Article 15: कहीं आप भी तो जाने-अनजाने नहीं करते इस तरह का भेदभाव?
आयुष्मान खुराना की नई फिल्म Article 15 में जिस तरह जातिवाद को लेकर विवाद शुरू हुआ है वो भारत की एक गहरी समस्या को उजागर करता है.
-
Total Shares
आयुष्मान खुराना की फिल्म Article 15 रिलीज से पहले ही विवादों में घिर गई है. ये फिल्म भारत की जात-पात, रेप-हत्या, ऊंच-नीच की स्थिति को उजागर करती है और भारतीय संविधान के आर्टिकल 15 की याद दिलाती है जिसका मतलब है कि किसी भी तरह से किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है. लेकिन भारत में जाति के नाम पर जब चुनाव जीते जाते हैं तो फिर इस आर्टिकल का इस्तेमाल कितना होता है ये तो समझा जा सकता है. आर्टिकल 15 में डायरेक्टर Anubhav Sinha ने एक बार फिर वही दिखाया है जो वो मुल्क में दिखा चुके हैं. भारत में जातिवाद की समस्या. इस बार Ayushmann Khurrana ने भी अपने टिपिकल दिल्ली वाले लड़के की छवि को छोड़कर उत्तर प्रदेश के एक पुलिस वाले की भूमिका निभाई है. धर्म, जाति, लिंग, शहर आदि के आधार पर भारत में जितना भेदभाव होता है वो यकीनन चौंकाने वाला है,
आर्टिकल 15 की कहानी बदायूं रेप और हत्याकांड से जुड़ी हुई है. ये फिल्म उसी 2014 के बदायूं कांड पर आधारित है जिसने उत्तर प्रदेश के जातिवाद का बेहद खराब चेहरा दिखा दिया था. बदायूं में दो नीची जाति की लड़कियां एक पेड़ से लटकी मिली थीं. उस समय उत्तर प्रदेश के यादव समुदाय का नाम बीच में आया था. केस में कई उतार चढ़ाव आए थे. स्थानीय पुलिस ने कुछ और कहा था, सीबीआई ने कुछ और, कई बार इसे रेप का मामला न बताने की कोशिश की गई थी. लड़कियों के घरवाले कुछ और कह रहे थे और ये आरोप लगाया गया था कि सीबीआई की रिपोर्ट झूठी है क्योंकि लड़कियों के साथ ये करने वाले ऊंची जाति के यादव हैं.
आयुष्मान खुराना की फिल्म में जातिवाद को लेकर तीखा प्रहार किया गया है.
अब फिल्म को लेकर ये बवाल मचा हुआ है कि जब उस मामले में यादवों का नाम सामने आया था तो यहां मुख्य आरोपी ब्राह्मण क्यों बनाया गया है. ब्राह्मण समुदाय का कहना है कि इससे पूरी जाति की बदनामी हो रही है. इस मामले में ब्राह्मण परशुराम सेना, राजपूत करणी सेना सभी कूद गए हैं.
इसे लेकर आयुष्मान खुराना ने ये भी बताया है कि फिल्म में किसी भी जाति की बदनामी नहीं की गई है. सब सफाई देने पर तुले हुए हैं, लेकिन फिल्म को लेकर अब एक नई पहल शुरू की गई है. एक्टर आयुष्मान खुराना ने 'भंगी' शब्द को लेकर एक मुहिम शुरू की है और #DontSayBhangi हैशटैग चलाया जा रहा है. इसे लेकर कई वीडियो भी जारी किए गए हैं.
Can't wait #Article15 to load...@ayushmannk @anubhavsinha pic.twitter.com/Qi75L6XEPB
— Abhishek Raj (@Abhishe68899877) June 20, 2019
आयुष्मान खुराना हर वीडियो में 'भंगी' न कहने को कह रहे हैं.
Galti toh kisi se bhi ho sakti hai, par hum kisiki tulna neechi jaati ke logo se kyun karte hai? Kya inke khilaaf apka yeh nazaria theek hai? Isse aaj hi badaliye. Sign the petition #DontSayBhangi, now.Click https://t.co/JpxhGWloT6 @anubhavsinha #Article15 pic.twitter.com/RxJLXWUIjq
— Ayushmann Khurrana (@ayushmannk) June 17, 2019
ये वीडियो काफी हैं भारतीय जात-पात को लेकर बहस छेड़ने में. सालों से लोग इस तरह के शब्द 'भंगी', 'चमार' आदि आराम से बोलते आ रहे हैं. ये रोजमर्रा की भाषा का हिस्सा बन गए हैं. इसे गाली माना जाता है ये सोचा भी नहीं जाता कि ये लोग हमारे बीच में ही हैं. इसे गंदगी, नीची जाति मानकर सदियों से ऐसा ही करते आ रहे हैं.
आयुष्मान ने वीडियो में कहा है कि, 'हम आसानी से कह देते हैं ये. ये गाली एक जात की पहचान बन चुकी है.' ये सच तो है. अगर इस तरह की बातें रोज़ की जाती हैं तो यकीनन इन्हें करने वाला भेद-भाव ही करता है. जैसे-
1. 'कितना चमार लग रहा है'
कितनी बार ऐसा हुआ है कि 'चमार' शब्द को किसी की सबसे खराब बात के लिए इस्तेमाल किया गया है. कोई सबसे खराब कपड़े पहन कर आया हो तो .. चमार.. कोई बोलचाल में अटक गया हो तो.. चमार.. और न जाने कितना कुछ. ये वाक्य बताता है कि जो समाज में ऊंची जाति के लिए निंदनीय है वो चमारों के लिए आम है. क्या ये भेदभाव नहीं है?
