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Updated: 01 नवम्बर, 2021 01:50 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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देश भर में सिनेमाघरों के खुल जाने के बाद इनदिनों ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के बीच अपने सब्सक्राइबर्स को बचाए रखने के लिए जंग चल रही है. उनकी जंग के बीच चांदी उन फिल्म मेकर्स की हो गई है, जो सिनेमा के नाम पर सस्ते कंटेंट परोसने में यकीन रखते हैं. कहते हैं ना कि दो शेरों की लड़ाई में फायदा हमेशा लोमड़ी का होता है. इसी तरह ओरिजनल कंटेंट की चाहत और नयापन बनाए रखने के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म लगातार नई वेब सीरीज और फिल्मों की डिमांड करते हैं. लेकिन डिमांड ज्यादा है, क्वालिटी कंटेंट की सप्लाई कम है. इस मौके का फायदा फिल्म 'आफत-ए-इश्क' जैसे मेकर्स उठा रहे हैं. इतना ही नहीं एक अच्छे खासे विचार का भी बेड़ा गर्क कर रहे हैं.

विज्ञापन फिल्मों को बनाने वाले इंद्रजीत नट्टों के निर्देशन में बनी फिल्म 'आफत-ए-इश्क' एक हंगेरियन फिल्म 'लिज़ा द फॉक्स फेरी' की ऑफिशियल हिंदी अडॉप्टेशन है. इस ब्लैक कॉमेडी फिल्म को डोमेस्टिक लेवल पर बहुत ही शानदार रिस्पांस मिला था. हंगरी में करीब एक लाख दर्शकों ने इस फिल्म को देखा था. इतना ही नहीं पुर्तगाल में हुए फैंटास्पोर्टो फिल्म फेस्टिवल में इस फिल्म को ग्रैंड प्राइज से सम्मानित किया गया था. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि फिल्म 'लिज़ा द फॉक्स फेरी' का स्तर क्या है, लेकिन हिंदी अडॉप्टेशन 'आफत-ए-इश्क' को देखने के बाद ये लगता है कि पटकथा लेखकों को हंगेरियन फिल्म समझ में ही नहीं आई है. इतना ही नहीं एक बेहतरीन फिल्म को हिंदी में इस तरह बनाकर उसकी मूल आत्मा को मारा गया है. बस इसी से समझ लीजिए कि हंगरी के सेटअप को यूपी के गाजियाबाद में लगाया गया है.

650_110121111310.pngफिल्म 'आफत-ए-इश्क' एक्ट्रेस नेहा शर्मा और एक्टर नमित दास लीड रोल में हैं.

'आफत-ए-इश्क' फिल्म की कहानी

फिल्म 'आफत-ए-इश्क' की शुरूआत एक दिलचस्प नोट पर हॉरर इफेक्ट के साथ होती है. थाने के अंदर इंस्पेक्टर रामदयाल (दर्शन जरीवाला) लल्लो (नेहा शर्मा) नाम की लड़की से उसके आसपास हो रही लोगों की रहस्यमय मौतों के बारे में पूछताछ कर रहे हैं. लल्लों इंस्पेक्टर को बताती है कि वह शापित 'लाल परी' है, जो भी उसके करीब आएगा, उसका अंत जल्द ही होगा. इस सीन के बाद इला अरुण के वायस ओवर के साथ फिल्म के मुख्य हिस्से की शुरूआत होती है. सीधी-सादी लल्लो बहुजी (इला अरुण) के घर उनकी देखभाल का काम करती है. उसकी उम्र 30 साल की हो चुकी है, लेकिन उसकी जिंदगी में कोई नहीं है. बचपन में मां-बाप गुजर गए. जवानी बहुजी की सेवा में निकली जा रही है. उसे कोई प्यार करने वाला नहीं है. जो भी उससे प्यार करने की कोशिश करता, उसकी मौत हो जाती. इस वजह से वो बहुत दुखी रहती है.

