New

होम -> सिनेमा

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 27 अप्रिल, 2022 06:15 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
  • Total Shares

हिंदी पट्टी में साउथ सिनेमा का जादू हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है. साउथ की फिल्मों का हिंदी वर्जन बॉक्स ऑफिस पर बंपर कमाई कर रहा है. यहां तक कि कमाई के मामले में बॉलीवुड की फिल्मों को भी पीछे कर दिया है. कन्नड़ सिनेमा के स्टार यश की फिल्म 'केजीएफ चैप्टर 2' से पहले एसएस राजामौली की फिल्म 'आरआरआर', अल्लू अर्जुन की फिल्म 'पुष्पा: द राइज' और अजिथ कुमार की फिल्म 'वलिमै' जैसी फिल्मों ने हिंदी बेल्ट में अच्छा बिजनेस किया है. ऐसे वक्त में कन्नड़ सुपरस्टार किच्चा सुदीप ने हिंदी भाषा पर एक विवादित बयान देकर साउथ सिनेमा के सामने मुसीबत खड़ा कर दी है. सुदीप के विवादित बयान पर अजय देवगन ने जो दो टूक जवाब दिया है, वो सुदीप की सोच पर करारा प्रहार है.

sudeeep-650_042722054552.jpgकन्नड़ अभिनेता किच्‍चा सुदीप के विवादित बयान का अजय देवगन ने माकूल जवाब दिया है.

दरअसल एक इवेंट में पैन इंडिया फिल्मों पर बात करते हुए किच्चा सुदीप ने कहा कि हिंदी अब राष्ट्र भाषा नहीं रही है. बॉलीवुड पैन इंडिया फिल्में बनाने में स्ट्रगल कर रहा है, जबकि साउथ इंडस्ट्री पहले से सफल रही है. प्रशांत नील के निर्देशन में बनी कन्नड़ फिल्म 'केजीएफ चैप्टर 2' की सफलता पर उत्साहित होकर सुदीप ने कहा, ''मैं करेक्शन करना चाहता हूं. हिंदी अब राष्ट्र भाषा नहीं रही. बॉलीवुड अब पैन इंडिया फिल्म बना रहा है. वो लोग तमिल और तेलुगू में फिल्में डब करके सक्सेस के लिए स्ट्रगल कर रहे हैं. फिर भी वो कामयाब नहीं हो पा रहे हैं. लेकिन, आज हम लोग ऐसी फिल्में बना रहे हैं, जो हर जगह देखी और सराही जा रही है''. हिंदी को लेकर किच्चा के इस विवादित बयान पर बॉलीवुड अभिनेता अजय देवगन ने करारा प्रहार किया है. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ''मेरे भाई, आपके अनुसार अगर हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है, तो आप अपनी मातृभाषा की फिल्मों को हिंदी में डब करके क्यूं रिलीज करते हैं? हिंदी हमारी मातृभाषा और राष्ट्रीय भाषा थी, है और हमेशा रहेगी. जन गण मन''.

अजय देवगन ने किच्चा सुदीप को माकूल जवाब दिया है. क्योंकि किच्चा को शायद पता ही नहीं है कि साउथ सिनेमा की फिल्में हिंदी में बनाकर हिंदी बेल्ट में रिलीज की जा रही है, न कि बॉलीवुड की फिल्में साउथ की भाषाओं तमिल, तेलुगू या कन्नड़ में रिलीज करके कमाई कर रही हैं. उनको शायद ये भी नहीं पता है कि साउथ की फिल्में हिंदी पट्टी में जिस तरह से कमाई कर रही है, उसमें उनकी भाषा का कोई रोल नहीं है, बल्कि उनका कंटेंट और उनकी एक्टिंग अच्छी है, जो यहां के लोगों को पसंद आ रहा है. बॉलीवुड जब अपने लोगों के बीच ही पसंद नहीं किया जा रहा है, तो भला साउथ में उसे कोई क्यों पसंद करेगा. उनको इस बात की समझ होनी चाहिए कि यहां किसी भी फिल्म को उसकी भाषा की वजह से सफलता नहीं मिल रही है. जब सबकुछ ठीक चल रहा है, साउथ की फिल्में हिंदी पट्टी में सैकड़ों करोड़ रुपए कमा रही हैं, ऐसे में सुदीप को उड़ता हुई तीर लेना समझ से परे है. क्योंकि उनके वहां के ही एक्टर प्रमोशन के दौरान हिंदी बोलकर हिंदी दर्शकों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं.

