Dhaakad Review: कंगना रनौत की 'धाकड़' एक्टिंग पर कमजोर कहानी-निर्देशक ने पानी फेर दिया
कंट्रोवर्सी क्वीन कंगना रनौत की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'धाकड़' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. जैसा कि उम्मीद थी फिल्म में जबरदस्त एक्शन देखने को मिल रहा है, लेकिन इमोशन के ग्राउंड पर फिल्म मात खा जाती है. फिल्म के सभी कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय प्रदर्शन किया है. निर्देशक रजनीश घई इसका फायदा नहीं उठा पाए हैं.
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हिंदुस्तान में हॉलीवुड की एक्शन फिल्मों को पसंद करने वाला एक बड़ा दर्शक वर्ग है. 'कैप्टन मार्वल', 'एवेंजर्स एंडगेम', 'ब्लैक पैंथर', 'वंडर वुमेन' और 'टॉम्ब रैडर' जैसी हॉलीवुड की फिल्मों में पॉवरपैक्ड एक्शन देखते ही बनता है. यही वजह है कि एक्शन पसंद लोग ऐसी फिल्मों की रिलीज का बेसब्री से इंतजार करते हैं. इसी श्रेणी की बॉलीवुड फिल्म 'धाकड़' सिनेमाघरों में रिलीज हुई, जिसमें कंट्रोवर्सी क्वीन कंगना रनौत लीड रोल में है. रजनीश घई के निर्देशन में बनी इस एक्शन फिल्म में अर्जुन रामपाल, दिव्या दत्ता, शाश्वत चटर्जी, शारिब हाशमी और तुमुल बालयान जैसे कलाकार भी अहम किरदारों में हैं. फिल्म का निर्माण दीपक मुकुट और सोहेल मकलई ने किया है, जबकि कहानी चिंतन गांधी, रिनिश रवींद्र और रजनीश घई ने लिखी है. बॉलीवुड में तमाम एक्शन फिल्में बनी हैं, लेकिन 'धाकड़' शायद पहली फिल्म होगी, जिसमें कोई एक्ट्रेस लीड रोल में है और धांसू परफॉर्मेंस दिया है.
कंगना रनौत की अभिनय क्षमता पर कभी किसी को शक नहीं रहा है. उन्होंने फिल्म-दर-फिल्म खुद को साबित किया है. उनकी शख्सियत की ही देन है कि आज वो बॉलीवुड की विपरीत धारा में बहते हुए भी मजबूती से टिकी हुई हैं. अपने स्वभाव की तरह फिल्मों में किरदार करने वाली कंगना का फिल्म 'धाकड़' में नया अवतार देखते ही बनता है. उनसे पहले कई एक्ट्रेस ने खुद को एक्शन जॉनर में स्थापित करने की कोशिश की है, लेकिन वो सफल नहीं हो पाईं. वहीं कंगना ने अपनी पहली ही एक्शन फिल्म में हैरतअंगेज स्टंट्स किया है, जिसे देखने के बाद आंखें खुली की खुली रह जाती हैं. फिल्म कंगना की किरदार एजेंट अग्नि अपने नाम के अनुरूप ही काम करती है. वो निडर और निर्भिक होकर दुश्मनों से सामना करती है. बाइक दौड़ाती है. ऑटोमेटिक गन से गोलियां बरसाती है. तलवारबाजी भी जानती है. दोस्ती और दुश्मनी निभाने के लिए किसी भी हद तक चली जाती है.
एक्शन में सुपरहिट, इमोशन में फ्लॉप
फिल्म 'धाकड़' में दो पक्ष है. एक तरफ केवल और केवल एक्शन है, तो दूसरी तरफ इमोशन है. एक्शन जितना शानदार-दमदार है, इमोशन उतना ही कमजोर. इंटरनेशनल टास्क फोर्स की जांबाज एजेंट अग्नि (कंगना रनौत) ग्लोबल ह्यूमन ट्रैफिकिंग सिंडिकेट के खिलाफ काम करती है, जिसके तार भारत तक जुड़े होते हैं. उसको टारगेट दिया जाता है कि सिंडिकेट के सरगना रुद्रवीर (अर्जुन रामपाल) का खात्मा करना है, ताकि तस्करी के धंधे को बंद किया जा सके. कंगना जब भी एजेंट के रूप में सामने आती हैं, छा जाती हैं. लेकिन अग्नि का एक गुजरा हुआ कल भी है, जो हर पल झकझोरता रहता है. बचपन में उसकी आंखों के सामने उसके माता-पिता का कत्ल कर दिया जाता है. वो बचपन से ही हत्यारे से बदला लेना चाहती है. ऐसे में अग्नि जब भी एक बेटी के रूप में सामने आती है, उसमें वो इमोशन नहीं दिखता है. ऐसा लगता है कि निर्देशक फिल्म को एक्शन सेंट्रिक बनाने के चक्कर में इमोशन डालना ही भूल गए. या उसे जरूरी ही नहीं समझा. यदि फिल्म में इमोशनल सीन है, तो उसमें उस तरह का भाव तो नजर ही आना चाहिए. लेकिन यहां ऐसा दिखता नहीं है.
