...तो कंगना रनौत जी, भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी भी गुलाम भारत के ही प्रधानमंत्री हुए ना!
कंगना रनौत (Kangana Ranaut) ने पीएम नरेंद्र मोदी (PM Modi) को लेकर जिस तरह से देश की आजादी का काल विभाजन किया है नहीं लगता कि भाजपा भी उसका समर्थन करे.
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राजनीति में दिलचस्पी अच्छी बात है. लेकिन इतना भी नहीं कि व्यक्ति अंधत्व का ही शिकार हो जाए और उसकी सोच पंगु. इसीलिए देश में कुछ चीजें सिर्फ सड़कछाप नेताओं के लिए अघोषित रूप से छोड़ दी गई हैं. वैसे कुछ चीजें नेताओं के लिए ठीक भी लगती हैं. लेकिन इधर यह चलन देखने में आ रहा है कि लोग अपने काम और जिम्मेदारियों से इतर दूसरी चीजों में विषय विशेज्ञयता दिखा रहे हैं. और वो भी राजनीति में. तर्क से परे स्तरहीन टीका-टिप्पणियां फैशन है. फिलहाल कंगना रनौत एक बहुत ही घटिया बयान की वजह से चर्चा में हैं जिसे उन्होंने राजनीतिक संदर्भों के साथ जोड़ने की कोशिश की.
एक इवेंट में उन्होंने कहा- "1947 में मिली आजादी भीख थी और असली आजादी साल 2014 में मिली." कंगना का कथन कई लिहाज से अक्षम्य है. यह सिर्फ और सिर्फ निजी लाभ में "व्यक्तिपूजा" की पराकाष्ठा भर कहा जा सकता है. स्वाभाविक है कि लोगों को उनकी बात पसंद नहीं आ रही है. आए तो मान लीजिए दिक्कत बहुत बड़ी है.
कंगना के मौजूदा विचार से सहमति दिखाने का साहस तो भाजपा भी नहीं करेगी. एक ऐसा विचार जिसमें उन्होंने भारत के सम्पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम का माखौल उड़ा दिया. किसानों, मजदूरों, कारोबारियों, खिलाड़ियों, सैनिकों और हर उस आम नागरिक की मेहनत, संघर्ष और उसके सपने का भी अपमान किया जो सालों से देश निर्माण में अपने-अपने स्तर पर जुटा हुआ है. यह उन लाखों साधारण माता-पिताओं के त्याग का अपमान भी है जिन्हें आजाद देश ने बराबरी का मौका दिया कि वे अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बना सकें. बेशक माता-पिता भूखे रहे हों पर उन्होंने बनाया. और उनके बच्चों ने देश के निर्माण में वाजिब सहयोग भी दिया.
कंगना रनौत के लिए एक देश का मतलब क्या है ?
मुझे नहीं पता कि कंगना के लिए एक देश के रूप में भारत और उसकी आजादी के मायने क्या हैं? हो सकता है कि उनके लिए भारत का मतलब सिर्फ एक पार्टी हो. कोई भी. मैं यह नहीं कहता कि वह पार्टी भाजपा ही है. क्या यह महान दुर्भाग्य है कि जिस अभिनेत्री की ओर से ऐसा बयान आता है उसे अभी कुछ दिन पहले ही देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक "पद्मश्री" दिया गया. सम्मान मिलने के बाद उन्हें थोड़ा सार्वजनिक जीवन में थोड़ी सी विनम्रता और गंभीरता लाना चाहिए था. मगर उन्होंने पता नहीं किस हैसियत से भारत और उसके काल का निर्धारण करने की हिमाकत की है?
कंगना के बयान ने लाखों किसानों और खेतिहर मजदूरों का अपमान किया है. बरसों से जिनकी मेहनत की वजह से आज देश इस काबिल है कि पेट भरने का पर्याप्त अनाज पैदा कर रहा है. अब हम अकाल का सामना नहीं करते. हम अपने साथ कई मुल्कों का भी पेट भर रहे हैं. हमारी दवाएं दुनिया के ना जाने कितने गरीब मुल्कों की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा कर रही हैं. हमारे डॉक्टर और तकनीकी एक्सपर्ट्स ने दुनिया को नई राह दिखाई है. आज हम इतना सक्षम हैं कि हर आय वर्ग के लिए उसकी जरूरत से कहीं ज्यादा जूते-कपड़े बना रहे हैं. अब हमें नंगे बदन नहीं घूमना पड़ता. हम अनगिनत क्षेत्रों में निर्यात कर रहे हैं. ऑटो-टेलिकॉम के क्षेत्र में दुनिया में हमने अलग ही ओहदा पाया है. ज्यादातर खेलों में भी हमने शीर्ष मुकाम हासिल किया. बेशक चीन-अमेरिका-जापान से कितना ही पीछे क्यों ना हों लेकिन अपने देश और अपनी आजादी पर गर्व करने के लिए पर्याप्त वजहें हैं जिन्हें खोजना नहीं पड़ेगा.
