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Updated: 02 अगस्त, 2021 08:01 PM
मुकेश कुमार गजेंद्र
मुकेश कुमार गजेंद्र
  @mukesh.k.gajendra
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इतिहास गवाह है सियासत में कभी कोई किसी का सगा नहीं होता. सत्ता के लिए अपने सगे और खून के रिश्ते तक दगा दे जाते हैं. ऐसे लोगों को सत्ता पर सवार होकर केवल शक्ति चाहिए होती है. ऐसी शक्ति जो उन्होंने ओहदा और धन-दौलत दे सके. यहां कुर्सी की कीमत अपनों की जान से ज्यादा होती है. यदि ऐसा नहीं होता तो कुर्सी के लिए बेटा अपने पिता को, भतीजा अपने चाचा या चाचा अपने भतीजा को, भाई अपने सगे भाई को, यहां तक कि पत्नी अपने पति को दगा नहीं देती. पशुपति पारस और चिराग पासवान, अखिलेश यादव और मुलायम-शिवपाल यादव, एमके स्टालिन और एमके अलागिरि, दिग्‍विजय सिंह और लक्ष्मण सिंह, गुलाम नबी आजाद और गुलाम अली आजाद, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे, ऐसे कई उदाहरण हैं, जो इस बात की तस्दीक करते हैं. 'सिटी ऑफ ड्रीम्स' ऐसी ही सियासी बिसात पर बनी एक रोमांचक वेब सीरीज है.

मुनव्वर राणा का एक शेर है, 'बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है.' डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई वेब सीरीज सिटी ऑफ ड्रीम्स सीजन 2 के एक प्रमुख किरदार अमेय राव गायकवाड़ यानी साहिब (अतुल कुलकर्णी) पर ये शेर बिल्कुल सटीक बैठता है. एक वक्त था जब वो सूबे का सबसे शक्तिशाली राजनेता था, मुख्यमंत्री था, उसके एक इशारे पर हर तरफ हलचल मच जाती थी. लेकिन एक हादसे के बाद वो शरीर से लाचार क्या हुआ सत्ता से भी बाहर कर दिया गया. उसकी अपनी ही बेटी उसे बंधक बनाकर और अपने भाई की हत्या कराकर सत्ता का सुख भोग रही है. एक बूढ़े शेर की तरह साहिब छटपटाता है. दांव-पेंच चलता है, लेकिन हर बार हार जाता है. इस वेब सीरीज में वो सबकुछ है, जो आप वर्तमान समय में देश की राजनीति में देख रहे हैं या पहले देख चुके हैं.

hxiljsthti-162759444_080221060410.jpgपूर्णिमा के किरदार में प्रिया और साहिब के किरदार में अतुल ने जबरदस्त काम किया है.

सियासत में सत्ता के लिए रिश्तों का खून

सिटी ऑफ ड्रीम्स सीजन 2 की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां पहले सीजन की खत्म हुई थी. अपने भाई आशीष गायकवाड़ (सिद्धार्थ चंदेकर) की हत्या और पिता अमेय राव गायकवाड़ उर्फ साहिब (अतुल कुलकर्णी) के लकवाग्रस्त होने के बाद पूर्णिमा गायकवाड़ (प्रिया बापट) सूबे की सीएम बन चुकी है. वो अपने पिता के खास और पूर्व सीएम जगदीश गुरव (सचिन पिलगांवकर) और एनकाउंटर स्पेशलिस्ट से नेता बने वसीम खान (एजाज खान) को अपनी तरफ मिलाकर सत्ता का सुख भोग रही है. इधर, साहिब का स्वास्थ्य धीरे-धीरे ठीक हो रहा है. वो अपने बेटे की हत्या और अपनी सत्ता छीनने से नाराज होकर पूर्णिमा से बदला लेना चाहता है. जनता के बीच पिता के आशीर्वाद से सरकार चलाने का नाटक करने वाली पूर्णिमा को पता है कि शेर को बहुत ज्यादा दिन मांद में बंद नहीं रखा जा सकता, इसलिए वो सावधान है.

