Akshay Kumar: खान तिकड़ी का तिलिस्म टूटते ही चमक उठे अक्षय कुमार
अक्षय कुमार की फ़िल्मी सफलता भी सही मायने में अपने शिखर पर तब दिखती है जब 2012-13 के बाद नरेंद्र मोदी का राजनीति में उभार हुआ. सिनेमा की आवाज और धारा बिल्कुल बदल गई. इस बदलाव में अक्षय का करिश्मा नजर आने लगा.
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अक्षय कुमार के खाते में ऐसी कोई फिल्म नहीं है जो अब तक सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों की लिस्ट में टॉप 25 में भी शामिल हो. डेढ़ दशक पहले तक अक्षय ऐसे अभिनेता भी नहीं थे कि उन्हें तकनीकी रूप से बॉलीवुड का "ए लिस्टर" माना जाए. यहां तक कि बी ग्रेड फिल्मों से शुरुआत करने वाले अक्षय के माथे पर लंबे वक्त तक एक्शन हीरो का बिल्ला चिपका नजर आता था. उन्हें एक्शन मसाला फिल्मों में कास्ट किया जाता था. आज वे जहां नजर आते हैं डेढ़ दशक पहले नहीं थे. जबकि उनके समकालीन आमिर खान, शाहरुख खान और सलमान खान की तूती बोलती थी. उस दौर में इन सितारों का जो स्टारडम और क्लास था उसमें अक्षय कहीं नहीं ठहरते थे.
लेकिन वक्त के साथ तस्वीर बदल गई. आज जब खान तिकड़ी वजूद बचाने के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है, खिलाड़ी कुमार नए कीर्तिमान गढ़ रहे हैं. पिछले सात-आठ सालों के बॉक्स ऑफिस का रिपोर्ट कार्ड देखें तो सबसे भरोसेमंद अभिनेता के रूप में ना सिर्फ सबके सामने खड़े हैं बल्कि बॉक्स ऑफिस पर निर्माताओं के लिए मुनाफे का "ब्लैंक चेक" साबित हो रहे हैं. हालांकि अब भी अक्षय की कोई ऐसी फिल्म नहीं आती जिसने बॉक्स ऑफिस पर तीन सौ, पांच सौ या फिर हजार करोड़ का बिजनेस किया हो. कोई बात नहीं.
दरअसल, फिल्मों के रिकॉर्डतोड़ बिजनेस और खान तिकड़ी के स्टारडम और क्लास के बीच ही अक्षय ने रास्ता बनाया. एक फ़ॉर्मूला गढ़ा और उस पर लगातार आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं. हर तरफ उनकी तस्वीरें हैं, चर्चाओं में हैं. वही नजर आ रहे हैं. कुछ साल पहले तक अंडर रेटेड रहे अक्षय के लिए निश्चित ही राजनीति में बदलाव टर्निंग पॉइंट साबित हुआ. दरअसल, राजनीति में बदलाव का असर बॉलीवुड के इको सिस्टम में भी दिखा. जिसमें हमेशा से फिल्म उद्योग से लेकर व्यापक दर्शक समूह तक शामिल रहा है. इसे आसानी से समझें तो फिल्म इंडस्ट्री का ये इको सिस्टम लगभग उसी तरह काम करता नजर आता है जैसे राजनीति में कोई वोटबैंक करता रहा है.
बेल बॉटम फोटो- तरण आदर्श के ट्विटर से साभार
हर दौर की राजनीति में खड़े नए-नए सुपरस्टार
डेढ़ दशक पहले की राजनीति दूसरे तरह की थी. उसकी आवाज और धारा दोनों आज से अलग थी. राजनीति में हमेशा इसी आवाज और धारा ने सिनेमा के महारथियों को गढ़ा है. आपातकाल से पहले राजकपूर, देवानंद, दिलीप कुमार तत्कालीन राजनीतिक धारा पर सवार होकर फिल्मों के जरिए सफलता गढ़ने वाले अगुआ अभिनेता थे. आपातकाल से ठीक पहले और उसके बाद अमिताभ बच्चन राजनीति की धारा में असहमति, विद्रोह का जो स्वर उठ रहा था उसपर सवार हुए और 90 तक इसमें अनिल कपूर, सनी देओल, संजय दत्त, मिथुन चक्रवर्ती जैसे अभिनेताओं ने सफलता के कीर्तिमान बनाए. इसके बाद तीन बड़ी चीजों का असर राजनीति पर पड़ा. मंदिर-मस्जिद विवाद, मंडल की राजनीति का उभार और उदारवाद का दौर आया. इस दौर के सिनेमा में तीन धाराएं एक साथ बहीं और उसमें निकली फिल्मों में आमिर, सलमान और शाहरुख को सुपरस्टार का तमगा हैसल हुआ.
