KBC 12 का बहिष्कार और अमिताभ का विरोध करने वाले ये भी जान लें!
सिने प्रेमियों का एक बड़ा वर्ग है जो अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) और उनके शो कौन बनेगा करोड़पति (Boycott Kaun Banega Crorepati) के बहिष्कार की बात कर रहा है. आज जो लोग भी अभिताभ के बहिष्कार की बात कर रहे हैं पहले उनके अमिताभ की उपलब्धियों और उनके व्यक्तित्व को देखना चाहिए.
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केबीसी के बहिष्कार (Boycott KBC) का कहने वालों की बुद्धि पर अब सचमुच तरस आने लगा है. इन्हें ये तक नहीं मालूम कि उस एक कार्यक्रम के पीछे न जाने कितने लोग जुड़े हैं. इन्हें तो बस अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का विरोध करना है. उनके पैसे कमाने से आपत्ति है लेकिन एक 76 वर्षीय इंसान की मेहनत और लगन नहीं दिखाई देती. जहां हट्टे-कट्टे लोग भी दूसरे की जेब में हाथ डाल लाभ लेना होशियारी समझते हैं, किसी के विश्वास का फ़ायदा उठाने में कभी नहीं चूकते, वहां यदि कोई दिन-रात एक कर काम में लगा हुआ है और अपने कमाए धन से जी रहा है फिर भी कुछ लोगों के पेट में दर्द है.
यह इंसान आवश्यकतानुसार दान भी करता है पर चूंकि उसे ढिंढोरा पीटना पसंद नहीं तो आप उस पर कुछ भी आरोप मढ़ते रहेंगे? क्या आपने कभी किसी की निःस्वार्थ सहायता की है या कि केवल सबको भावनात्मक और आर्थिक रूप से लूटते ही आये हैं? कुछ नहीं समझ आया, तो सामने वाले में कमी निकाल दो क्योंकि वह तो पलटकर कुछ बोलेगा नहीं. बस आप किसी के मौन का फ़ायदा उठा गढ़ते रहिये किस्से.
अमिताभ का विरोध कर रहे लोगों पहले उनका व्यक्तित्व देखना चाहिए
जरा अपने भीतर भी झांक लीजिए
हद है! जो इंसान चाय तक नहीं पीता, क्या वो ड्रग्स के समर्थन में होगा? अरे, जो ड्रग्स लेता है वह व्यक्ति भी ड्रग्स के पक्ष में एक शब्द नहीं बोल सकता. दुनिया जानती है इसके नुक़सान. जैसे दुनिया अल्कोहल और स्मोकिंग के जानती है. तो अब क्या कीजिएगा उन बीमार लोगों का, जो इसके चलते मौत के कग़ार पर खड़े हैं?
बुलवाइए सम्बंधित विभाग से कि ये ज़हर है, न बेचें. अपने आसपास के लोगों को इनका सेवन करने से रोकिए. पर उससे पहले अपनी तमाम बुरी लतें भी छोड़नी होंगी. पता है न? क्या किया आपने?
आप दूसरे से जितनी उम्मीद रखते हैं, पहले उसका एक-प्रतिशत ख़ुद भी करके दिखाइए. प्रश्न पूछना आसान है पर जरा अपने गिरेबां में भी झांक ही लीजिए.
जानिए, अमिताभ ने क्या-क्या किया
दरअसल अमिताभ बच्चन को 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' मिलने के बाद से ही कुछ लोग उनके विरुद्ध मोर्चा खोलकर बैठे हैं. पहले तो ये बता दूं कि 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' फ़िल्मों में आजीवन, अतुलनीय योगदान के लिए दिया जाता है. समाज सेवा के लिए नहीं!
50 वर्षों से उनकी फ़िल्मों के बारे में तो पता है न?