सत्ता के 'चरित्र' का सियासी संतुलन

पूर्णिमा अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए भले ही सियासी दांव-पेंच का इस्तेमाल करती है, लेकिन वो राजनीति में कुछ नया करना चाहती है. उसके इरादे अपने पिता से बहुत ज्यादा नेक नजर आते हैं. जैसे एक जगह वो अपने सलाहकार से कहती है कि वो चुनाव में काले धन के इस्तेमाल के पक्ष में नहीं है. उसे अपने पिता की तरह लोगों से लूटकर पैसे नहीं कमाना है. कमीशन के तौर पर जो पैसे उसे मिल जाते हैं, उतना ही उसके लिए ठीक है. लेकिन सलाहकार के समझाने पर वो अपने पिता के रखे कालेधन को चुनाव में इस्तेमाल करने के लिए राजी हो जाती है. हालांकि, सियासत में सबकुछ साफ-सुथरा नहीं होता है. पूर्णिमा गायकवाड़ को भी एक ऐसी राजनेता के रूप में दिखाया गया है जो सत्ता के लिए हत्या कराती है. अपनों का खून बहाती है. समलैंगिंक रिश्ते बनाती है. यहां तक कि सीक्रेट शादी तक कर चुकी है.

वेब सीरीज में असल जिंदगी के किरदार

इतिहास और अतीत के बिना न तो वर्तमान खड़ा रह सकता है और न ही इस पर भविष्य रूपी इमारत खड़ी हो सकती. इस सत्य से अनजान पूर्णिमा गायकवाड़ अपने धुन में सरकार चला रही होती है, लेकिन उसका पिता लगातार बाजी पलटने के मौके तलाशता रहता है. इसके लिए कभी वो विपक्ष को उकसाता है, तो कभी पैसों के दमपर बवाल कराता है. यहां तक कि बेटी की सरकार पर सवाल उठे, इसलिए शहर में दंगे भी करवाता है. लेकिन बेटी भी पिता से कम चालबाज नहीं है. वो वसीम खान के जरिए उनके हर चाल को नाकाम कर देती है. वैसे वसीम खान जैसे कुछ किरदारों को देखकर असल जिंदगी के कुछ लोग याद आते हैं. जैसे महाराष्ट्र के पूर्व एपीआई सचिन वझे, जो पुलिस अफसर से शिवसेना में शामिल हुए और फिर ठाकरे सरकार बनते ही महकमे में वापस आ गए थे. फिलहाल सस्पेंड चल रहे हैं.

ये वेब सीरीज देखनी चाहिए या नहीं?

वेब सीरीज सिटी ऑफ ड्रीम्स सीजन 2 के निर्देशक नागेश कुकुनूर ने कसा हुआ निर्देशन किया है. एक साथ कई दिशाओं में चल रही कहानी को पिरोए रखना और उसे ट्रैक पर बनाए रखना बहुत मुश्किल काम होता है. नागेश के साथ भी यही दिक्कत दिखती है. कहानी के कई पहलुओं को स्थापित करने की कोशिश में, मुख्य कथानक पर से उनका ध्यान हट जाता है. कुछ चीजें अनावश्यक रूप से जुड़ी दिखाई देती हैं, तो कुछ पहले ही समझ में आ जाती हैं. हालांकि, रोचक ट्विस्ट एंड टर्न है, जो कि एक पॉलिटिकल थ्रिलर वेब सीरीज से अपेक्षित है. अतुल कुलकर्णी, प्रिया बापट, एजाज खान, सचिन पिलगांवकर, सुशांत सिंह और फ्लोरा सैनी सहित सभी कलाकारों ने शानदार काम किया है. पूर्णिमा के किरदार में प्रिया और साहिब के किरदार में अतुल सीरीज खत्म होने के बाद भी जेहन में बने रहते हैं. बैकग्राउंड स्कोर और म्यूजिक आकर्षक हैं. बेहतरीन डायलॉग के साथ कलाकारों का शानदार बॉडी लैंग्वेज देखने को मिलता है. कुल मिलाकर, इस वेब सीरीज को जरूर देखा जाना चाहिए.

iChowk.in रेटिंग- 5 में से 3 रेटिंग

लेखक

मुकेश कुमार गजेंद्र मुकेश कुमार गजेंद्र @mukesh.k.gajendra

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में सीनियर असिस्टेंट एडिटर हैं.

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