Breathe 2 web series तो क्राइम के लिए नये आईडिया दे रहा है
अमेजन प्राइम (Amazon Prime) पर अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) की चर्चित वेब सीरीज ब्रीद का सीजन 2 (Breathe Season 2) आ गया है. सीरीज पर नजर डालें तो सीजन 1 के मुकाबले सीजन 2 में फैक्चुअल एरर ज्यादा हैं मगर सीरीज को कुछ इस तरफ बनाया गया है कि रोमांच बना रहता है.
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हाल ही में अमेज़न प्राइम (Amazon Prime) पर एक web series लांच हुई है, ब्रीद (Breathe). यही वो series है जिससे अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) OTT की दुनिया में अपना पहला कदम रख रहे हैं. हालांकि अभिषेक बड़े पर्दे पर भी साल में कितनी दफ़ा आ पाते हैं ये जगविदित है पर Breathe – Into the shadows का इंतेज़ार न सिर्फ अभिषेक बच्चन के फैन्स कर रहे थे बल्कि Breathe सीजन 1 के दर्शकों और प्रशंसकों की उत्सुकता भी सीजन 2 के लिए बनी हुई थी. Breathe के पहले सीजन में आपको याद होगा कि आर माधवन (R Madhavan) एक ऐसे पिता के रोल में थे जिसके बेटे की lungs ट्रांसप्लांट होनी है और डोनर लिस्ट में उसका नंबर चार है. मतलब Lung डोनेट करने वाले तीन डोनर्स के गुज़र जाने के बाद उसका नंबर आना है. अब इस डिस्टेंस को कम करने के लिए आर माधवन डोनर्स की लिस्ट निकालकर एक-एक करके उन्हें अलग-अलग तरीके से मारना शुरु कर देते हैं. ये series ये दर्शाती थी कि कैसे किसी अपने की जान बचाने के लिए भी आदमी मजबूरन किसी दूसरे की जान लेने को अमादा हो जाता है.
ब्रीद सीजन 2 में कमियां भले ही रह गयीं हों मगर रोमांच के नाम पर इसे देखा जा सकता है
इस बार भी कहानी कुछ ऐसी ही है, शायद आपने ट्रेलर देख समझा हो कि अभिषेक बच्चन की बेटी किडनैप हो जाती है और वो उसे वापस पाने के लिए, ब्लैकमेल होकर क़त्ल कर देता है. सीजन वन को अगर टेक्निकल पॉइंट्स पर तौलें तो बहुत अच्छा थ्रिलर है, कुछ बेसिक फैक्चुअल एरर ज़रूर हैं पर series में रोमांच बना रहता है. यही हाल दूसरे सीजन का भी है जो इस ब्रहस्पतिवार को अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हुआ है.
हालांकि इस बार फक्चुअल एरर बहुत ज्यादा हैं पर टेक्निकल पॉइंट्स के इतर, समाज को ध्यान में रखते हुए सोचिए तो ऐसी थ्रिलर series आख़िर समाज को क्या सन्देश देना चाहती हैं? ऐसे-ऐसे मर्डर करने के तरीके दिखाए जाते हैं जिन्हें देख अपराधिक मानसिकता के लोग अपराध से डरने कि बजाए इन तरीकों पर अमल करने निकल पड़ें.
ज्ञात हो कि इस तरह की क्राइम series बनाने का चलन हॉलीवुड टीवी सीरियल्स को देखकर यहां भारत में आया है. बहुचर्चित हॉलीवुड सीरियल Breaking Bad (जो ड्रग्स पर आधारित है) को देखने के बाद वाकई मेक्सिको और एरिज़ोना के कुछ ड्रग माफ़िया (Cartel) ने अपने ड्रग को ब्लू कलर से रंगना शूरु कर दिया था; जैसा की series में दिखाया था.
यही नहीं, उस series में दिखाए गए कई केमेस्ट्री फ़ॉर्मूला बिलकुल सही थे जिनका वहां के बच्चों ने काफी प्रयोग किया था. इसके साथ ही मैं एक और बहुचर्चित हॉलीवुड series प्रिजन ब्रेक का ज़िक्र करूंगा जिसमें जेल से निकलने के लिए तरह-तरह की तरकीबें आजमाते दिखाया गया है. वहीं डेक्सटर series भी साइको किलर की कहानी है और उसमें भी एक से बढ़कर एक मर्डर करने के तरीकों को उजागर किया गया है.अब समस्या ये है कि वो अमेरिका है, वहां कनून तोड़ने पर जिस प्रकार सख्ती बरती जाती है वैसी सख्ती की यहां फ़िलहाल उम्मीद करना बेमानी है. सख्ती और ढिलाई को छोड़ भी दें तो क्या फ़िल्मकार का समाज के प्रति कोई दायित्व नहीं बचता है?
इस बात को इस तरह सोचिए कि एक series में हमें ये दिखाया जाता है कि कैसे एक लड़की को एक्टिंग ऑडिशन के लिए रिहर्सल के नाम पर नायक आत्महत्या की चिट्ठी पढ़वा लेता है और उसे रिकॉर्ड कर लेता है, अगले ही पल वो एक प्लास्टिक से उसका मुंह बांधकर उसका खून कर देता है. आप ये series देख रहे हैं पर आप समझदार हैं, आप इसे सिर्फ थ्रिलर-फिल्म की तरह लेंगे.
वहीं साथ वाले कमरे में आपकी अगली पीढ़ी भी यही series, यही सीन देख रही होगी, अब क्या आपको ये भरोसा है कि जो नज़रिया आपका है, वही आपकी औलाद का भी होगा?
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