Chengiz Movie Review: जानिए बांग्ला सिनेमा की पहली पैन इंडिया फिल्म कैसी है?
Chengiz Movie Review in Hindi: बांग्ला सिनेमा की पहली पैन इंडिया फिल्म 'चंगेज' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. राजेश गांगुली के निर्देशन में बनी इस एक्शन ड्रामा फिल्म में बांग्ला फिल्मों के सुपरस्टार जीत लीड रोल में हैं. उनके साथ सुष्मिता चटर्जी, रोहित बोस रॉय और शताफ फिगर भी अहम भूमिका में हैं.
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फिल्म- चंगेज
स्टारकास्ट- जीत, सुष्मिता चटर्जी, रोहित बोस रॉय, सुदीप मुखर्जी और शताफ फिगर
डायरेक्टर- राजेश गांगुली
आईचौक रेटिंग- 2/5 स्टार
भारतीय सिनेमा के उत्थान में बांग्ला फिल्मों और निर्देशकों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. भारतीय फिल्मों को दुनिया में नई पहचान दिलाने वाले दिग्गज फिल्मकार सत्यजीत रे से लेकर मृणाल सेन, रितुपर्णो घोष, अपर्णा सेन, अनिरुद्ध रॉय चौधरी और श्रीजीत मुखर्जी तक अनेकों ऐसे नाम हैं, जिन्होंने बांग्ला और हिंदी सिनेमा में बराबर काम किया है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बांग्ला सिनेमा सीमित हो चुका है. इसी सीमा को तोड़ने का प्रयास बांग्ला सिनेमा के सुपरस्टार जीत ने किया है. उन्होंने बांग्ला सिनेमा की पहली पैन इंडिया फिल्म 'चंगेज' दो भाषाओं में रिलीज की है. राजेश गांगुली के निर्देशन में बनी इस एक्शन ड्रामा फिल्म में जीत लीड रोल में हैं. उनके साथ सुष्मिता चटर्जी, रोहित बोस रॉय और शताफ फिगर भी अहम भूमिका में हैं. इस फिल्म को एक बेहतर प्रयास के रूप में सराहा जा सकता है, लेकिन बतौर सिनेमा इसमें कई खामियां हैं.
फिल्म 'चंगेज' में सुपरस्टार जीत ने वही गलती की है, जो बॉलीवुड लंबे समय से करता आ रहा है और इतना नुकसान होने के बावजूद लगातार किए जा रहा है. बॉलीवुड आज भी फॉर्मूला बेस्ड फिल्में बनाने में लगा हुआ है. जो हिट है, उसे कॉपी कर लो, उन सभी तत्वों को अपनी फिल्म में शामिल कर लो, जिनसे कोई फिल्म ब्लॉकबस्टर हुई है. इसी फॉर्मूले के तहत बॉलीवुड काम कर रहा है. जीत ने भी साउथ सिनेमा की कॉपी बना दी है. उनकी फिल्म में केजीएफ सहित साउथ की तमाम फिल्मों की झलक दिखती है. एक्शन के कुछ सीन जरूर अच्छे बन पड़े हैं, लेकिन ओवरऑल फिल्म वो रोमांच पैदा नहीं कर पाती, जिसके लिए जीत जाने जाते हैं. इसके अलावा फिल्म की लंबाई बहुत अखरती है. 2 घंटे 31 मिनट लंबी फिल्म को 1 घंटे 30 मिनट किया जा सकता था. फिल्म की लंबाई इसमें अलग से डाले गए हिंदी गानों की वजह से भी बढ़ी है.
बांग्ला सिनेमा की पहली पैन इंडिया फिल्म 'चंगेज' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है.
फिल्म एडिटर मलय लहा ने अपना काम ईमानदारी से नहीं किया है. उनको जर्राह की तरह कैंची चलानी चाहिए थी, जिससे कि एक टाइट और थ्रिलर फिल्म बन सकती थी. इस फिल्म की कहानी 1970 से 1990 के बीच के समय में स्थापित है. उस दौर के कोलकाता को दिखाना भी एक चुनौती की तरह है. ऐसे में सिनेमैटोग्राफी की भूमिका अहम हो जाती है. इस फिल्म के सिनेमैटोग्राफर मानस गांगुली भी चूक गए हैं. उनके पास पैन इंडिया छाने का ये एक बेहतर मौका था, जिसे भुनाने में वो नाकाम रहे हैं. फिल्म का निर्देशन सबसे अहम हिस्सा होता है. निर्देशक के कंधों पर सारा दारोमदार टिका होता है. राजेश गांगुली इस फिल्म के निर्देशक होने के साथ ही इसके लेखक भी हैं. जीत को शायद उन पर ज्यादा भरोसा होगा, लेकिन राजेश उस भरोसे पर खरे नहीं उतरे हैं. एक्शन क्राइम ड्रामा बनाने के नाम पर साउथ सिनेमा की कॉपी भी ठीक से नहीं कर पाए हैं.
