छोटे शहरों की ओर रुख करता बॉलीवुड
आज बॉलीवुड अपना स्वरूप बदल चुका है और पूर्व की अपेक्षा अब उसने छोटे शहरों की तरफ अपना रुख कर लिया है. देखा जाए तो छोटे शहर के लोगों के लिए ये एक अच्छा और सुखद संकेत है.
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पिछले हफ्ते रिलीज हुई दो फिल्में करीब करीब सिंगल और शादी में जरूर आना को अच्छे खासे दर्शक मिल रहे हैं. दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर भी ठीक ठाक बिजनेस कर रही है. जहां करीब करीब सिंगल दो उम्रदराज लोगों की प्रेम कहानी है तो वहीं शादी में जरूर आना प्यार में धोखा खाने के बाद बदला लेने की कहानी है. हालांकि दोनों ही फिल्मों में एक बात समान है वो यह कि दोनों ही फिल्में माध्यम वर्गीय परिवारों कि कहानी हैं जो छोटे शहरों की कहानी बयां करती हैं. अगर देखा जाए तो पिछले कुछ समय में बॉलीवुड की कई फिल्में छोटे शहरों में बुनी जा रहीं हैं, और यह दोनों ही फिल्में उसी कड़ी को आगे बढाती नजर आ रही हैं.
पहले के मुकाबले आजके समय में फिल्मों की दिशा और दशा ज्यादा बदल रही है
साल 2017 में कई ऐसी फिल्में बनी जिनके मुख्य किरदार या कहें पूरी कहानी ही कानपूर, इलाहाबाद, लखनऊ, बनारस, पटना और रांची जैसे शहरों में बुनी गयी. इस साल आयी टॉयलेट एक प्रेम कथा, जॉली एलएलबी 2, बद्रीनाथ की दुल्हनिया, शुभ मंगल सावधान, बरेली की बर्फी, न्यूटन और सीक्रेट सुपरस्टार, ये वो फिल्में हैं जो छोटे शहरों में रहने वाले लोगों की कहानी को बड़े परदे पर दिखाती हैं. इन फिल्मों की खास बात यह भी रही कि ये सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफल भी रहीं. कहा जा सकता है कि यह भारतीय सिनेमा का वो दौर है जब बॉलीवुड कि फ़िल्में वापस से छोटे शहरों की ओर रुख कर रहीं हैं.
अभी कुछ समय पहले तक बॉलीवुड की अधिकतर फिल्मों में फिल्म को किसी विदेशी लोकेशन पर शूट करने का चलन चल रहा था. बॉलीवुड की फिल्मों में यह बदलाव उस समय आया जब फिल्में सिंगल थिएटर से निकल मल्टीप्लेक्स के चमक धमक में जा रही थी. फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों में भी इस बदलाव को दिखाया, अब फिल्में भी मल्टीप्लेक्स की जरूरतों को ध्यान रख कर बनायीं जाने लगी.
आज के समय में छोटे शहरों को फिल्मों में विशेष स्थान दिया जा रहा है
पहले तो फिल्म की अवधि को कम किया गया फिर फिल्मों के किरदार को भी ज्यादातर बड़े शहरों तक ही सिमटा दिया गया. और तो और यशराज बैनर या करन जौहर की फिल्मों के किरदार की जीवनशैली ऐसी दिखाई जाने लगी, जो किसी भी आम भारतीय के लिए दूर की कौड़ी थी. हालांकि जब भी किसी फिल्मकार ने अपनी फिल्मों में छोटे शहर की कहानी कही तो वो फिल्में काफी सफल रहीं, मसलन उड़ान, रांझणा, दबंग 1, 2, तनु वेड्स मन्नू, मसान, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर 1, 2, काई पो छे, इन सभी फिल्मों को काफी सराहा गया. बावजूद इसके ज्यादातर फ़िल्में बड़े शहरों या विदेशों में ही शूट किया जाता रहा.
मगर इस साल आयी फिल्मों की फेहरिस्त में बहुत सारी फिल्में ऐसी हैं जो छोटे शहरों के इर्द गिर्द ही फिल्मायीं गयी हैं. साथ ही इन फिल्मों के संवाद से लेकर गाने के बोल तक में उन शहरों के ठेंठ गंवई अंदाज़ को बरक़रार रखा गया हैं. यह इस बात के संकेत हैं कि बॉलीवुड कि फिल्में वापस से छोटे शहरों की और मुड़ रही है. इस बदलाव का फायदा यह हुआ है कि अलग अलग राज्यों की बोलचाल और रहन सहन बड़े परदे पर देखी जा सकती है और साथ ही छोटे शहरों में रहने वाले भी इनफिल्मों के साथ आसानी से खुद को जोड़ पा रहे हैं.
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