आदिपुरुष अच्छी या बुरी वो अलग बात, लेकिन थियेटर में जय सियाराम का उद्घोष तो होगा
आदिपुरुष के विरोध से पहले हमें इस बात को समझना होगा कि रामलीला का मंचन जहां भी हो, कदम रुक जाते हैं, हाथ जुड़ जाते हैं और हाथ न भी जुड़ें तो आंखें ज़रूर स्टेज पर अटक जाती हैं. इसलिए पूरा यकीन है फिल्म में ऐसा बहुत कुछ होगा जो कभी भुलाया न जा सकेगा, ऐसे अनेकों मौके आयेंगे जब जय 'सिया राम' का उद्घोष होगा.
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बीते 6 सालों में, बायकॉट से बड़ी कोई प्रमोशनल स्ट्रेटजी नहीं है. आप पद्मावत का बायकॉट कर चुके हैं, फिल्म 300 करोड़ से ऊपर बिंनिस कर गयी. आपने पठान बायकॉट करने की ठान ली, वो भी हाथ पैर मारते जाने कितने हज़ार करोड़ कर गयी. आप बायकॉट से बस रेड लायन अंडरवियर को बर्बाद कर पाए, आपने ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान के कलेक्शन की लंका लगा दी, Zero की कलेक्शन में भी zero लगा दिए तो इसमें कोई बड़ा तीर नहीं मारा. ये फिल्में ऑलरेडी डब्बा गोल आइटम ही थीं.
इसके उलट, बायकॉट के सामने वाली बस्ती 'सच्चे राष्ट्रभक्त हो तो फिल्म ज़रूर देखो' ने जिस फिल्म को सपोर्ट किया, वो बॉक्स ऑफिस पर खच्चर हुई तो भी घोड़े की तरह दौड़ निकली. फिर चाहें वो कश्मीर फाइल्स हो या करेला सटोरी. पर इस बार समस्या ये हो गयी है कि सेम बस्ती के अंदर ही 'बायकॉट करें' और 'ज़रूर देखें' वाली मुठभेड़ हो गयी है.
सभी की निगाहें इसी पर टिकी हुई हैं कि आदिपुरुष अपनी रिलीज के पहले दिन कितनी कमाई करती है
कमाल की बात है कि फिल्म के 80 करोड़ के प्रमोशनल बजट को साइड कर, ये चवन्नियों से शुरु हुई मुठभेड़ फिल्म का ज़्यादा प्रचार कर रही है. अब ये तो ज़ाहिर है कि फिल्म पैसे से बनती है तो पैसा कमाना भी ज़रूरी है. ज़ाहिर ये भी है कि स्टार कास्ट चुनने में, अभी ट्रेलर को देखते हुए बहुत बड़ी कमी नज़र आती है. सत्य ये प्रतीत होता है वीएफएक्स और सीजीआई धनिया मिर्चा की तरह फ्री में लगवाए लगते हैं.
पर इस बात से देश का कोई रामभक्त, राम विरोधी, बड़ी जात, छोटी जात, सिख, मुसलमान, ईसाई या पारसी इनकार नहीं कर सकता कि दिल्ली की भव्य लवकुश रामलीला से लेकर मुरादाबाद के बड़े मैदान में होती छोटी सी रामलीला भी इतनी छोटी तो नहीं होती कि उसको जम जम कोसा जाए.
यहां तो फिर भी कृति सेनन शायद लड़की ही है, ग्राम कस्बों में तो लड़के ही मां सीता भी बनते हैं और सूर्पनखा भी, केकई भी बनते हैं और मंथरा भी, फिर भी रामलीला का मंचन जहां भी हो, कदम रुक जाते हैं, हाथ जुड़ जाते हैं और हाथ न भी जुड़ें तो आंखें ज़रूर स्टेज पर अटक जाती हैं. इसलिए मुझे पूरा यकीन है फिल्म में ऐसा बहुत कुछ होगा जो कभी भुलाया न जा सकेगा, ऐसे अनेकों मौके आयेंगे जब जय 'सिया राम' का उद्घोष होगा.
हां पता है हम भारतीय इमोशनल फूल हैं, ठीक है, फूल ही सही पर कम से कम इमोशनल तो हैं. बाकी आप बताएं, आप देखेंगे या नहीं?
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