क्रूर विलेन से अधेड़ आशिक तक अमरीश पुरी की प्रतिभा का 360 डिग्री दायरा दिखाते 10 किरदार
दमदार आवाज और बड़ी आंखों वाले अमरीश पुरी ने ऐसे किरदार निभाए हैं जो उन्हें अमर कर गए. वो अधेड़ उम्र के आशिक भी बने हैं और एक मजबूर पिता भी.
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अमरीश पुरी. ये नाम सुनते ही कई डायलॉग दिमाग में घूमने लगते हैं. गरजती आवाज सुनाई देती है और दिखाई देने लगती हैं वो बड़ी-बड़ी आंखें. ये वो नाम था जिसने अपने अभिनय से सभी का दिल जीत लिया था. ये वो नाम था जो अपने करियर की शुरुआत में सबसे बड़ा विलेन बनता दिखाई दिया था. उनकी सिर्फ आवाज़ ही नहीं बल्कि सिनेमा हॉल में उनकी आंखें भी चिल्लाने लगती थीं. एक समय के बाद अमरीश पुरी ने अपने रोल में बदलाव लाना शुरू किया. वो स्टाइल जो सिर्फ विलेन बनकर ही दिखाया था उसमें नए रंग भरने शुरू किए, उसे इतना अलग बनाया कि लोगों को लगा कि वाह ये वो किरदार है जिसे कभी देखा ही नहीं था. शुरुआत में जहां अमरीश पुरी के किरदारों से नफरत की जाती थी वहीं धीरे-धीरे उनमें प्यार दिखने लगा. अमरीश पुरी ने कभी किसी करप्ट पुलिस वाले का किरदार निभाया तो कभी एक ऐसे पुलिस वाले का जिसके तबादले के बारे में सोचकर ही हमें गुस्सा आ जाए. कभी एक ऐसे आशिक का किरदार निभाया जो अपनी नवासी की आया को पसंद करने लगता है और उसके लिए मूछें मुंडवा देता है. तो कभी ऐसा किरदार निभाया जिसमें वो एक मजबूर पिता बने हैं और उन्हें कुत्ते के पट्टे से बांधा जा रहा है.
अगर अमरीश पुरी के किरदारों ने हमें डराया है तो उन्होंने हमें हंसाया भी है और रुलाया भी. आज यानी 22 जून को अमरीश पुरी का जन्मदिन है. इस दिन चलिए बात करते हैं अमरीश पुरी के उन किरदारों की जिन्होंने हमारी जिंदगी के हर रस को नई परिभाषा के साथ निभाया है.
1. बलवंत राय (घायल) : अन्याय का प्रतीक
'जो जिंदगी मुझसे टकराती है वो सिसक-सिसक के दम तोड़ देती है.' ये वो डायलॉग था जो सनी देओल पर भी भारी पड़ गया था. घायल का वो अमीर विलेन हर अन्याय की परिभाषा बन गया था.
2. चौधरी बलदेव सिंह (दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे) : बेटियों की खुशी के लिए पिताओं का मन बदलने वाला कैरेक्टर
'जा सिमरन जा, जी ले अपनी जिंदगी..' शायद इस डायलॉग के आगे कुछ कहने की जरूरत नहीं है. ये अमरीश पुरी के सख्त पिता का किरदार ही था जिसने अमरीश पुरी को हर उस पिता की भूमिका में ला दिया जो अपने बच्चों की लव मैरिज के खिलाफ थे.
3. मोगैंबो (मिस्टर इंडिया) : ऐसा आतंकी, जिससे बगदादी भी कांप उठे
'मोगैंबो खुश हुआ' ये डायलॉग तो शायद कोई नहीं भूल सकता. अपनी चमकीली पोशाक पहने कॉमेडी फिल्म का ये विलेन क्रूर भी था और मज़ाकिया भी, 'हे मोगैंबो' कहते अपने ही आदमियों को तेज़ाब से जला भी सकता था और चापलूसी करने पर खुश भी हो सकता था.
4. दुर्गाप्रसाद भारद्वाज (चाची 420) : प्यार उम्र का मोहताज नहीं है
अगर अमरीश पुरी के अलग-अलग रोल की बात चल रही है तो यकीनन दुर्गाप्रसाद भारद्वाज का रोल तो आएगा ही. 'लक्ष्मी मेरी है.. मैंने उसे खरीद लिया'.. कहकर इस अधेड़ उम्र के आशिक के चेहरे पर जो हंसी आई थी वो देखकर सिनेमा हॉल में सभी खिलखिला उठे थे. ये वो आशिक था जो गुस्सा भी करता था, कॉमेडी भी करता था और अपनी प्रेमिका के एक ज़रा से मज़ाक पर अपनी मूंछे भी मुंडवा सकता था.
5. भैरो नाथ (नगीना) : तंत्र विद्या और तांत्रिकों का चेहरा
ये किरदार ऐसा था जिसे कोई भी आसानी से नहीं निभा सकता. एक अघोरी तांत्रिक जो नाग मणि के पीछे पड़ा हुआ है. ये वो फिल्म थी जिसने साबित कर दिया था कि किसी भी गेटअप और किसी भी किरदार में अमरीश पुरी फिट बैठ सकते हैं.
6. समर सिंह (गर्व) : इन्हीं से है पुलिस के साथ जुड़ी उम्मीद
हर फिल्म में विलेन की तरह देखे जाने वाले अमरीश पुरी ने इस फिल्म में एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर का रोल निभाया था. 'तबादले से इलाके बदलते हैं, इरादे नहीं..' ये डायलॉग किसी भी इंसान को प्रेरणा दे सकता है.
7. चीफ मिनिस्टर बलराज चौहान (नायक) : भारत के बाहुबली-तानाशाहों का चरित्र चित्रण
'इंटरव्यू बंद करो..' लाइव टीवी पर चीफ मिनिस्टर जिस तरह से इंटरव्यू बंद करने के लिए तड़प रहा था और इस पूरी फिल्म में जिस तरह की राजनीति उसने की वो यकीनन काबिलेतारीफ थी. नायक फिल्म में राजनेता की भूमिका में अमरीश पुरी एक दमदार किरदार थे.
8. किशोरीलाल (परदेस) : एक एनआरआई का नेशनलिज्म क्या होता है
एक NRI जो अपने देश पर गर्व करता है. भारत आकर उसके चेहरे के भावों से ही समझ आ जाता है कि इस किरदार में सिर्फ अमरीश पुरी ही जान डाल सकते थे.
9. ठाकुर दुर्जन सिंह (करन अर्जुन) : कोई कितना दुष्ट हो सकता है
काली मां का भक्त और सिर पर बड़ा लाल टीका लगाए, बड़ी आंखों से घूरते दुर्जन सिंह को कौन भूल सकता है. ठाकुर दुर्जन सिंह एक ऐसा विलेन था जिससे कोई भी डर जाए!
10. शंभू नाथ (घातक) : इससे ज्यादा बीमार और मजबूर कोई नहीं होगा
इस फिल्म में अमरीश पुरी ने उस मजबूर पिता की भूमिका निभाई है जिसे फिल्म का विलेन गले में पट्टा डालकर सड़क पर घुमाता है. अपने बेटे को बचाने के लिए शंभू नाथ वो भी करता है. उस मजबूर पिता को देखकर किसी की भी आंखों में आंसू आ जाएं!
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