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Updated: 29 जून, 2022 01:10 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक फिल्म बनाई जा रही है, जिसका शीर्षक 'मैं रहूं या न रहूं ये देश रहना चाहिए- अटल' है. इस फिल्म को विनोद भानुशाली और संदीप सिंह प्रोड्यूस कर रहे हैं. फिल्म की कहानी 'द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटिशियन एंड पाराडॉक्स' नामक किताब पर आधारित होगी. इस किताब को एनपी उल्लेख ने लिखा है, जो कि जाने-माने पत्रकार और लेखक हैं. एनपी ने अपनी किताब में अटलजी के जीवन के उन पहलुओं को छुने की कोशिश की है, जिससे आम लोग आज भी अंजान हैं. मसलन, इस किताब में अटलजी की लव लाइफ, उदारवादी छवि के विपरीत उग्र राष्ट्रवाद, भड़काऊ भाषण आदि के बारे में खुलकर लिखा गया है. इसमें यह कहने की कोशिश की गई है कि अटल जी जैसे दिखते थे, वैसे थे नहीं, बल्कि उनकी असलियत उनकी छवि के विपरीत थी. यदि इसे फिल्म में दिखाया गया, तो विवाद होना तय है.

'द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटिशियन एंड पाराडॉक्स' किताब की प्रस्तावना में अटलजी के बारे में जो लिखा गया है, उसको ही पढ़कर कई लोग हैरान हो सकते हैं. कुछ लोगों को भरोसा भी नहीं होगा कि अटलजी ऐसे थे, जैसा कि इसमें लिखा गया है, ''सांसद में नेहरूवाद से मिलते-जुलते अपने 'धर्मनिरपेक्ष' बयानों के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी यदा-कदा कट्टरपंथी जमात में थोड़ी घुसपैठ कर जाते थे. साल 1983 में उन्होंने असम चुनावों के दौरान भड़काऊ भाषण दिया था. इससे प्रदेश में 'बांग्लादेशी विदेशियों' की मौजूदगी बड़ा मुद्दा बन गया. यहां तक कि भाजपा ने भी वाजपेयी के भाषण से किनारा कर लिया. संभवतः इस भाषण के कारण उस साल असम के नल्ली में 2000 से अधिक लोगों का संहार हुआ, जिनमें से ज़्यादातर मुस्लिम थे. अटल बिहारी वाजपेयी भारत के चतुर राजनेताओं में से एक हैं. उन्हें कई तरह की विरोधाभासी बातें करने के लिए जाना जाता है.''

untitled-1-650_062822111329.jpgअटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक फिल्म 25 दिसंबर 2023 को रिलीज की जाएगी.

इसमें कुछ विरोधाभासी बातों का जिक्र भी किया गया है, लिखा गया है, ''उग्रवादी राष्ट्रवादी से लेकर अपने रहस्यमयी पारिवारिक जीवन तक, साम्यवाद के प्रति रुझान, भोजनप्रियता और यदि स्वयं को उदारवादी के रूप में पेश न कर सके तो मध्यमार्गी की तरह पेश करने तक. यह पुस्तक वाजपेयी के करियर के अहम पड़ावों और एक अनुभवी राजनेता के रूप में उनकी विशेषताओं को खंगालती हुई उनके अपनी पार्टी के नेताओं से संबंधों और आरएसएस तथा उसके सहयोगी संगठनों के साथ प्रेम व द्वेष वाले संबंधों पर नज़र डालती है. बेहतरीन शोध, पुख़्ता तथ्यों से समर्थित तथा अंतर्कथाओं और उपाख्यानों के साथ, अंतर्दृष्टियों से युक्त साक्षात्कारों और सहेजने योग्य छायाचित्रों से सज्जित यह पुस्तक एक कवि-राजनेता के जीवन की झलक पेश करती है.'' इस किताब में 'इश्क और सियासत', 'बम, बस और बजट', 'सत्ता के साथ प्रयोग' और 'युद्ध से लाभ' जैसे शीर्षक के साथ अध्याय दिए गए हैं.

