नेपोटिज्म की डिबेट में अनन्या पांडे और टाइगर श्रॉफ की बात को इग्नोर नहीं कर सकते
कंगना ने नेपोटिज्म पर जो कुछ भी कहा अगर उसे इग्नोर नहीं किया जा सकता तो बॉलीवुड में डेब्यू कर रहीं अनन्या पांडे और टाइगर श्रॉफ की बात को भी खारिज करने की कोई वजह नहीं है.
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अगर एक डॉक्टर का बेटा डॉक्टर हो सकता है, एक बिजनेसमैन का बेटा बिजनेसमैन हो सकता है, एक नेता का बेटा नेता हो सकता है, तो एक एक्टर का बेटा भी एक्टर हो सकता है. लेकिन नेपोटिज्म का इल्जाम सिर्फ फिल्मी कलाकारों पर ही लगता है.
बॉलीवुड़ में नेपोटिज्म पर बहस होने लगी है और इसे हवा दी है कंगना रनौत ने. इसे लेकर कंगना और करण जौहर के बीच हमेशा बहस होती रही है. कंगना कहती हैं कि इंडस्ट्री में नेपोटिज्म यानी परिवारवाद को करण जौहर ने ही बढ़ावा दिया है. इसी नेपोटिज्म ने बॉलीवुड के दो धड़े कर दिए हैं. एक वो जिसमें स्टार किड्स हैं या बॉलीवुड में पहले से स्थापित हैं और एक वो जिनका कोई गॉडफादर इंडस्ट्री में नहीं है और वो अपने दम पर काम कर रहे हैं. कंगना इसी धड़े से हैं.
कंगना ने नेपोटिज्म पर जो कुछ भी कहा अगर उसे इग्नोर नहीं किया जा सकता तो बॉलीवुड में डेब्यू कर रहीं अनन्या पांडे और टाइगर श्रॉफ की बात को भी खारिज करने की कोई वजह नहीं है. अनन्या पांडे चंकी पांडे की बेटी हैं जो Student Of The Year 2 में टाइगर श्रॉफ के साथ लीड रोल में हैं. जाहिर है अनन्या और टाइगर से नेपोटिज्म पर सवाल होना ही था.
टाइगर श्रॉफ और अनन्या पांडे स्टार किड्स हैं, लेकिन इनके संघर्ष भी कम नहीं होते
अनन्या का कहना है- 'नेपोटिज्म सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में नहीं बल्कि सभी जगह पर है. हम हमेशा ही अपने पिता के साए में रहे हैं. हमें अपने पिता पर गर्व है. और हमारे पिता जो भी हैं उसपर हम कभी भी शर्मिंदा नहीं होना चाहते. हमें पिता की वजह से वो जगह तो मिलती है जहां हम बहुत सारे लोगों से मिलते हैं, मगर आप उस जगह में क्या करते हैं ये पूरी तरह से आपके टेलेंट पर निर्भर करता है. और दर्शक ही इस बात का फैसला करते हैं कि आप उस जगह के काबिल हैं या नहीं'. अनन्या ने साफ किया कि दर्शक बहुत स्मार्ट हैं, जब वो फिल्म देखते हैं तो वो निर्णय ले लेते हैं.
वहीं जैकी श्रॉफ के बेटे टाइगर का कहना है कि 'हर चीज के फायदे नुक्सान हैं. लोग हमें हमारे माता-पिता की वजह से औरों से जल्दी नोटिस करते हैं, और इसके लिए हम खुद को खुशनसीब भी समझते हैं. लेकिन इसी वजह से हमपर दबाव भी बहुत होता है, क्यों अब लोग हमें और भी पैनी निगाह से देखते हैं. और तब हमें खुद को और भी ज्यादा साबित करना होता है. ये बताना होता है कि हम किस तरह अपने पिता की छत्र छाया से बाहर और उनसे अलग हैं. मेरे लिए चैलेंज है अपनी अलग पहचान बनाने का.'
टाइगर श्रॉफ अपने बॉडी और एक्शन्स पर जी जीन से मेहनत कर रहे हैं, और इसीलिए उन्हें काम मिल रहा है
इन दोनों को भी गाहे-बगाहे स्टार किइस होने की वजह से ताने सुनने पड़ते हैं. लेकिन इनकी बात पर गौर करें तो दोनों का मानना है कि हां, इन्हें काम मिलने में परेशानी तो नहीं होती क्योंकि ये पहले से ही इंडस्ट्री को जानते हैं. लेकिन इनके जीवन में सबसे बड़ी चुनौती खुद को साबित करने की होती है.
