Adipurush: रामकथा के विभिन्न संस्करणों और हमारी स्मृतियों में रावण कैसा है?
बचपन में कस्बे की रामलीला के मंचन, विभिन्न धार्मिक पुस्तकों के चित्रों में दस शीश वाला रावण ही देखते थे यही दस शीश हमारे लिए रावण की पहचान बन गए थे, इसके बाद दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले 'जय हनुमान' और रामानन्द सागर की रामायण का जब पुनः प्रसारण हुआ तो रावण एक साधारण मनुष्य की तरह एक शीश वाला नजर आया.
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ओम राउत के निर्देशन में बनी फिल्म 'आदिपुरुष' में रावण और हनुमानजी के हॉलीवुड फिल्मों से प्रेरित चित्रण को लेकर काफी विवाद हो रहा है. इन पौराणिक पात्रों की वेशभूषा और मेकअप वो भाव पैदा करने में असफल है जो वास्तव में रामकथा की आत्मा है. याद आता है बचपन में कस्बे की रामलीला के मंचन, विभिन्न धार्मिक पुस्तकों के चित्रों में दस शीश वाला रावण ही देखते थे यही दस शीश हमारे लिए रावण की पहचान बन गए थे, इसके बाद दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले 'जय हनुमान' और रामानन्द सागर की रामायण का जब पुनः प्रसारण हुआ तो रावण एक साधारण मनुष्य की तरह एक शीश वाला नजर आया.
बड़ी बड़ी मूंछें और अट्टहास रावण के किरदार की एक अम पहचान छोटे पर्दे पर लम्बे समय तक बनी रही. फिर 'संकटमोचन महाबली हनुमान' और 'सिया के राम' जैसे धारावाहिकों में रावण का किरदार दाढ़ी वाले लुक में नजर आने लगा. इस फिल्म में पिछले साल आई 'राम युग' वेब सीरीज में दिखाए गए रावण के लुक को काफी हद तक कॉपी किया गया है. वास्तव में रामकथा का रावण दिखता कैसा था इस बारे में महर्षि वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास जी ने लगभग एक जैसा ही वर्णन किया है.
भ्राजमानं महार्हेण काञ्चनेन विराजता।
मुक्ताजालावृतेनाथ मकुटेन महाद्युतिम्।।5.49.2।।
वज्रसंयोगसंयुक्तैर्महार्हमणिविग्रहैः।
हैमैराभरणैश्चित्रैर्मनसेव प्रकल्पितैः।।5.49.3।।
महार्हक्षौमसंवीतं रक्तचन्दनरूषितम्।
स्वानुलिप्तं विचित्राभिर्विविधाभिश्च भक्तिभिः।।5.49.4।।
विचित्रैर्दर्शनीयैश्च रक्ताक्षैर्भीमदर्शनैः।
दीप्ततीक्ष्णमहादंष्ट्रैः प्रलम्बदशनच्छदैः।।5.49.5।।
शिरोभिर्दशभिर्वीरं भ्राजमानं महौजसम्।
नानाव्यालसमाकीर्णैश्शिखरैरिव मन्दरम्।।5.49.6।।
नीलाञ्जनचयप्रख्यं हारेणोरसि राजता।
पूर्णचन्द्राभवक्त्रेण सबलाकमिवाम्बुदम्।।5.49.7।।
इन श्लोकों में वाल्मीकि जी ने रावण के ऐश्वर्य और यश के साथ साथ उसकी शारीरिक बनावट और विशाल काया का उल्लेख कुछ इस तरह किया है कि रावण अकल्पनीय स्वर्ण आभूषणों और रेशमी वस्त्र धारण कर मोतियों की मालाओं से सुशोभित स्वर्णजड़ित सिंहासन पर बैठा है. लाल आंखों, चमकते पैने बड़े बड़े दांत, लटकते हुए होंठ और पर्वत की चोटियों जैसे दस शीश वाला रावण काजल के पर्वत जैसा है. इसी तरह गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी लिखा है.
अंगद दीख दसानन बैसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें भुजा बिटप सिर सृंग समाना। रोमावली लता जनु नाना॥मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कंदरा खोह अनुमाना॥
रावण दुराचारी और अहंकारी था लेकिन उसके कुछ सकारात्मक पक्ष रामायण के विभिन्न संस्करणों में मिलते हैं. जैसे कि रामेश्वरम की स्थापना के समय राम जी का पुरोहित बनना या विजय कामना के यज्ञ के लिए रामजी को सेना सहित आमंत्रित करना (विवरण मिलता है कि सीता जी भी वहां उपस्थित थीं) और लक्ष्मण जी को रामजी द्वारा मृत्यु शैय्या पर पड़े रावण से राजनीति का ज्ञान लेने भेजना. रावण स्वयं ही परम बलशाली और पराक्रमी था. इसके साथ ही उसके राज्य की अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था, दिव्य आयुधों को धारण करने वाले महापराक्रमी योद्धाओं से सुसज्जित साधन संपन्न सेना जिसे हर तरह के युद्ध में महारत हासिल थी. रावण के दिव्य आयुधों और सेना के साधनों के बारे में मदनमोहन शर्मा शाही जी के दो खंड में उपलब्ध उपन्यास लंकेश्वर अधिक जाना जा सकता है.
रावण के ऐश्वर्य, यश, और पराक्रम को कम आंकना स्वयं उसे साथ ही प्रभु श्रीराम की महिमा को कम आंकने जैसा है. आज रावण जैसे विकट खलनायक को टीवी, फिल्मों वालों के साथ साथ हमने भी एक विदूषक बना दिया है, गांव कस्बों के रामलीला मंचन के दौरान किया जाने वाला रावण का चित्रण और किरदार निभाने वाले कलाकार की पावन मंच पर उल्टी सीधी हरकतें और संवाद दर्शकों के मनोरंजन के काम आते हैं. कमोबेश यही हाल हम हनुमान के किरदार में देखते हैं, जब हमने ही इन पौराणिक पात्रों को मनोरंजन का साधन समझ रखा है तो दोष किस किस को दें? यदि रामकथा को पौराणिक दृष्टि के बजाय हम ऐतिहासिकता और व्यवहारिकता की दृष्टि से समझें तो रावण के वैभव, शक्ति और साधन सम्पन्नता का सामना करने के लिए प्रभु श्रीराम ने किस प्रकार के बौद्धिक और यौद्धिक उपाय किए होंगे इसका विवरण रामकथा स्वयं ही दे देती है.
सीता माता की खोज के समय महाबली हनुमान का रावण की सैन्य शक्ति और दुर्बलताओं का विश्लेषण, सिंहिका, लंकिनी, अक्षय कुमार सहित कई राक्षस योद्धाओं का वध और लंका दहन के रूप में सुरक्षा व्यवस्था का ध्वस्तीकरण, अंगद द्वारा राक्षस योद्धाओं का मनोबल गिराना, रावण द्वारा माया सीता का वध इत्यादि ऐसे प्रसंग हैं. जो यह सिद्ध करते हैं कि राम रावण युद्ध केवल मैदान के साथ साथ वैचारिक धरातल पर भी लड़ा गया. उम्मीद है आने वाले समय कोई तो फिल्मकार या सीरियल निर्माता रामकथा को अकल्पनीयता की दुनिया से उठाकर इसके एक एक प्रसंग को व्यवहारिक, शोधपरक और तथ्यपरक दृष्टि से अवश्य प्रस्तुत करेगा.
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