लल्लो की दुखी जिंदगी में उसका एक साथी होता है, जो कि एक आत्मा होती है. उसका नाम आत्माराम (नमित दास) होता है. लल्लो अपने दिल की हर बात आत्मा से शेयर करती है. एक दिन उसके हाथ एक किताब लगती है, लाल परी. उसे पढ़ने के बाद उसे ऐसा लगता है कि उसकी जिंदगी भी लाल परी जैसी है. जैसे कि लाल परी को कभी प्यार नसीब नहीं हुआ. उसके पास आने वाले हर मर्द की मौत हो जाती है. उसी तरह उसकी जिंदगी भी हो गई है. कहानियों में जिंदगी और जिंदगी में कहानियां ढूंढने वाली, किस्सों की शौकीन लल्ली मानने लगती है कि एक ऐसी शमा जो खुद तो जल जाएगी मगर जो परवाना पास आएगा, वह भी जलकर खाक हो जाएगा.

इसी बीच उसके आसपास होने वाली मौत की तहकीकात के लिए इंस्पेक्टर रामदयाल उसके घर एक जासूस विक्रम (दीपक डोबरियाल) को भेजता है. वो उसके घर पर किराएदार बनकर रहने लगता है. उसकी जासूसी करते-करते उसे प्यार करने लगता है. इधर बहुजी का एक रिश्तेदार प्रेम गुंजन भी उसे चाहने लगता है. प्रेम के एहसानों तले दबी लल्लो उसे खोना नहीं चाहती. इसलिए उसे अपने से दूर रहने की सलाह देती है. लेकिन एक दिन प्रेम गुंजन की हत्या उसके घर के दरवाजे पर हो जाती है. इसके बाद पुलिस उसे पकड़कर थाने ले जाती है, लेकिन विक्रम उसे बेकसूर साबित करके वापस घर ले आता है. इसके बाद लल्लो जहर खाकर जान देने की कोशिश करती है. उस वक्त उसे पता चलता है कि आत्मा उससे प्यार करता है. सारी मौतों का जिम्मेदार वही है. इसके आगे क्या होता है, जानने के लिए फिल्म देखनी होगी.

फिल्म 'आफत-ए-इश्क' की समीक्षा

ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर हॉरर-कॉमेडी फिल्मों का एक दौर चल रहा है. फिल्म 'स्त्री' की सफलता के बाद मेकर्स लगातार उसे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भूत-पुलिस, रूही, एनाबेले राठौर जैसी फिल्मों की वजह से इस जॉनर की दिशा ही बदल गई है. ऐसे समय में जब हॉरर-कॉमेडी जॉनर को नए सिरे से बनाने की जरूरत है, विदेशी फिल्म की रीमेक होने के बावजूद फिल्म 'आफत-ए-इश्क' में कोई दिलचस्प आधार नहीं है. फिल्म कहानी कमजोर है, पटकथा (इंद्रजीत नट्टोजी और नेहा बहुगुणा) दोहराई जाती है और दर्शकों को बांधे रखने में विफल रहती है. जब भी ऐसा लगता है कि आगे कुछ हैरान करने वाला होगा, तो फिल्म सीधी-सपाट आगे बढ़ जाती है. हां, फिल्म के अंत में एक दिलचस्प मोड़ आता है, लेकिन वहां तक पहुंचने में फिल्म को बहुत समय लगता है. इतने में दर्शक ऊब कर फिल्म छोड़ सकता है.

नेहा शर्मा ने अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाई है. वो अपने किरदार के विभिन्न रंगों को सामने लाती हैं. मितभाषी लड़की होने से लेकर किसी को लुभाने और मिस्टर राइट और 'लाल परी' जो उसके करीब आने वाले हर किसी की मौत का कारण बनती है. जासूस पुलिस के किरदार में दीपक डोबरियाल ने भी अच्छा काम किया है. अमित सियाल और दर्शन जरीवाला ने अपनी भूमिकाओं के हिसाब से ठीक काम किया है. आत्माराम के किरदार में नमित दास के पास करने के लिए बहुत कुछ था, लेकिन वो कर नहीं पाए हैं. श्रेया गुप्ता का कैमरावर्क बेहतरीन है, लेकिन गौरव चटर्जी का संगीत फिल्म की पटकथा के लिहाज से समझ नहीं आता है.

कुल मिलाकार, फिल्म 'आफत-ए-इश्क' में हॉरर-कॉमेडी के नाम पर कुछ नहीं है. हां, इसमें ड्रामा है. वो भी इतना असरदार नहीं है, जिसे देखने के लिए आप दो घंटे समय खर्च करें. यदि दिवाली की छुट्टी में बिल्कुल खाली बैठे हैं, तो ही आपको इसे देखना चाहिए, वरना फिल्म छोड़ी जा सकती है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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