अगर 'खान' से ऊपर नहीं उठेगा बॉलीवुड तो ऑस्कर का सपना कैसे पूरा होगा?
आदिल हुसैन, एकावली खन्ना और अन्य भारतीय एक्टरों को लेकर बनाई गई फिल्म को नॉर्वे ने अपनी तरफ से ऑस्कर की आधिकारिक एंट्री बनाया है. ये सोचने वाली बात है कि शाहररुख और सलमान की फिल्मों से बढ़कर बॉलीवुड में ज्यादा कुछ नहीं देखा जाता है.
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भारत के लिए एक खुशखबरी है. बेहद उम्दा एक्टर आदिल हुसैन ने ये खुशखबरी सबके साथ साझा की है. इसलिए क्योंकि एक्टर आदिल हुसैन की फिल्म ‘What Will People Say’ जो ऑस्कर की आधिकारिक एंट्री बनाया गया है. भारत से नहीं बल्कि नॉर्वे से. जी हां, फिल्म में भारतीय एक्टर हैं, कहानी पाकिस्तान के एक रिफ्यूजी परिवार की दिखाई गई है और फिल्म को आधिकारिक ऑस्कर एंट्री नॉर्वे ने बनाया है. इसके बाद आदिल हुसैन ने अपना नाम ऐसे भारतीय एक्टरों की लिस्ट में शुमार कर लिया है जो विदेशी डॉयरेक्टरों के साथ काम करके विदेशों में फेमस हो गए. इनमें न ही किसी की शक्ल बहुत अच्छी है न ही किसी के पीछे स्टार किड होने का तमगा लगा है, लेकिन ये एक्टर और ऐसी फिल्में देश और विदेश दोनों में ही फेमस हैं जैसे लाईफ ऑफ पाई, स्लम डॉग मिलियनएयर आदि.
आदिल हुसैन ने ट्वीट कर इस बारे में जानकारी दी.
It's not yet Nominated for #Oscars. It's the official entry to Oscars from Norway! Now we hope that it will be one of the films to be chosen to compete in the #ForeignFilm Category! https://t.co/TZiZkWFApo
— Adil hussain (@_AdilHussain) September 4, 2018
इन फिल्मों को ऑस्कर अवॉर्ड में हिस्सा भी मिलता है और ये जीतकर भी आती हैं. आदिल की फिल्म ‘What Will People Say’ को पहले ही अर्तरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सराहना मिल चुकी है और कोई बड़ी बात नहीं है कि इसे ऑस्कर मिल ही जाए. जहां तक ऑस्कर का सवाल है तो हम इसे फिल्मी दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान मानते हैं, लेकिन करोड़ों कमाने वाले बॉलीवुड और अरबों के चहीते बॉलीवुड के 'खान' की फिल्में इससे दूर रहती हैं. फिलहाल आदिल हुसैन की इस फिल्म की बात कर लेते हैं कि इसमें खास क्या है.
आदिल हुसैन और एकावली खन्ना द्वारा अभिनित इस फिल्म को ऑस्कर 2019 के लिए चुना गया है. हालांकि, ये अभी आधिकारिक नॉमिनी नहीं बनी है और सिर्फ फिल्म को एंट्री ही माना जा रहा है. भारत के इस अभिनेता का कहना है कि जब वो शूटिंग कर रहे थे तो उन्हें पता था कि वो एक बेहतरीन फिल्म बना रहे थे पर फिल्म को ऐसा रिस्पॉन्स मिलेगा ये उन्हें नहीं पता था. इस फिल्म में शीबा चड्ढा, रोहित सराफ, अली अरफान, जन्नत जुबैर रहमानी, ललित परीमू जैसे भारतीय कलाकारों ने काम किया है.
क्या है फिल्म की कहानी?
‘What Will People Say’ एक पाकिस्तानी रिव्यूजी परिवार की कहानी है जो नॉर्वे में रह रहा है. परिवार में एक बेटी भी है जिसका नाम है निशा. इस किरदार को मारिया मोज़दाह ने निभाया है. आदिल हुसैन बने हैं पिता और एकावली खन्ना मां. बेटी निशा अपने दोस्तों के साथ एक आम नॉर्वे की टीनएजर की तरह रहती हैं और घरवालों के सामने एक आम पाकिस्तानी लड़की जैसे. जब निशा के पिता उसे अपने विदेशी ब्वॉयफ्रेंड के साथ देख लेते हैं तो कयामत आ जाती है और निशा को अदब सिखाने के लिए पाकिस्तान भेज दिया जाता है. निशा की जिंदगी में क्या होता है, कैसे एकदम उसकी आज़ादी जेल में बदल जाती है इसपर है फिल्म.
क्यों नॉर्वे ने नॉमिनेट किया?
भले ही इस फिल्म में हिंदुस्तानी एक्टर लिए गए हैं, लेकिन ये फिल्म हिंदुस्तानी नहीं है. इसे तीन देशों ने को-प्रोड्यूस किया है जो नॉर्वे, जर्मनी और स्विडेन हैं. इसे इरम हक ने डायरेक्ट किया है. यही कारण है कि ये फिल्म नॉर्वे से ऑस्कर के लिए जा रही है.
‘What Will People Say’ का ट्रेलर देखकर ही समझ आता है कि ये फिल्म कितनी संजीदा है.
इस तरह की संजीदा फिल्में आखिर विदेशों में क्यों बन रही हैं?
