New

होम -> सिनेमा

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 20 दिसम्बर, 2021 01:53 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
  • Total Shares

बॉलीवुड के लिए कोर्टरूम ड्रामा बॉक्स ऑफिस पर एक हिट फॉर्मूला बन चुका है. भले ही अब ओवर द टॉप यानी ओटीटी का जमाना आ गया हो, लेकिन सफलता का ये पैमाना आज भी बना हुआ है. साल 1960 में आई बीआर चोपडा की राजेंद्र कुमार स्टारर फिल्म 'कानून', राजकुमार संतोषी की सन्नी देओल-ऋषि कपूर स्टारर फिल्म 'दामिनी', अनिरूद्ध रॉय चौधरी की अमिताभ बच्चन-तापसी पन्नू स्टारर फिल्म 'पिंक' से लेकर इस साल रिलीज हुई रूमी जाफरी की अमिताभ बच्चन-इमरान हाशमी की फिल्म 'चेहरे' तक की कामयाबी यही बताती है कि कोर्ट रूम ड्रामा दर्शकों को लुभाता है. इसी कड़ी में ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर एक फिल्म स्ट्रीम हो रही है '420 आईपीसी', जिसमें विनय पाठक, रणवीर शौरी, रोहन मेहरा और गुल पनाग जैसे बॉलीवुड के कलाकार अहम किरदारों में हैं.

1_650_122021123519.jpgनिर्देशक-लेखक मनीष गुप्ता की कोर्टरूम ड्रामा फिल्म '420 आईपीसी' से जी5 को बहुत उम्मीदें थीं.

कोरोना महामारी शुरू होने से ठीक पहले सिनेमाघरों में रिलीज हुई अजय बहल द्वारा निर्देशित फिल्म 'आर्टिकल 375' के लेखक मनीष गुप्ता ने ही फिल्म '420 आईपीसी' की कहानी और पटकथा लिखी है. इस फिल्म के निर्देशन का जिम्मा भी मनीष गुप्ता के कंधों पर ही है. लेकिन मनीष निर्माता राजेश केजरीवाल और गुरपाल सचर के भरोसे पर खरे नहीं उतर पाए हैं. एक सुस्त और बेदम कहानी के साथ उनका लचर निर्देशन विनय पाठक, रणवीर शौरी और गुल पनाग जैसे मझे हुए कलाकारों से भी उनका सौ फीसदी नहीं ले पाया है. हालांकि, विनय पाठक ने अपनी प्रतिभा के मुताबिक जोर लगाने की कोशिश की है, लेकिन वो असफल रहे हैं. उनका किरदार कहानी के केंद्र में जरूर है, लेकिन करने के लिए उसके पास ज्यादा कुछ नहीं है, जो कि निर्देशक-लेखक की नाकामी है.

420 IPC Movie की कहानी

फिल्म '420 आईपीसी' की कहानी अभिनेता विनय पाठक के किरदार बंसी केसवानी के आसपास घूमती है. बंसी पेशे से सीए हैं, जो अपनी पत्नी पूजा केसवानी (गुल पनाग) और बच्चे के साथ एक फ्लैट में रहते हैं, जिसका लोन अभी चल रहा होता है. बंसी केसरवानी के क्लाइंट बहुत बड़े-बड़़े हैं, जैसे कोई बड़ा बिल्डर है, तो कोई सरकारी अफसर, लेकिन उनकी खुद की हालत बहुत पतली है. यहां तक कि लोन की किश्त न चुका पाने की वजह से उनको बैंक की तरफ से घर खाली करने का नोटिस तक मिल जाता है. इसी बीच उनके जीवन में भूचाल आ जाता है. उनके घर सीबीआई की रेड होती है. पता चलता है कि उनका क्लाइंट एमएमआरडीए का डिप्टी डायरेक्टर संदेश भोसले करप्शन के एक केस में पकड़ा गया है. उसके उपर 3000 करोड़ की लागत से बन रहे एक ब्रिज निर्माण के प्रोजेक्ट में से 1200 करोड़ रुपए का गबन करने का आरोप है. इसी सिलसिले में सीबीआई बंसी केसवानी से पूछताछ करती है. लेकिन उनके घर से कुछ भी बरामद नहीं होता है.