मोदी के उभार में अक्षय को मिले रास्ते
अक्षय की फ़िल्मी सफलता भी सही मायने में अपने शिखर पर तब दिखती है जब 2012-13 के बाद नरेंद्र मोदी का राजनीति में उभार हुआ. सिनेमा की आवाज और धारा बिल्कुल बदल गई. इस बदलाव में अक्षय का करिश्मा नजर आने लगा. राजनीतिक आवाजों से प्रभावित दर्शकों का समूह जैसे पहले अभिनेताओं के फेवर में काम कर रहा था वैसा ही अक्षय कुमार और दूसरे एक्टर्स के फेवर में करने लगा. हकीकत में बदलाव के दौरान अक्षय ने उसी मौके को भुनाया जिसे स्टारडम के नशे में चूर अभिनेताओं (खान तिकड़ी) ने नजरअंदाज किया. मोदी युग तक अच्छा सिनेमा बहुत बड़े बैनर्स और निर्माता-निर्देशकों के बगैर बनना शुरू हो चुका था.
एक तरफ वो अभिनेता थे जो बड़े बैनर की महंगी फ़िल्में कर रहे थे. साल में एक दो फ़िल्में कर रहे थे, दूसरी ओर अक्षय कुमार थे जो हलके और मध्यम बजट की फ़िल्में कर रहे थे. साल में तीन-तीन चार-चार फ़िल्में कर रहे थे. उन निर्माताओं के बजट में थे जो एक्शन से अलग कहानियां बनाना तो चाहते थे लेकिन आमिर-शाहरुख या सलमान को कास्ट नहीं कर पा रहे थे. वो नए अभिनेताओं को लेकर रिस्क भी नहीं उठाना चाहते थे. खान तिकड़ी 100 करोड़ के ऊपर की फ़िल्में कर रही थी. कुछेक फ़िल्में ब्लॉकबस्टर साबित हो रही थीं और 500 करोड़ या हजार करोड़ की कमाई कर रही थीं. अक्षय की फ़िल्में दो सौ करोड़ से ज्यादा नहीं कमा रही थीं लेकिन हर फिल्म लागत के मुकाबले बहुत अच्छा मुनाफा बना रही थीं. खान तिकड़ी की एकाध फ़िल्में भले ही जबरदस्त कमाई कर रही थीं (खासकर आमिर और सलमान) मगर ज्यादातर बॉक्स ऑफिस पर लागत निकालने में भी फिसड्डी थीं. पिछले सात साल में शाहरुख की बड़े बैनर्स की ना जाने कितनी फ़िल्में अपना बजट भी नहीं निकाल पाई. दूसरी ओर अक्षय बॉक्स ऑफिस पर तीन चार फिल्मों के जरिए पांच से छह सौ करोड़ का मुनाफा निर्माताओं को दे रहे थे. बिना किसी नुकसान के.
अक्षय का सुपर फॉर्मूला हिट भी सेफ भी
लोगों को जानकार ताज्जुब होगा कि अब तक सबसे ज्यादा कमाई करने वाली अक्षय की फिल्म गुड न्यूज है. ये फिल्म भी कोरोना से पहले 2019 में आई थी. फिल्म का भारत में कुल नेट कलेक्शन 205 करोड़ रुपये है. अब तक सबसे ज्यादा कमाई करने वालीं टॉप 30 बॉलीवुड फिल्मों की लिस्ट में अक्षय और उनकी फिल्म 29वें नंबर पर है. लेकिन टॉप 30 लिस्ट में शाहरुख सलमान और अमीर के फिल्मों की भरमार है. अक्षय फ़िल्मी कारोबार की परिभाषा को "क्वान्टिटी" के जरिए बदलते दिख रहे हैं. कोई फ्लॉप नहीं, ज्यादा से ज्यादा फ़िल्में करना और ओवरआल बेहतर सालाना मुनाफा निकालना. धारा के साथ बहने वाली फ़िल्में करना. यानी मौजूदा पॉलिटिकल मूड को शूट करने वाली फ़िल्में. देशभक्ति, बायोपिक, रेस्क्यू ऑपरेशन और कॉमेडी ड्रामा.
अक्षय की फिल्मोग्राफी देखिए तो उनका फ़ॉर्मूला साफ़ समझ में आ जाता है. उनकी फ़िल्में धारा से अलग नजर नहीं आतीं. यही वजह है कि डूबती नहीं और निर्माताओं के सबसे भरोसेमंद अभिनेता बने हुए हैं. यहां तक कि जो बैनर डेढ़ दशक पहले शाहरुख, आमिर के साथ फ़िल्में बनाने को तरजीह देते थे अब अक्षय के साथ भी फ़िल्में बना रहे हैं. यही वजह है कि आज की तारीख में अक्षय बॉलीवुड के सबसे व्यस्त अभिनेता हैं. बॉलीवुड का कोई भी सितारा उनके एवरेज स्कोर के आसपास भी नहीं. हर तरह की फ़िल्में कर रहे हैं. उनकी अभिनय क्षमता पर भी कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता.
अक्षय फ़ॉर्मूले पर कायम हैं. उन्होंने कोरोना में ही बेलबॉटम साइन करके पूरा कर दिया. फिल्म 19 अगस्त को रिलीज हो रही है. रक्षाबंधन का मुंबई शेड्यूल ख़त्म कर दिया. सूर्यवंशी रिलीज के इंतज़ार में है. अतरंगी रे भी रिलीज की तैयारी में है. राम सेतु पृथ्वीराज पर काम चल रहा है. अक्षय आज की तारीख में सबसे ज्यादा मेहनताना भी वसूल रहे हैं. वो इसके हकदार हैं.
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