इसका जवाब सीधा सा है, भारत में इन फिल्मों को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए किसी बड़े एक्टर की जरूरत होती है. जब तक न्यूटन जैसी फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं मिलती या उसे ऑस्कर के लिए आधिकारिक एंट्री की लिस्ट में शामिल नहीं किया जाता तब तक हमें पता ही नहीं चलता कि आखिर ऐसी फिल्मों में है क्या? जहां तक आदिल हुसैन की ही बात है तो पार्च्ड, मुक्ति धाम, जेड प्लस और कम से कम इसके जैसी आधा दर्जन फिल्में ऐसी हैं जिसमें उस एक्टर को बेहतरीन किरदार के लिए कम से कम थोड़ी प्रशंसा ही कर दी जाती. पर क्या ऐसा हुआ? आदिल हुसैन को बॉलीवुड की सबसे अंडररेटेड एक्टर की लिस्ट में शामिल कर दिया जाता है.
आदिल हुसैन को Amanda Award भी मिला है. ये नॉर्वे का नैशनल अवॉर्ड कहा जा सकता है. जरा सोचिए भारतीय कलाकार नॉर्वे की फिल्म करता है और वहां भी लीड रोल के लिए नैशनल अवॉर्ड जीतकर आता है लेकिन भारत में ऐसा कुछ नहीं. क्यों आखिर हमारे यहां 300 करोड़ की फिल्म के लिए किसी खान की जरूरत होती है? रेस 3, हैप्पी न्यू इयर जैसी फिल्में तो आसानी से बड़ी ओपनिंग ले लेती हैं, लेकिन अगर मुक्ति धाम की बात करें तो वो कब आती है और कब अपने पास वाले थिएटर से हट जाती है पता ही नहीं चलता.
हर साल ऑस्कर अवॉर्ड के बाद सोशल मीडिया पर पूछा जाता है कि आखिर भारत को कोई अवॉर्ड क्यों नहीं मिला? पर इसका जवाब तो हमारे देश की जनता ही दे सकती है कि आखिर राजकुमार राव की फिल्म को उतनी बड़ी ओपनिंग क्यों नहीं मिलती जितनी सलमान खान या शाहरुख खान को?
ऑस्कर जीतने के लिए फिल्म भी वैसी ही बनानी पड़ती है
ऑस्कर जीतने वाली फिल्मों को कभी कमर्शियल फिल्मों की तरह नहीं देखा जाता. बॉलीवुड में सलमान, शाहरुख अगर ऐसी फिल्में बनाते हैं तो वो इसलिए क्योंकि यहां के दर्शक ये देखना पसंद करते हैं. किसी भी विदेशी फिल्म जिसे ऑस्कर मिलता है उसे देखकर क्या किसी को लग सकता है कि उसे बॉक्स ऑफिस हिट की तरह बनाया गया था? ऑस्कर अवॉर्ड के लिए हीरोगिरी नहीं बल्कि आर्ट वाली फिल्म चाहिए होती है. ऑस्कर की फिल्मों का चयन ही कुछ अलग तरह से होता है और इनके लिए कुछ अलग तरह से तैयारी करनी होती है. ये फिल्में आम बॉक्स ऑफिस फिल्मों की तरह नहीं होती. भारत में ऐसी कई फिल्में बनती हैं पर उनपर किसी का ध्यान ही नहीं जाता. चाहें रीजनल सिनेमा हो या मेन स्ट्रीम आर्ट फॉर्म की फिल्मों को देखा जाए तो उन्हें देखने वालों की संख्या बेहद कम होती है.
भारत में एक रीजनल फिल्म बाहुबली आकर सबसे ज्यादा बिजनेस कर जाती है और बाकी लोग देखते रह जाते हैं. क्या ये सब सबूत काफी नहीं ये समझने के लिए कि जब तक बड़े स्टार के पीछे भागा जाएगा, जब तक हीरो को ही माचो मैन दिखाया जाएगा तब तक क्या ऑस्कर आ पाएगा? चलिए हाल ही की रिलीज फिल्म स्त्री की ही बात कर लेते हैं. न तो इस फिल्म में कोई माचोमैन है और न ही ऐसी कोई अविश्वस्नीय कहानी दिखाई गई है कि इंसान को बिलकुल ही यकीन न हो. हिंदी फिल्मों के हीरो को हमेशा मार-धाड़ करते दिखाया जाए या फिर उसे हमेशा सिर्फ हिरोइन से रोमांस करते ही दिखाया जाए ये जरूरी तो नहीं.
बात सिर्फ इतनी सी है कि या तो बॉलीवुड अपने टैलेंट की कदर खुद नहीं करता या फिर उसे ये पता ही नहीं है कि कदर करने का मतलब क्या है. हिंदी मीडियम, स्त्री, कारवां जैसी फिल्में जिनमें कहानी कुछ नई होती है और कॉमेडी भी होती है अब उन्हें जनता पसंद करने लगी है फिर भी जब फैन फॉलोविंग की बात आती है तो बॉलीवुड का कोई खान ही याद आता है. यकीनन ऐसे में ऑफबीट फिल्में जिन्हें असल में विदेशों में सराहना मिलती है, जो असल में ऑस्कर जीतकर आ सकती हैं वो तो ट्रेलर रिलीज होते ही फ्लॉप करार दी जाती है. बॉलीवुड को अगर ऑस्कर के लिए फिल्म बनानी है तो उसे 100 करोड़ क्लब में शामिल होने वाली फिल्म के सपने नहीं देखने होंगे. उसे ये नहीं सोचना होगा कि किसी खान को ही फिल्म में लिया जाए तभी फिल्म चलेगी. फिल्म असल में आर्ट फॉर्म के लिए बनानी होगी न कि सिर्फ करोड़ों कमाने के लिए.
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