इस घटना के तीन महीने बाद बंसी केसवानी पर एक नई मुसीबत आ जाती है. उसका क्लाइंट बिल्डर नीरज सिन्हा उसके उपर 50-50 लाख के तीन चेक चुराने का आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ केस दर्ज करा देता है. पुलिस को बंसी के दफ्तर से तीनों चेक बरामद होते हैं, लेकिन उसका कहना है कि वो उनके बारे में नहीं जानता. इसके बाद केस कोर्ट में आता है. बंसी की तरफ उसका वकील बीरबल चौधरी (रोहन विनोद मेहरा) केस लड़ने के लिए कोर्ट में हाजिर होता है, जबकि नीरज सिन्हा की तरफ एक बहुत ही अनुभवी और प्रतिष्ठित वकील सावक जमशेदजी (रणवीर शौरी) पैरवी के लिए आता है, जो उस वक्त के चर्चित ब्रिज घोटाला केस में सीबीआई का वकील भी है. कोर्ट में जज के सामने जमशेदजी और बीरबल के बीच जमकर बहस होती है. कई बार ऐसा लगता है कि बीरबल ये केस हार जाएगा, लेकिन वो इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देखता है और किसी भी हाल में जीतना चाहता है. इसके लिए वो साम-दाम-दंड-भेद हर पैंतरे इस्तेमाल करता है. अंतत: केस जीत भी जाता है. लेकिन बंसी इस केस से बरी होने के बावजूद ब्रिज घोटाले में फंस जाता है. आखिर ये कैसे हुआ? आगे बंसी के साथ क्या होता है? बिना फिल्म देखे ये जानना ठीक नहीं है.

420 IPC Movie की समीक्षा

ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के बीच ओरिजनल कंटेंट दिखाने के नाम पर होड़ मची हुई है. इसमें भी सफल जॉनर में वेब सीरीज और फिल्में सबसे ज्यादा बनाई जा रही है. जैसे कि क्राइम-थ्रिलर जॉनर में पुलिस, करप्शन, कोर्ट केस, आतंकवाद, जासूसी आदि विषयों पर सिनेमा ज्यादा बनता रहा है. अब जिस ओटीटी के पास जिस जॉनर का सिनेमा नहीं होता है, उसके उपर ये दबाव होता है कि वो अपने सब्सक्राइबर्स के लिए उसका निर्माण करे. जी5 भी कुछ ऐसे ही दबाव में दिखता है. वरना फिल्म '420 आईपीसी' आनन-फानन में बनाई हुई फिल्म नहीं लगती. इसमें कलाकार तो अच्छे चुन लिए गए हैं, लेकिन उनके हिसाब से किरदार नहीं बुन पाए हैं, न ही कहानी लिखी गई है. यहां तक फिल्म खत्म हो जाती है, लेकिन कहानी अधुरी ही रह जाती है. अधिकतर कोर्टरूम ड्रामा फिल्मों में पीड़ित को न्याय मिलता दिखाया गया है, लेकिन यहां तो पीड़ित ही आरोपी निकल जाता है. ऐसे में इंसाफ की लड़ाई किसके लिए की जाती है, यही नहीं समझ आता है. हां, एक वकील की सफलता जरूर दिखती है.

बिना लाग-लपेट के साफ शब्दों में कहा जाए तो मनीष गुप्ता की फिल्म '420 आईपीसी' न तो मनोरंजन कर पाती है, न ही विषय को संवदेनशीलता और गंभीरता को दर्शा पाती है. केवल नामी-गिरामी कलाकारों के सहारे नैय्या पार लगाने की कोशिश की गई है. कोर्टरूम ड्रामा फिल्मों में दिखने वाले बहस, खींचतान, तर्क-वितर्क-कुतर्क और संवाद पूरी तरह से गायब हैं. कोर्टरूम सीन को स्थापित करने के लिए या तो अत्यंत यथार्थवादी या अत्यधिक नाटकीय होने की आवश्यकता होती है, जो कि इस फिल्म में नदारद है. 'आर्टिकल 375' जैसी फिल्म देखने के बाद '420 आईपीसी' को देखने के बाद बहुत निराशा हाथ लगेगी. जहां तक कलाकारों के परफॉर्मेंस की बात है तो विनय पाठक को छोड़कर कोई भी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाया है. वकील सावक जमशेदजी के रोल में रणवीर शौरी बेहद बनावटी लगे हैं. बंसी केसवानी की पत्नी पूजा केसवानी के रोल में गुल पनाग को देखकर ऐसा लगता है, जैसे वो बेमन से काम कर रही हैं. कुल मिलाकर, फिल्म '420 आईपीसी' देखना समय की बर्बादी है.

iChowk.in रेटिंग: 5 में से 1 स्टार

#420 आईपीसी, #फिल्म रिव्यू, #फिल्म समीक्षा, 420 IPC Movie Review In Hindi, 420 IPC Movie Starcast, Vinay Pathak

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय