Choked release review: विपक्ष के गले में फंसी कहानी अनुराग कश्यप ही पर्दे पर ला सकते थे
नेटफ्लिक्स (Netflix) पर रिलीज हो रही अनुराग कश्यप (Anurag kashyap) की फिल्म चोक्ड (Choked movie). यह फिल्म है 8 नवम्बर 2016 को पीएम मोदी (PM Modi) की नोटबंदी (Demonetisation) की घोषणा के बैकग्राउंड पर आधारित है.
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8 नवम्बर 2016, अचानक रात आठ बजे सिर्फ भारत (India) ही नहीं, बल्कि भारत से जुड़ा तमाम विश्व कुछ समय के लिए अपने नाखून चबाने पर मजबूर हो गया था. यही वो तारीख थी जब माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) जी ने रात 12 बजे से नोटबंदी (Demonetisation) का फ़रमान जारी किया था. ये विश्व इतिहास में पहला अवसर था कि जब निम्न वर्ग, जिसकी जेब में एक पैसा नहीं था, वो मुस्कुरा रहा था और जिनकी तिजोरियां नोटों से ठसी हुई थीं उसकी पलकें एक मिनट के लिए भी झपकने की हामी नहीं भर पा रही थीं. मुझे याद हैं उस वक्त मेरे पास कोई साढ़े तीन सौ रुपये थे, पांच सौ और हज़ार के नोट बंद होने पर मेरे मुंह से भी हंसते हुए वही निकला था जो अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) की नई फिल्म Choked में उनके पात्र सुशांत (रोशन मैथ्यू) के मुंह से निकला है 'अब आयेगा मज़ा, अब बाहर आयेगी सारी ब्लैक मनी.'
नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी को प्रदर्शित करती है अनुराग कश्यप की फिल्म चोक्ड
सरकार का दावा था कि पांच सौ और हज़ार के नोट की अकस्मित मौत से जहां एक तरफ आतंकी संगठनों की कमर टूटेगी वहीं अपार काला धन रखने वालों का भी बेड़ा गर्क हो जायेगा. वहीं जिसके पास पैसा है ही नहीं उसे किसी प्रकार की चिंता करने की ज़रुरत नहीं होगी और जो घरेलू बचत से पैसे जोड़कर चावल के डिब्बे में छुपाने वाली मध्यम-वर्गीय प्रजाति है, ये ढाई लाख तक अपने-अपने खातों में बिना किसी पूछताछ के जमा करवा सकेगी.
अनुराग कश्यप की choked पहली नज़र में हमें जताती है कि निम्न मध्यम वर्गीय सरिता (सैयामी खेर) जो एक बैंक में केशियर की हैसियत से नौकरी करती है, के घर की नाली में अचानक नोटों के बंडल निकल आते हैं. छोटी-छोटी ज़रूरतों, आलू-पनीर को लेकर नोक-झोंक करती सरिता अचानक शाह ख़र्च हो जाती है कि उसे पता चलता है अगले रोज़ यानी 9 नवम्बर से पांच सौ-हज़ार के नोट बंद होकर नए दो हज़ार के नोट आ चुके हैं.
अब सरिता के पैरों तले ज़मीन खिसकती ज़रुरत है पर सरिता गिरने की बजाए इस मुसीबत से निजात पाने का तरीका ढूंढने लगती है. यहां ट्विस्ट ये कि सरिता खुद बैंक केशियर है, क्या वो अपने पद का इस्तेमाल अपने बेजान नोटों को बदलने के लिए नहीं कर कर सकती?
आपको याद हो कि 2016 में विपक्ष ने ये सवाल बार-बार उठाया था कि नोटबंदी से सिर्फ और सिर्फ मध्यम वर्ग को लाइन में लगने की ज़हमत उठानी पड़ी है, अपने घर की शादियां-बरातें टालनी पड़ी हैं क्योंकि उच्च वर्ग ने पहले ही बैंक में सेंध लगाकर बल्क में अपने नोट बदल लिए हैं. एक नामी प्राइवेट बैंक का नाम इस घोटाले में आया भी था लेकिन जैसी फ्लैश-स्पीड से उसका आना हुआ था, उतनी ही लाइट स्पीड से वो ख़बरों से गायब गायब हो गया था.
हैरानी इस बात की भी है कि 2016 नवम्बर की घटना को केंद्र में रखते हुए अबतक कोई कलात्मक रचना क्यों नहीं हुई थी? पर देर-आयद दुरुस्त-आयद की मिसाल को कायम करते हुए अनुराग कश्यप शायद विपक्ष की आवाज़ बनकर ये फिल्म लाये हैं जो Netflix पर 5 जून से उपलब्ध है. फौरन से भी पेश्तर Choked का detailed रिव्यू आपको यहीं पढ़ने को मिलेगा. साथ बने रहें.
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