वो फ़लाने-ढिकाने के पक्ष में नहीं बोले, ये तो याद है आपको लेकिन उन्होंने क्या-क्या किया,आज ये जानने की ज़हमत भी उठा ही लीजिये-
विरोधी किसानों का नाम लेकर उन पर आरोप लगा रहे. क्या आप जानते हैं कि उन्होंने हजारों किसानों का ऋण अपनी जेब से चुकाया है?
आप मेट्रो के समर्थन को लेकर उन पर आरोप लगा रहे थे, जिसका पूरा लाभ उठाते समय आप स्वयं ही पर्यावरण की सारी बातें भुला बैठेंगे. आपने तो यह भी भुला दिया कि जिस फ्लैट में रह रहे हैं वहां भी कभी घना जंगल हुआ करता था. पर्यावरण की सुरक्षा हम सभी का कर्त्तव्य है पर पेड़-पौधे क्या अमिताभ उखड़वा रहे हैं? सरकार के सामने आप क्यों नहीं बैठ जाते धरने पर?
अवॉइडेबल ब्लाइंडनेस' (टाल सकने योग्य अंधेपन ) को समाप्त करने में मदद करने के लिए 'सी नाउ' अभियान किसने चलाया?
'मिशन पानी' कैंपेन का ब्रांड एंबेसडर कौन है?
चाइल्ड लेबर के विरोध में कौन खड़ा हुआ?
Educate girls अभियान के साथ कौन सक्रियता से अपने सेवायें दे रहा है?
DD किसान चैनल के ब्रांड एम्बेसडर कौन हैं?
'दरवाज़ा बंद अभियान' का नाम सुना है आपने?
'स्वच्छ भारत अभियान' के ब्रांड एम्बेसडर कौन हैं?
'पल्स पोलियो अभियान' के बारे में सोचते हैं तो किसका चेहरा उभरता है?
हेपेटाइटिस-बी उन्मूलन के ब्रांड एम्बेसडर कौन हैं?
'सेव टाइगर कैंपेन' से कौन जुड़ा है?
इन सबका एक ही उत्तर है - अमिताभ बच्चन और यक़ीन मानिये ये तो केवल बानगी भर है.
गंभीर व्यक्तित्व और उसकी गरिमा देखिए
दिक़्क़त ये है कि जनता को वो लोग अधिक पसंद आते हैं जो काम तो एक करते हैं पर उसे गिनाते चार बार हैं. कुछ लोग तो काम किए बिना ही उसका श्रेय लूट लेने में माहिर हैं. उन्हें पता है कि दिखावा पसंद दुनिया में स्वयं को प्रमोट कैसे किया जाता है.
जो अमिताभ के न बोलने पर प्रश्न उठाते हैं वे ये भूल जाते हैं कि अमिताभ तब भी एक शब्द नहीं बोले जब वर्षों तक लगातार मीडिया उनका चरित्र हनन करती रही.
उनकी अपनी कम्पनी डूब गई पर उन्होंने उसके दुःख का कभी रोना नहीं रोया क्योंकि उन्हें अपनी मेहनत पर अटूट विश्वास था. वे जानते थे कि जो गिरता है, वो उठना भी सीख ही लेता है.
उनके निजी जीवन, बच्चों, परिवार को लेकर आक्षेप लगते रहे पर उन्होंने मौन रहकर सब बर्दाश्त किया. कभी अपनी इंडस्ट्री के किसी साथी से ये अपेक्षा नहीं की कि वो उनके साथ खड़ा हो. न ही कभी उनके मुख से किसी के प्रति शिक़वा-शिक़ायत का कोई लफ़्ज़ ही बाहर आया है.
यही उनका गरिमामयी व्यक्तित्व है जिसमें एक गंभीरता है, भाषाई मर्यादा है, सभ्यता है, अनुशासन है और अपने काम के प्रति अपार समर्पण. इसके माध्यम से ही उन्होंने सदैव अपने आलोचकों को उत्तर दिया है. आगे भी देते रहेंगे. तब तक उनके विरोधी थोड़ा और होमवर्क कर लें.
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