ह्यूमन ट्रैफिकिंग सिंडिकेट की कहानी
फिल्म 'धाकड़' की कहानी अग्नि (कंगना रनौत) के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. अग्नि इंटरनेशनल टास्क फोर्स में एजेंट का काम करती है. बचपन में अग्नि के माता-पिता की हत्या के बाद सीक्रेट सर्विस के चीफ (शास्वत चटर्जी) उसे पाल-पोसकर बड़ा करते हैं. इसके साथ ही उसको एजेंट के रूप में काम करने की ट्रेंनिग भी देते हैं. अग्नि बड़े होने के बाद एजेंसी के लिए काम करने लगती है. दुनिया भर के देशों में जाकर ह्यूमन ट्रैफिकिंग सिंडिकेट को तोड़ने का काम करती है. इसी बीच उसको एजेंसी भारत वापस भेजती है, ताकि सिंडिकेट के सरगना रुद्रवीर (अर्जुन रामपाल) का पता लगाकर उसको खत्म किया जा सके. अग्नि यूरोप से सीधे भोपाल पहुंच जाती है. वहां उसकी मुलाकात एजेंसी के दूसरे एजेंट (शारिब हाशमी) से होती है, जो अपनी बेटी जायरा के साथ रहता है. अग्नि इस एजेंट के जरिए रुद्रवीर का इतिहास-भूगोल पता करती है. पता चलता है शुरू में कोयला माफिया रह चुका रुद्र कोयले के खदान में छिपा बैठा है. अपनी रखैल रोहिणी (दिव्या दत्ता) के जरिए अपने कारोबार का संचालन करता है. अग्नि कोयले के खदान में टीम के साथ अटैक कर देती है, लेकिन रुद्र पहले से तैयार रहता है और उसकी टीम पर हमला कर देता है. अग्नि इस हमले में मरते-मरते बचती है. लेकिन एक राज खुल जाता है कि उसके माता-पिता का हत्यारा रुद्र ही है.
निराश करता है फिल्म का क्लाइमैक्स
इस तरह पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों ही नजरिए से रुद्रवीर उसका दुश्मन निकल जाता है. इधर शारिब हाशमी के किरदार की हत्या करके रोहिणी उसकी बेटी को अपने साथ ले जाती है. लेकिन जायरा के ब्रेसलेट (जो अग्नि का होता है, लेकिन वो जायरा को पहना देती है) को अपने पास रख लेती है. इसके जरिए रोहिणी का लोकेशन अग्नि को मिल जाता है. अग्नि रोहिणी के पास पहुंच जाती है. उससे जायरा के बारे में पूछती है, नहीं बताने पर उसको गोली मार देती है. हमले के बाद रुद्र भारत छोड़कर यूरोप के किसी देश में छिप जाता है. वो अपने साथ लड़कियों के भी ले जाता है, जिसमें जायरा भी होती है. इस तरह जायरा की तलाश करते करते अग्नि रुद्र तक पहुंच जाती है. दोनों के बीच भयंकर लड़ाई होती है, जिसमें रुद्र मारा जाता है. लेकिन यहां अग्नि के सामने एक ऐसा राज खुलता है, जिससे जानने के बाद वो हैरान रह जाती है. वो राज आखिर क्या है? क्या अग्नि जायरा को बचा पाती है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी. यहां एक बात सबसे ज्यादा निराश करती है, वो है फिल्म का क्लाइमैक्स. जिस तरह की एक्शन फिल्म बनाने की कोशिश की गई है, उसका क्लाइमैक्स भी उतना ही धांसू होना चाहिए था. लेकिन रजनीश घई इसमें असफल साबित हुए हैं. उनका कमजोर निर्देशन फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष है.
