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Updated: 03 अप्रिल, 2021 12:36 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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अमिताभ बच्चन (amitabh bachchan) को बॉलीवुड का शंहशाह ऐसे ही नहीं कहा जाता है. इस उम्र में कोरोना का टीका लगवाकर उन्होंने कई लोगों को इंस्पायर किया है. खासकर वे लोग जो अभी भी टीका लगवाने से कतरा रहे हैं. डॉक्टर से लेकर एक्सपर्ट तक ने इस बात पर जोर दिया है कि वैक्सीन लगवाने के बाद हल्का-फुल्का साइड इफेक्ट हो सकता है, इसलिए अफवाहों पर ध्यान ना दें और वैक्सीनेशन जरूर करवाएं. बेटे अभिषेक को छोड़कर महानायक अमिताभ बच्चन ने परिवार सहित कोरोना के टीके का पहला डोज ले लिया है. अभिषेक बच्चन ने टीका इसलिए नहीं लगवाया क्योंकि वे शहर से बाहर हैं.

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अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कोविड -19 वैक्सीन की पहली खुराक लेते हुए अपनी ब्लैक और व्हाइट फोटो शेयर की और ब्लॉग के जरिए अपना अनुभव बताया कि पूरे परिवार का टीकाकरण हुआ है, सब ठीक है. साल 2020 में बच्चन परिवार कोरोना की चपेट में आ गया था. वहीं अमिताभ बच्चन के अलावा मलाइका अरोड़ा की तस्वीर भी टीका लगवाते हुए वायरल हो रही है.

क्या एक साल बाद बेअसर हो जाएगा टीका?

एक बार फिर से कोरोना की लहर तेज हो गई है. वहीं देश-विदेश में तेजी से टीकाकरण हो रहा है. इस बीच एक बात यह उठ रही है कि क्या एक साल बाद कोरोना टीके का असर खत्म हो जाएगा. लोगों के मन में कई तरह के ऐसे ही सवाल हैं जैसे क्या टीका लगने के बाद कोई शख्स कोरोना पॉजिटिव हो सकता है. क्या उससे दूसरों को संक्रमण फैल सकता है. क्या Covid-19 का टीका लगवाने के बाद शराब पी सकते हैं?

असल में जब किसी बीमारी से लड़ने के लिए टीका बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है तो रिसर्च के लिए भरपूर टाइम होता है, लेकिन कोरोना के केस में ऐसा नहीं हुआ. स्टडी में यह बात सामने आ रही है कि साल भर के भीतर टीके के कारण बनी एंटीबॉडीज खत्म हो सकती हैं या फिर यह भी संभव है कि टीके का असर एक साल से भी कम समय रहे. अगर ऐसा हुआ तो कोरोना महामारी एक बार फिर कहर बरपा सकती है.

स्टडी में क्या कहा गया

पीपुल्स वैक्सीनेशन एलाइंस के तहत 28 देशों के 77 वैज्ञानिकों के शोध को एकत्र करके यह समझने की कोशिश की गई कि आखिर टीकाकरण किस तरह कोरोना वायरस की रफ्तार को कम कर रहा है. इस समय एक ऐसी बात सामने आई, जिसे लगभग सभी वैज्ञानिकों ने माना. वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर कोरोना को हराना है तो हमारे पास सिर्फ नौ महीने या इससे भी कम समय बचा है. इतने समय में अगर पूरी दुनिया के 60 प्रतिशत लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ तो दोबारा नया टीका खोजना पड़ेगा.

मैट्रो.को.यूके में इस बारे में विशेषज्ञों के हवाले से जो रिपोर्ट आई है उसके अनुसार इंफेक्शन डिजीज एक्सपर्ट ने माना है कि पहली बार बनी वैक्सीन केवल तभी असरदार हो सकती है जब उसका एडमिनिस्ट्रेशन जल्द से जल्द हो. दरअसल, पहली बार तैयार की गई वैक्सीन को फर्स्ट जनरेशन कहा जाता है. इसके बाद भी पुराने फॉर्मूला में थोड़ा फेरबदल करके लगातार वैक्सीन बनती रहती हैं लेकिन कोविड-19 के मामले में ऐसा नहीं माना जा रहा है.

वैक्सीन की रफ्तार को समझने के लिए HIV/AIDS पर संयुक्त राष्ट्र के प्रोग्राम (UNAIDS) के एक सर्वे अनुसार आर्थिक रूप से संपन्न देशों में वैक्सीनेशन तेजी से हो रहा है, लेकिन गरीब देशों में पहली डोज की शुरुआत भी नहीं हुई है. ऐसे में 6 महीने के भीतर 60 प्रतिशत से ज्यादा आबादी का टीकाकरण नहीं हो पाएगा. जिस वजह से कोरोना वायरस हम सभी के बीच ही रहेगा और लगातार म्यूटेशन के कारण टीकाकरण करा चुके लोगों पर भी असर देखने को मिलेगा. इसी वजह से अब वैज्ञानिक कोरोना के बूस्टर डोज की बात कर रहे हैं. इसके लिए भारत बायोटेक ने ड्रग रेगुलेटर के सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी (SEC) से अनुमति भी ले ली है.

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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