फिल्म 'चंगेज' की कहानी के केंद्र में सुपरस्टार जीत का किरदार जयदेव सिंह उर्फ चंगेज है. जयदेव जब 10 साल का होता है, तो एक अपराधी राशिद खान उसके माता-पिता की गोली मारकर हत्या कर देता है. ये वारदात उसकी आंखों के सामने होती है. अनाथ होने की वजह से पुलिस विभाग के एक दूसरे इंस्पेक्टर समीर सिन्हा (रोहित रॉय) उसे अपने घर पर पनाह देते हैं. उसे अपने बेटे के जैसे रखते हैं. जयदेव उनको मामा कहता है. उसके मन में अपने माता-पिता के बदले की आग भड़क रही होती है. यही वजह है कि 16 साल की उम्र में वो अपने मामा का घर छोड़कर निकल जाता है. इलाके के सबसे बड़े डॉन उमर (शताफ फिगर) के लिए काम करने लगता है. एक दिन मौका देखकर राशिद की हत्या करके अपना बदला पूरा करता है. जयदेव के साहस को देखकर उमर ऊर्फ नल्ली भाई उसे अपना खास गुर्गा बना लेता है. उससे ड्रग्स की तस्करी कराने लगता है.
बड़ा होकर जयदेव अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपना साम्राज्य खड़ा करने में लग जाता है. सबसे पहले उमर की हत्या की करके अपना एकक्षत्र राज स्थापित कर लेता है. यहीं से उसका नाम चंगेज पड़ जाता है. चंगेज यानी जिसकी कोई सीमान हो, असीमित. अपने नाम की तरह चंगेज कोलकाता से निकलकर थाइलैंड तक अपना व्यापार फैला लेता है. वहां से गोल्ड और ड्रग्स की तस्करी करने लगता है. इधर कोलकाता पुलिस एक स्पेशल टास्क फोर्स गठित करती है, जिसे चंगेज का साम्राज्य खत्म करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है. इस एसटीएफ का हेड पुलिस कमीश्नर अमित धर (सुदीप मुखर्जी) को बनाया जाता है. इस टीम में चंगेज के मामा समीर सिन्हा को भी शामिल किया जाता है. टीम अपने ऑपरेशन शुरू कर देती है, लेकिन सूचनाएं लीक होने से सफलता नहीं मिलती. अमित को समीर पर शक जाता है. समीर अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए एक साजिश रचता है. क्या समीर अपनी बेगुनाही साबित कर पाएगा? एसटीएफ की सूचनाएं कौन लीक करता है? जीत का भविष्य क्या होगा? इन सभी सवालों के जवाब के लिए फिल्म देखनी होगी.
इस फिल्म की कहानी में कई झोल हैं. पहले तो ऐसी कहानियां कई बार पर्दे पर दिखाई जा चुकी हैं. खासकर 80 और 90 के दशक में बनी बॉलीवुड की गई फिल्मों में इस तरह की कहानी को देखा जा सकता है. इसके बावजूद ट्रीटमेंट के स्तर पर फिल्म को अलग बनाया जा सकता था. लेकिन फिल्म के निर्देशक इसमें भी मात खा गए हैं. फिल्म के एक्शन सीन जरूर अच्छे बन पड़े हैं. एक्शन और मसाला फिल्में पसंद करने वाले दर्शकों को ये फिल्म अच्छी लग सकती है. लेकिन फिल्मों में बहुत ज्यादा लॉजिक खोजने की कोशिश करने वाले दर्शक निराश हो सकते हैं. बॉलीवुड फिल्मों की तरह इसमें संगीत का भी ध्यान रखा गया है. फिल्म में कुल तीन गाने हैं, जिसे मीका सिंह, अरिजीत सिंह और दिव्य कुमार ने गाया है. इसमें मीका का गाया 'रगड़ा-रगड़ा सॉन्ग' दर्शकों को अच्छा लग सकता है. जहां तक फिल्म के कलाकारों के अभिनय प्रदर्शन की बात है, तो सभी ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है. जीत चंगेज के किरदार में प्रभावी लगे हैं. सुष्मिता के पास करने के लिए बहुत कुछ नहीं है. रोनित रॉय ने भी अच्छा काम किया है. वो फिल्म के नैरेटर भी हैं.
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