बैलेंस बनाने में असफल रहे रजनीश
हॉलीवुड में एक पुरानी कहावत है, यदि कोई अभिनेता अच्छा कर रहा है, तो मौका है कि देर-सबेर कोई उसे एक बेहतरीन फिल्म बनाने के लिए पर्याप्त पैसा देगा. रजनीश घई ने एक ऐसी फिल्म तैयार की है, जो बतौर एक्टर कंगना रनौत को एक्शन हीरो के रूप में स्थापित करती है, लेकिन एक कमजोर का जश्न है, लेकिन यह कमजोर स्क्रिप्ट की कीमत पर ऐसा होता है. एक्शन सीक्वेंस और स्टंट्स की भरमार के बीच कहानी कब तितर-बितर हो जाती है, समझ में नहीं आता. कहानी सिनेमा की जान होती है. बॉलीवुड के फिल्म मेकर्स को कम से कम साउथ सिनेमा से ये बात जरूर सीख लेनी चाहिए. बतौर डायरेक्टर डेब्यू कर रहे रजनीश घई में अनुभव की कमी साफ नजर आती है. फिल्म में वो संतुलन बनाने में नाकामयाब रहे हैं. एक सधा हुआ निर्देशक फिल्म के हर पहलू पर ध्यान देता है, लेकिन फिल्म को एक्शन प्रधान बनाने के चक्कर में रजनीश का सारा ध्यान उसी पर टिका रह गया और कहानी उनके हाथ से निकल गई है. 2 घंटे 10 मिनट की फिल्म खिंची हुई लंबी लगने लगती है. फिल्म की लंबाई छोटी करके दर्शकों का समय बचाया जा सकता था.
बेहतरीन परफॉर्मेंस और सिनेमैटोग्राफी
फिल्म 'धाकड़' का सबसे मजबूत पहलू स्टारकास्ट की दमदार परफॉर्मेंस और सिनेमैटोग्राफी है. एजेंट अग्नि के किरदार में कंगना रनौत, विलन रुद्रवीर के किरदार में अर्जुन रामपाल, रोहिणी के किरदार दिव्या दत्ता, इंटरनेशनल टास्क फोर्स के किरदार में 'बॉब विश्वास' फेम शाश्वत चटर्जी और एजेंट के किरदार में 'द फैमिली मैन' फेम शारिब हाशमी ने बेहतरीन काम किया है. कंगना, अर्जुन और दिव्या ने तो अपने-अपने किरदारों में जबरदस्त अभिनय किया है. कंगना के अभिनय के मुरीद तो लोग हैं ही, लेकिन दिव्या और अर्जुन ने तो हैरान कर दिया है. पहली बार नकारात्मक किरदार में दिख रहे दोनों ने क्या गजब की अदाकारी की है. एक खूंखार खलनायक को उन्होंने पूरी तरह से अपने अंदर उतार लिया है. फिल्म के एक्शन सीक्वेंस की कोरियोग्राफी में अच्छे से की गई है. इस पर पैसा पानी की तरह बहाया गया है. अमेरिका, कनाडा और जापान से बेहतरीन स्टंट डायेक्टर्स को बुलाना सफल साबित हुआ है. जापानी कैमरामैन टैटसुओ नागाटा का सिनेमैटोग्राफी अव्वल दर्जे की है. उन्होंने अपने बेहतरीन छायांकन से एक्शन सीक्वेंस पर चार चांद लगा दिया है.
फिल्म देखें या नहीं?
फिल्म में डायलॉग बहुत ज्यादा तो नहीं है, लेकिन जितने हैं उनमें कई बहुत प्रभावी लगे हैं. जैसे कि ''जिस्म से रूह अलग करना बिजनेस है मेरा'', ''कठपुतलियां हैं हम सब, डोर ऊपर वाले के हाथ में अब भी है'', ''तुम्हारी दिक्कत ये है कि तुम खुद को मसीहा समझने लगी हो'', ''मैं जो हूं, मुझे उसका घमंड नहीं है'' और ''आज कल मैं थोड़ी फेमिनिस्ट हो गई हूं''. कुल मिलाकर, फिल्म 'धाकड़' एक औसत फिल्म है. यदि आप कंगना रनौत को पसंद करते हैं और एक्शन फिल्म देखना चाहते हैं, तो आप इस फिल्म को सिनेमाघरों में देख सकते हैं. यदि नहीं भी गए तो कोई बात नहीं दो महीने के अंदर ओटीटी प्लेटफॉर्म पर तो आ ही जाएगी, तब देख लीजिएगा.
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