कोरोना काल में रिलीज होने वाली पहली पैन इंडिया फिल्म अल्लू अर्जुन की 'पुष्पा: द राइज' है. इस फिल्म ने अपनी कुल कमाई का एक तिहाई से अधिक हिस्सा हिंदी वर्जन से कमाया है. इस फिल्म के प्रमोशन के लिए अल्लू अर्जुन मुंबई आए थे. तब उन्होंने तेलुगू भाषी अभिनेता होते हुए भी हिंदी में बातचीत की थी. उनकी तरह फिल्म 'आरआरआर' के प्रमोशन के दौरान अभिनेता राम चरण और जूनियर एनटीआर, फिल्म 'केजीएफ 2' के प्रमोशन के दौरान रॉकिंग स्टार यश हिंदी बोलते देख गए हैं. रॉकी भाई ने तो कई लंबे इंटरव्यू हिंदी में दिए हैं. उनको देखकर कहीं नही लगा कि उनके मन में भाषाई दीवार है. लेकिन किच्चा सुदीप जैसे एक्टर जो पहले से ही बॉलीवुड में काम करते रहे हैं. इस इंडस्ट्री में उनके सलमान खान जैसे दोस्त हैं, वो अपने मन में इस तरह के विभाजनकारी विचार रखते हैं, ये देखकर और सुनकर हैरानी होती है.

दक्षिण के राज्यों में हिंदी को लेकर विवाद कोई नया नहीं है. कुछ महीने पहले गृह मंत्री अमित शाह ने राजभाषा समिति की एक बैठक में कहा था कि हमारे देश में अनेक प्रकार की भाषाएं हैं, कुछ प्रकार की बोलियां हैं. कई लोगों को लगता है कि ये देश के लिए बोझ हैं. मुझे लगता है कि अनेक भाषाएं और अनेक बोलियां हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत हैं, लेकिन जरूरत है कि देश की एक भाषा हो, जिसके कारण विदेशी भाषाओं को जगह न मिले. इस वजह से राजभाषा की कल्पना की गई थी और राजभाषा के रूप में हिंदी को स्वीकार किया गया था. शाह के इस बयान पर साउथ में बवाल हुआ था, जिसमें प्रकाश राज जैसे कई अभिनेताओं ने हिंदी का विरोध किया था. जबकि यही अभिनेता हिंदी की फिल्मों में काम करके पैसे कमाते हैं, लेकिन बात जब राजनीतिक की आती है, तो विरोध करना शुरू कर देते हैं. आखिर ये दोहरा रवैया कब तक चलेगा?

वैसे जानकारी के लिए बता दें कि पिछले 40 वर्षों में हिंदी बोलने वालों की संख्या में 161 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. इसमें साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे देश में 44 फीसदी आबादी हिंदी बोलती है. बचे हुए 56 फीसदी में 120 भाषाओं को बोलने वाले शामिल हैं. जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो करीब 53 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं. वहीं 14 करोड़ लोगों ने हिंदी को अपनी दूसरी भाषा के रूप में स्वीकार किया है. पिछले 50 वर्षों में हिंदी बोलने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है. साल 1971 में हिंदी बोलने वालों की संख्या महज 20 करोड़ थी, जो कि 2011 में 54 करोड़ हो गई है. हिंदी सिर्फ भारत ही नहीं पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, बांग्लोदश, श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, इंडोनेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, यमन, युगांडा, त्रिनाड, टोबैगो और कनाडा में भी बड़ी संख्या में बोली जाती है.

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय