कवर में रहते हैं. क्या बाकी प्रधानमंत्रियों के परिवार के सदस्यों की जान को किसी से कोई खतरा नहीं है? क्या वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं?

एसपीजी का 1985 में बीरबल नाथ समिति की सिफारिश पर गठन हुआ था. एक बार राजघाट पर जब राजीव गांधी गए थे तो एक नवजवान, जो बाद में डाक्टरी जांच में पागल निकला, झाड़ियों में छुपाकर तमाशा देख रहा था. वह निहत्था राजीव गांधी को मारने आया था यहसिद्ध नहीं हुआ. लेकिन, बीरबल नाथ समिति की सिफारिश पर कई पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई हो गई और प्रधानमंत्री की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए एक नए अत्याधुनिक सुरक्षा दस्ता एस.पी.जी. का गठन भी हो गया. 8 अप्रैल, 1985 को एसपीजी अस्तित्त्व में आई और डॉ. एस. सुब्रमण्यम इसके प्रथम प्रमुख बनें. एसपीजी के गठन का मकसद राजीव गाँधी की सुरक्षा को चाक-चौबंद करना था प्रधानमंत्री की नहीं. खैर उस वक्त स्थितियां गंभीर थीं. 1984 में अकाल तख्त ध्वस्त करने के इंदिरा गांधी के दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय से पूरा सिख समाज मर्माहत था.

परिणाम स्वरुप, श्रीमती इंदिरा की साल 1984 में उनके ही सुरक्षा गार्डों ने हत्या कर दी थी. सारा देश उस रोंगेट खड़े कर देने वाली घटना से सन्न था. तब सरकार द्वारा ये महसूस किया गया कि (प्रधानमंत्री) राजीव गाँधी की सुरक्षा को और मजबूत करने की आवश्यकता है. लेकिन, जब वी.पी. सिंह प्रधानमंत्री बने तो स्थिति हास्यास्पद हो गई. राजीव गाँधी (पूर्व प्रधानमंत्री) तो एस.पी.जी. की सुरक्षा में चलते थे, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री सामान्य मंत्रियों को लागू सुरक्षा कवर में संसद के सेंट्रल हॉल में यह एक चुटकुला बन गया. तब जाकर एस.पी.जी. एक्ट को संशोधित करके उसके कवर में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी जोड़ा गया लेकिन, पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार एस.पी.जी. में शामिल नहीं थे.

इसके बाद राजघाट की घटना के बाद एसपीजी सामने आई. एस.पी.जी. की जिम्मेवारी के दायरे में राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को भी जोड़ा गया. कुछ अरसे के बाद सरकार ने तय किया कि एसपीजी पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी सुरक्षा उपलब्ध करवाएगी. उन्हें उनके पद से मुक्त होने के पांच साल बाद तक सुरक्षा देगी एसपीजी, ऐसा नियम बनाया गया. यह क्रम जारी रहा साल 1991 तक. उसी साल एक दिल-दहलाने वाली घटना में राजीव गांधी की जान चली गई. उसके बाद सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्रियों की एस.पी.जी. सुरक्षा कवर की उपर्युक्त पांच वर्षों की अवधि को दस साल कर दिया.

एसपीजी एक्ट में साल 2002 में एक बड़ा संशोधन किया गया. इसमें व्यवस्था कर दी गई कि “कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके परिवार (राहुल गांधी और प्रियंका गांधी और उनके कुनबे) को भी प्रधानमंत्री के स्तर की सुरक्षा मिलती रहे और प्रतिवर्ष सुरक्षा स्तर की समीक्षा होगी.” जाहिर है, इसका सीधा लाभ सोनिया गांधी और उनके परिवार को मिल गया.

तो वक्त की मांग है कि एसपीजी एक्ट में संशोधन हों ताकि कोई भी शख्स,जिसे एसपीजी सुरक्षा मिली है, वो इसका दुरुपयोग ना कर सके.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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