2. 'बहु चाहिए: लड़की गोरी होनी चाहिए'
समाज के एक बड़े वर्ग के लिए महिलाओं का रंग उनकी पहचान माना जाता है. मैट्रिमोनियल वेबसाइट हो या फिर अखबार का मैट्रिमोनियल कॉलम, लेकिन लड़की के लिए विज्ञापन यही माने जाएंगे. यहां तक कि भारतीय समाज में तो फेस क्रीम के विज्ञापन भी यही दिखाए जाते हैं कि अगर लड़की गोरी है तो उसे नौकरी मिल जाएगी. उसके सारे काम आसान हो जाएंगे. उसमें अलग कॉन्फिडेंस आएगा. ये सब कुछ रंगभेद ही तो है.
3. 'घर में काम करने वालों के साथ भेदभाव'
उन्हें अलग बर्तन दीजिए, पीने के पानी से दूर रखें, भले ही काम वाली बाई ही बर्तन धोती हो, लेकिन जब उसे खाना दिया जाए तो अलग बर्तन में दिया जाए. कांग्रेस लीडर रेनुका चौधरी की एक वायरल तस्वीर भी थी जिसमें वो रेस्त्रां में खाना खा रही थीं और बगल में उनकी काम वाली बाई खड़ी हुई थी.
Dear Renuka ChowdaryIf you can't feed the little girl minding your child, please don't bring them to a restaurant! pic.twitter.com/N104ZYtVKN
— Rishi Bagree ???????? (@rishibagree) May 31, 2016
ये सब कुछ असल जिंदगी में भी होता है. ऐसे आम तौर पर मॉल में जाते हुए आप देख लेंगे कि कितने लोग इसी तरह से अपने नौकरों को लेकर तो आते हैं, लेकिन इतने अमीर लोगों के पास उन्हें खिलाने के लिए पैसे नहीं होते.
4. किराए पर घर देना है? सिंगल महिला/पुरुष को नहीं देंगे, न ही मुसलमान को देंगे
ये सिंगल लोगों ने झेला होगा और सिंगल अगर मुस्लिम है तो ये बहुत ज्यादा झेला होगा. आम शहर हो या मेट्रो सभी जगह इस तरह की समस्या सामने आती है. शादीशुदा नहीं हैं तो कई सोसाइटी NOC नहीं देतीं. ये दिक्कत महिलाओं और पुरुषों दोनों के साथ होती है.
5. सिर्फ शाकाहारी लोगों को घर देंगे
घर देने वाली समस्या ये भी है कि सिर्फ शाकाहारी लोगों को घर दिया जाएगा. क्योंकि मकान मालिक या उनके आस-पड़ोस में रहने वालों को समस्या हो सकती है. गुजरात में तो ये बहुत आम है. वहां मांसाहारी लोगों को घर मिलना बहुत मुश्किल है.
6. महिला/पुरुष कैंडिडेट
कंपनियों में भी इस तरह की समस्या होती है. रिसेप्शनिस्ट चाहिए तो वो महिला होगी. डिलिवरी या ड्रायवरी के लिए पुरुष. ऐसे न जाने कितने ही उदाहरण आपको मिल जाएंगे. इसे तो किसी जॉब ढूंढने वाली वेबसाइट पर ही देख लीजिए. कई जगह 'केवल पुरुष'. 'केवल महिलाएं' वाले कॉलम मिल जाएंगे.
7. वजन कम करो, शादी कैसे होगी?
हमारे देश में महिलाओं और लड़कियों के लिए वजन को लेकर बहुत समस्याएं सामने आती हैं. इसमें शादी की समस्या सबसे बड़ी है. हालांकि, ये समस्या नहीं होती, लेकिन फिर भी ऐसा माना तो जाता है. कितनी बार ऐसा देखा गया है कि कोई रिश्तेदार महिलाओं को लेकर इतनी हिदायत दे रहा है कि वजन कम नहीं किया तो शादी नहीं होगी? या फिर मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर ये देखा हो कि उन्हें पतली लड़की चाहिए.
8. आरक्षण और भेदभाव
आरक्षण को लेकर भेदभाव भी बहुत आम है हमारे देश में. इसके भुक्तभोगी जनरल कैटेगरी के लोग भी हैं और रिजर्व कैटेगरी के भी. अगर कोई डॉक्टर नीची जाति का है तो यकीनन उसपर शक किया जाता है. यहीं ऊंची जाति के डॉक्टर के लिए माना जाता है कि ये तो होशियार ही होगा. यहीं जनरल जाति के टैलेंटेड बच्चे भी पीछे रह जाते हैं क्योंकि उन्हें रिजर्वेशन नहीं मिलता. स्टूडेंट्स ही नहीं खुद टीचर्स भी इस तरह के भेदभाव में शामिल होते हैं.
(ये स्टोरी सबसे पहले इंडिया टुडे वेबसाइट के लिए की गई थी.)
ये भी पढ़ें-
Kabir Singh Review: पुरुषों के लिए ही बनाई गई है ये फिल्म!
Kabir Singh शाहिद कपूर के लिए फायदेमंद, लेकिन समाज के लिए...?
आपकी राय