बॉलीवुड में बिग बजट फिल्मों के नाम पर कहीं 'खेल' तो नहीं चल रहा है?
पिछले कुछ वर्षों से लगातार फ्लॉप हो रही फिल्मों के बीच बड़े बजट की फिल्मों की भरमार हो गई है. कुछ फिल्मों को देखने के बाद कह सकते हैं कि इसमें पैसा खर्च हुआ होगा, लेकिन कुछ फिल्मों के देखकर आम दर्शक भी बता सकता है कि ऐलानिया बजट झूठा है. आखिर बिग बजट के नाम पर क्या खेल चल रहा है, आइए समझते हैं.
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बॉलीवुड इनदिनों अपने सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. एक तरफ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लगातार फ्लॉप हो रही हैं, तो दूसरी तरफ नए-नए आरोप लग रहे हैं. अभी नेपोटिज्म सहित कई मुद्दों पर आधारित बॉलीवुड बायकॉट का मुद्दा ठंडा भी नहीं हुआ था कि पिक्चर में ईडी की एंट्री हो गई है. ईडी यानी कि प्रवर्तन निदेशालय, जो कि अनियमित वित्तीय लेन-देन की जांच करने वाली केंद्रीय एजेंसी है. ईडी को शिकायत मिली है कि करण जौहर के प्रोडक्शन में बनी पैन इंडिया फिल्म 'लाइगर' के निर्माण में काला और हवाला धन का इस्तेमाल हुआ है. विदेशी फंडिंग की गई है, जिसके बारे में प्रोड्यूसर ने कोई ब्यौरा नहीं दिया है. इसी वजह से ईडी ने पहले फिल्म के को-प्रोड्यूसर चार्मी कौर और निर्देशक पुरी जगन्नाथ से पूछताछ की थी. उसके बाद फिल्म के लीड एक्टर विजय देवरकोंडा को पूछताछ के लिए बुलाया था.
फिल्म 'लाइगर' 25 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. इस फिल्म का बजट 125 करोड़ रुपए बताया जा रहा है. फिल्म को पैन इंडिया हिंदी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम में रिलीज किया गया था. इतना ही नहीं इसके प्रमोशन में साउथ से लेकर नॉर्थ तक पानी की तरह पैसा बहाया गया था. लेकिन रिलीज के बाद फिल्म फ्लॉप हो गई. इसने बॉक्स ऑफिस पर वर्ल्डवाइड 56 करोड़ रुपए का कलेक्शन किया था. इस तरह फिल्म फ्लॉप रही थी. लेकिन इसी बीच किसी ने फिल्म के मेकर्स पर काला और हवाला धन का इस्तेमाल करके सनसनी फैला दी. कहा गया है कि बिना आग के धुआं नहीं होता है. 'लाइगर' के मेकर्स और एक्टर का जो होगा सो होगा, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह मेगा बजट फिल्मों निर्माण धड़ल्ले से हो रहा है, उसी से शक होता है कि फ्लॉप फिल्मों की फेहरिस्त देखते हुए भी इतना पैसा कौन लगा रहा है?
अयान मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म 'ब्रह्मास्त्र' बॉलीवुड की हिट फिल्मों में शामिल है.
जब बॉलीवुड की ज्यादातर फिल्में बॉक्स ऑफिस पर रिलीज होने के पहले वीकेंड ही डिजास्टर साबित होती जा रही है, जब बड़े से बड़ा स्टार एक अदद हिट के लिए तरस रहा है, जब फिल्मों की सफलता की कोई गारंटी नहीं है, जब पैसा डूबने की संभावना सबसे ज्यादा है, तब कौन इतना साहसी इनवेस्टर या प्रोड्यूसर है, जो किसी फिल्म पर अपने 100 से 500 करोड़ रुपए निवेश कर दे रहा है. इसमें कई ऐसे प्रोड्यूसर भी शामिल हैं, जिनकी इसी साल रिलीज कोई भी फिल्म हिट नहीं हुई है. उसके बाद भी बिना किसी शिकन के वो अगली फिल्म में पैसा निवेश कर रहे हैं. आखिर उनके इस साहस के पीछे की वजह क्या है? ये बड़ा सवाल है. क्योंकि इसके जवाब में हमारा जवाब भी छिपा है. फिल्म 'लाइगर' को ही ले लीजिए. इसमें सबसे ज्यादा पैसा लगाने वाले करण जौहर रिलीज से पहले सबके सामने चहक रहे थे, लेकिन फ्लॉप होते ही गायब से हो गए हैं.
इतना ही नहीं इतने बड़़े नुकसान के बावजूद वो बड़े आराम से नई-नई फिल्मों में निवेश कर रहे हैं. कई फिल्मों को खुद प्रोड्यूस करने जा रहे हैं. आखिर इस नुकसान का उनके ऊपर असर क्यों नहीं है? क्या फिल्मों का बजट झूठा पेश किया जा रहा है? कहीं बजट के नाम पर पब्लिक और सरकार को गुमराह तो नहीं किया जा रहा है? फिल्म हिट हो या फ्लॉप बाजी हर वक्त इन मेकर्स के हाथ में ही क्यों रहती है? उदाहरण के लिए, फिल्म ब्रह्मास्त्र को लेते हैं. इस फिल्म का बजट पहले 550 करोड़ रुपए बताया गया. फिल्म की रिलीज तक इसी बजट को प्रचारित-प्रसारित किया गया. फिल्म के रिलीज के आसपास जब कलेक्शन का अनुमान आया, तो अचानक इसका बजट घटाकर 410 करोड़ रुपए बता दिया गया. जोर शोर से इसे प्रचारित किया गया. इसके पीछे दो बातें समझ आती हैं. पहली कि बड़े बजट के आंकड़े को यदि फिल्म के कलेक्शन ने हासिल कर लिया तो ठीक, वरना उसे घटाकर कम कर दो ताकि कोई फ्लॉप न कह सके. यदि कमाई बताए गए बजट से ज्यादा रही, तो फिल्म के खर्च के नाम पर ज्यादातर पैसा निकाल दिया जाता है.
इस स्थिति में मुनाफा कम दिखाया जाता है, ताकि टैक्स कम से कम देना पड़े. यदि कमाई कम हुई, तो बजट घटाकर कलेक्शन के आसपास करके इज्जत भी बचा ली जाती है और ये भी कह दिया जाता है कि अनुमान से कम कमाई रही. ये तो सिर्फ एक फिल्म का उदाहरण है. ऐसी तमाम फिल्में हैं, जिनके बजट को सुनने और फिल्म देखने के बाद कोई भी कह सकता है कि झूठ बोल गया है. अक्षय कुमार की फिल्म 'सम्राट पृथ्वीराज' को ही ले लीजिए. इस फिल्म का बजट पहले 250 करोड़ रुपए बताया गया. फिल्म को महज 40 दिन में शूट कर लिया गया. इसका वीएफक्स भी बहुत खराब क्वालिटी का था. माना कि अक्षय कुमार ने फीस के तौर पर 100 करोड़ ले लिया होगा, लेकिन क्या बाकी चीजों में 150 करोड़ रुपए खर्च हो गए? ये बड़ा सवाल है. फिल्म देखकर कहीं से नहीं लगता कि तकनीकी पर ज्यादा पैसे खर्च किए गए होंगे. ऐसे में इसका बजट भी संदेह के घेरे में है.
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