नेपोटिज्म पर बहस बेमानी है
ये बात बहुत स्वाभाविक है कि जिस घर में बच्चे फिल्में देखते, फिल्मों की बातें सुनते और सितारों की बीच रहकर बड़े होते हैं वो यही पेशा अपनाएंगे, क्योंकि कला उनके जीन्स में होती है. वो यही काम सबसे बेहतर कर सकते हैं क्योंकि सुविधाओं के साथ-साथ उनके पास उनके पेरेंट्स का अनुभव भी होता है. हां ये भी सच है कि इन्हें बाकी स्ट्रगलर्स की तरह काम पाने के लिए बहुत ज्यादा परिश्रम नहीं करना होता, लेकिन काम मिलने के बाद खुद को साबित करना ही इनके लिए सबसे जरूरी होता है क्योंकि तब ये फ्लॉप का लेबल लेकर बैठ नहीं सकते, क्योंकि इनके साथ इनके पेरेंट्स का भी नाम जुड़ा होता है. यानी प्रेशर बाकियों से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं होता.
हमारे पास ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जिनसे ये साबित होता है कि टेलेंट ही वो चीज है जिसकी वजह से एक एक्टर दर्शकों में अपनी जगह बनाता है. सबसे अच्छा उदाहरण तो खुद कंगना हैं जिन्होंने बिना किसी गॉडफादर के अपनी पहचान अपनी मेहनत और काम के बदौलत बनाई. उनके अलावा अक्षय कुमार, प्रियंका चोपड़ा, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, इरफान, नवाजुद्दीन, राजकुमार राव जैसे बहुत से नाम हैं.
अनन्या पांडे को पहली फिल्म तो मिल गई लेकिन दूसरी तभी मिलेगी जब दर्शक चाहेंगे
अब एक नजर उनपर भी जिनके पिता सुपर स्टार, फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर रहे हैं फिर भी अपने बच्चों को स्टार नहीं बना सके, क्योंकि दर्शकों ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया. जैसे- राजकपूर के बेटे राजीव कपूर, देव आनंद के बेटे सुनील आनंद, अमजद खान का बेटा शादाब खान, मिथुन चक्रवर्ती का बेटा मिमोह, राज बब्बर का बेटा आर्य बब्बर, हेमा मालिनी की बेटी ईशा देओल, निर्देशक यश चोपड़ा का बेटा आदित्य चोपड़ा, जीतेंद्र का बेटा तुषार कपूर, तनुजा की बेटी और काजोल की बहन तनीषा, निर्माता वासू भगनानी का बेटा जैकी भगनानी. ये कुछ उदाहरण हैं जो साबित करते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ टेलेंट ही मायने रखता है.
लेकिन यहां ऐसे भी हैं जो स्टार किड हैं और सफल भी. क्योंकि वो जानते हैं कि उन्हें इंडस्ट्री में बने रहने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है. जैसे राकेश रौशन का बेटा ऋतिक रौशन, महेश भट्ट की बेटी आलिया भट्ट, पंकज कपूर का बेटा शाहिद कपूर, डेविड धवन का बेटा वरुण धवन, शक्ति कपूर की बेटी श्रृद्धा कपूर, अनिल कपूर की बेटी सोनम कपूर, ऋषि कपूर का बेटा रणबीर कपूर. रणधीर कपूर की बेटी करीना कपूर आदि. आप इनकी रियल लाइफ में झांककर देखेंगे तो पाएंगे कि खुद को साबित करने के लिए ये लोग हर क्षेत्र में मेहनत कर रहे हैं. बॉडी, एक्टिंग, डांसिंग सब कुछ परफेक्ट. और इसीलिए सफल भी हैं.
तो इतने सारे फ्लॉप और हिट स्टार्स का बैगग्राउंड देखने के बाद ये तो साबित होता है कि निपोटिज्म पर बहस होना स्वाभाविक है, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं है. स्टार्स किड्स और इंडस्ट्री के बाहर से आए कलाकारों का टकराव हमेशा ऐसे ही बना रहेगा. स्टार किड्स 'लॉन्च' होते रहेंगे, जबकि बाकी स्ट्रगलिंग स्टार्स एक ब्रेक के लिए मेहनत करते रहेंगे. ऐसे में ये स्टार किड्स स्ट्रगलर्स का आत्मविश्वास भले ही हिला दें, लेकिन उनके जज्बे को नहीं हिला सकते. ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि हर कलाकार के साथ अपनी-अपनी चुनौतियां और अपने-अपने संघर्ष हैं. सफल वही होता है जिसे दर्शक पसंद करते हैं.
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