कंगना रनौत को हाल ही में पद्मश्री दिया गया है.
हमारे वैज्ञानिकों, डॉक्टर-इंजीनियर्स ने ना जाने कितने लक्ष्य बनाए और उसे हासिल किया. निर्माण के क्षेत्र में हम जग प्रसिद्द हैं. हम बेहतरीन पेशेवर पैदा करने के लिए जाने जाते हैं. दुनिया को जब भी जरूरत पड़ी है हमारे प्रधानमंत्रियों (पीएम नरेंद्र मोदी भी) के नेतृत्व में देश कंधे से कंधा सटाकर दुनिया के साथ खड़ा रहा. और यह सबकुछ हमने 1947 के बाद की अनवरत यात्राओं से हासिल किया है. जख्म खाते हुए, गिरते हुए और फिर संभलकर खड़ा होते हुए. मुश्किलों से गुजरते और जूझते हुए. और यह सब उसी आजादी की बदौलत है जिसे खोखली व्यक्तिपूजा में कंगना "भीख" बता रही हैं. क्या उनका बयान देश के रूप में हमारी अपनी उपलब्धियों का अनादर नहीं है?
कंगना के बयान की तरह वाट्सएप पर भी कुछ इसी तरह के चैट घूमा करते हैं जिसमें आजादी को "अंग्रेजों से समझौता" बताया जाता है. कंगना के बयान ने समूचे देश के वजूद पर प्रहार किया है. मुझे इस बात पर भी ज्यादा ताज्जुब है कि जब एक मूर्ख अभिनेत्री यह सबकुछ कह रही थी तो बताचीत कर रहे पत्रकार ने टोका क्यों नहीं? क्या वह पत्रकार भी इस बात से सहमत है कि असल में आजादी भीख में ही मिली थी. अगर सहमत है तो वह सभा धृतराष्ट्र की सभा साबित हुई मान लीजिए.
कंगना के बयान को मूर्खतापूर्ण बताकर खारिज नहीं किया जाना चाहिए. ये मूर्खता नहीं बल्कि एक घिनौनी स्थापना की कोशिश है. मुझे नहीं पता कि पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा कंगना के बयान को किस तरह देख रहे होंगे. पता नहीं उन तक बयान पहुंचा भी होगा या नहीं. लेकिन कंगना की स्थापना के संदर्भ में भाजपा के दिग्गजों से मौका मिलते ही यह जरूर पूछना चाहिए कि अटल बिहारी वाजपेयी क्या गुलाम भारत के प्रधानमंत्री बने थे. यह भी कि साल 2014 से पहले देश के तमाम राज्यों में भाजपा की सरकारें किस ढकोसले का हिस्सा थीं. क्या वह दौर गुलामी का था. और फिर आजादी के अमृत महोत्सव के लिए प्रधानमंत्री जी के इतने प्रयासों का क्या?
कंगना से उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे एक देश और उसकी यात्राओं और उसके पड़ाव पर जानकारी रखती हैं. उनका बयान साबित करने के लिए पर्याप्त है. कंगना पर वरुण गांधी गलत नहीं कह रहे- "उनकी सोच को पागलपन कहा जाए या फिर देश द्रोह." मेरा मानना है कि कंगना को ऐसे बयानों से बचना चाहिए. उन्हें सुर्खियाँ ही हासिल करनी हैं तो उनके पास इसके लिए किस्सों की कमी थोड़े है. वो अपने बॉयफ्रेंड पर बात कर सकती हैं. उन्होंने किया भी. ज्यादा बवाल मचाना है तो आदित्य पंचोली, रितिक रोशन और अध्ययन सुमन से जुड़े प्रसंग सामने लाएं. मगर इस तरह के बयान से राजनीतिक सुर्खी ना हासिल करें. इस तरह वे देश सेवा के लिए बड़ा योगदान देंगी.
कंगना जी जहां बुद्धि-विवेक काम ना करे, वहां चुप रहा करें प्लीज!
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