किताब के लेखक एनपी उल्लेख ने बीबीसी के लिए लिखे एक लेख में अटलीजी के बारे में विस्तार से लिखा है, ''अटल बिहारी वाजपेयी वो शख़्सियत थे, जिनकी तरबीयत आरएसएस की पाठशाला और उससे भी पहले आर्य समाज जैसे संगठनों मे हुई थी. उग्र राष्ट्रवाद की बेझिझक नुमाइश की अपनी आदत को वाजपेयी ने कभी नहीं छोड़ा. हालांकि, अटल, जैसे-जैसे दिल्ली और भारतीय संसद की राजनीति में मंझते गए, वैसे-वैसे उन्होंने अपनी उग्र राष्ट्रवादी छवि को ढंकने-दबने दिया. वो एक साथ दो नावों पर सवार होने की राजनीति करते थे. एक तरफ़ तो वो नेहरू के उदारवाद के हामी थे, वहीं दूसरी तरफ़ वो आरएसएस की हिंदुत्ववादी सियासत के अलंबरदार भी थे. 5 दिसंबर 1992 को लखनऊ में आरएसएस के कारसेवकों से मुलाकात के वक्त उन्होंने चुटीले अंदाज़ में कहा था कि अयोध्या में पूजा-पाठ के लिए 'जमीन को समतल किया जाना ज़रूरी है.' इससे साफ़ है कि वो अलग-अलग तबके के लोगों से अलग-अलग तरह से बातें करते थे. इससे उनकी शातिराना सियासत भी उजागर होती है और किसी से टकराव न चाहने की आदत का भी पता चलता है.''

इन बातों से साफ पता चलता है कि किताब में अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन का वो पक्ष सामने लाने की कोशिश की गई है, जिसे कम लोग जानते होंगे. यदि फिल्म अटली जी की ख्याति को संबोधित करते हुए बनाई जा रही है, तो निश्चित रूप से इन बातों से किनारा किया जाएगा. यदि इनको फिल्म में शामिल किया जाता है, तो उनका क्या जो अटलजी के मुरीद हैं. उनके लिए फिल्म स्वादहीन हो जाएगी. फिल्म के प्रोड्यूसर संदीप सिंह इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी की बायोपिक भी बना चुके हैं. 'पीएम नरेंद्र मोदी' में जिस तरह से पीएम मोदी के बारे में दिखाया गया है, उसे देखकर तो नहीं लगता कि इस बायोपिक में वो कुछ भी ऐसा शामिल करेंगे, जिससे कि उनका उद्देश्य पूरा न हो पाए. हालांकि, अभी तक दावा यही किया जा रहा है कि फिल्म पूरी तरह 'द अनटोल्ड वाजपेयी: पॉलिटिशियन एंड पाराडॉक्स' पर ही आधारित होगी. देखना दिलचस्प होगा कि फिल्म के मेकर्स क्या करते हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक फिल्म का एक मोशन पोस्टर मेकर्स की तरफ जारी किया गया है. इसमें अटल जी की आवाज सुनाई देती है, जो कि उनके एक भाषण का ही अंश है. इसमें वो कह रहे हैं, 'सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी. लेकिन ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए.'' यह भाषण अटलजी ने तब दिया था, जब महज एक वोट से उनकी सरकार गिर गई थी. फिल्म को अटलजी की 99वीं जयंती के मौके पर रिलीज किया जाएगा. इस तरह फिल्म 25 दिसंबर 2023 को रिलीज होनी है. सभी जानते हैं कि साल 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है. ऐसे में इस फिल्म से भारतीय जनता पार्टी को कोई फायदा मिल पाएगा या नहीं ये तो आना वाला वक्त ही बताएगा. हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी को लेकर जितनी फिल्में या वेब सीरीज बनीं, उसका कोई खास फायदा नहीं हुआ था. इसकी एक बड़ी वजह ये थी कि इन फिल्मों या वेब सीरीज को प्रोफेशनल तरीके से नहीं बनाया गया. फिल्म बेहतर बने, विनोद भानुशाली और संदीप सिंह के सामने ये भी एक चुनौती होगी.

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लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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